स्थिर भारत के अस्थिर पड़ोसियों से पैदा हो रही चुनौतियों से कैसे निपट रहा है भारत?

अटल जी ने कहा था, मित्र बदल सकते हैं- पड़ोसी नहीं।

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Source- TFIPOST

भारत वह भूमि है जहां लोग सहायता और सहयोग में विश्वास करते हैं। भारत को हमेशा “शांतिप्रिय देश” के रूप में जाना जाता रहा है। भारत के इन्हीं मूल्य और नैतिकता के कारण आज दुनिया के अधिकांश देशों के साथ हमारे अच्छे राजनीतिक संबंध हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ-साथ दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला  देश है। मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर भारत का कद हिमालय सा ऊंचा हो गया है। दुनिया के तमाम विकासशील देश भारत के पीछे-पीछे चलने और भारत को अनुसरण करने को ही अपना भविष्य मान रहे हैं। भारत का भूभाग तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है इसके बावजूद हम पड़ोसी देशों के साथ एक लंबी सीमा साझा करते हैं। हमारे पड़ोसी देशों की बात करें तो इसमें धूर्त चीन और कपटी पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, भूटान और नेपाल शामिल हैं। भारत सदा-सर्वदा से शान्ति और सद्भाव का समर्थन करता आया है लेकिन हमारे पड़ोसी देश अपनी अलग ही धुन पर चलते आए हैं। इस सूची में यदि भूटान को छोड़ दिया जाए तो मौजूदा समय में हर एक देश या तो स्वयं मुसीबत में है या फिर भारत के लिए एक ख़तरा बनकर बैठा है।

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पाकिस्तान

जब बात पडोसी देश की चल रही हो तो सबसे पहला ख्याल पाकिस्तान का ही आता है। आतंक परस्त पाकिस्तान के विषय में ऐसा कुछ नहीं है जो कोई नहीं जानता। पाकिस्तान पोषित आतंकी भारत में आतंकवाद फैलाने के सपने आये दिन देखते रहते हैं। इस धूर्त देश ने कई आतंकी संगठनों को पाल पोष कर दुनिया को मुसीबत में डालने का काम किया है। मौजूदा समय में पाकिस्तान की हालत डांवाडोल है, इसकी अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई है, खाने के पैसे नहीं है लेकिन अभी भी अपनी आतंकी गतिविधियों से यह देश बाज नहीं आ रहा है। यह वही देश है जहां चाय और रोटी के दाम आसमान छू रहे हैं और देश भुखमरी की कगार पर है फिर भी इन्हें कश्मीर चाहिए। इस समय यह देश श्रीलंका के नक्शेकदम पर चल रहा है। जिस तरह से पाकिस्तान चीन के डेब्ट ट्रैप में फंसता जा रहा है वह शायद अगला श्रीलंका बनने से केवल चंद कदम ही दूर है।

बांग्लादेश और म्यांमार

ये वे दो देश हैं जहां से भारी संख्या में अवैध अप्रवासी घुसपैठिए भारत में घुसने की कोशिश करते रहते हैं और अधिकतर कामयाब भी हो जाते हैं। दरअसल, कई राजनीतिक पार्टियां अपने वोटबैंक के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती हैं। मुस्लिम तुष्टिकरण इनके खून में समाया हुआ है और इसी को मूर्त स्वरूप देते हुए वे रोंहिग्याओं की सहायता करने में जुटे रहते हैं। ध्यान देने वाली बात है कि यही घुसपैठिये भारत में आकर भारत का खाते हैं, लूट पाट मचाते हैं, चोरी करते हैं और दंगे भी फैलाते हैं। बांग्लादेश और म्यांमार की हालत भी कुछ ठीक नहीं है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने ‘पिता शेख मुजीबुर रहमान द्वारा बनाए गए बांग्लादेश’ को जमकर चोट पहुंचा रही हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई थी जिसमें यह बताया गया था कि शेख हसीना सरकार की नीतियां इस देश की अर्थव्यवस्था को निगलते जा रही है।

चीन

चीन दुनिया का सबसे शातिर और धूर्त देश है इसमें कोई दो राय नहीं है। इसके विस्तारवाद की भूख इतनी तेज है कि यह एशिया के छोटे देशों के साथ-साथ अफ्रीका और दुनिया के तमाम देशों को अपने चंगुल में फंसाता जा रहा है। मौजूदा समय में श्रीलंका की जो हालत हुई है उसका जिम्मेदार भी चीन है। उसका अगला टारगेट पाकिस्तान है क्योंकि इस कपटी देश ने पाकिस्तान को इतना ज्यादा कर्ज दे दिया है कि यदि पाकिस्तान समय से उसे नहीं चुका पाया तो चीन उसके कई इलाकों पर कब्जा भी जमा सकता है। चीन की डेब्ट एंड ट्रैप पॉलिसी काफी खतरनाक है। भारत-चीन सीमा पर भी लंबे समय से गतिरोध बरकरार है। यह कपटी समय-समय पर दक्षिण चीन सागर में मौजूद देशों को भी धमकी देते रहता है। अपनी विस्तारवादी नीति को पूरा करने हेतु उसने वर्ष 2020 में भारत में लद्दाख की सीमा में घुसपैठ की कोशिश की थी लेकिन भारतीय जवानों ने उनकी ऐसी क्लास लगाई कि चीनी सेना के जवान आज तक उससे उबर नहीं पाए हैं। वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती शक्ति को देखकर चीन हैरान परेशान है और आज चीन वह हर तरीका ढूंढ रहा है जिससे वह किसी भी तरह भारत पर हावी हो सके।

श्रीलंका

इस समय यह कहना गलत नहीं होगा कि श्रीलंका टूटकर बिखरने लगा है। स्थानीय सरकार ने जिस तरह से अपना देश थाल में सजाकर चीन को दे दिया है उसके कारण अब हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं। जितना बड़ा क़र्ज़जाल चीन ने श्रीलंका के लिए बुना है उसका यदि अनुमान लगाया जाये तो श्रीलंका को अपनी आर्थिक ताकत को फिर से जीवित करने में दशकों लग जाएंगे। अब चाहे वह आईएमएफ जैसे संस्थानों से बड़े पैमाने पर ऋण हो या चीन का कर्ज, दोनों ही मामलों में श्रीलंका से भारत की परेशानी बढ़ सकती है। इसके पीछे कारण यह है कि न तो पश्चिमी ताकतें भारत को अधिक पसंद करती हैं और न ही चीन। चीन तो वैसे भी हर उस अवसर की तलाश में रहता है जिससे वह भारत के विरूद्ध कदम बढ़ा सके। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि चीन भारत विरोधी आक्रमण शुरू करने के लिए श्रीलंका को रणनीतिक आधार के रूप में उपयोग करना शुरू कर दे।

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नेपाल

श्रीलंका अकेला ऐसा देश नहीं है जो भारत के खिलाफ चीन की अगली चाल में काम आने को तैयार है। इस सूची में नेपाल भी शामिल है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी विशेष रूप से शी जिनपिंग की गिरफ्त में है। हाल के वर्षों में नेपाल पर चीन का रंग कुछ ऐसा चढ़ा था कि नेपाल के पीएम रहे के पी शर्मा ओली चीन की तरह ऊंचे-ऊंचे दावे करने में लग गए थे। जिस तरह चीन दक्षिण चीन सागर के देशों को डराने की कोशिश करता है और उनकी भूमि पर अपना हक़ जमाता है, उसी तरह ओली ने भी लिपुलेख और कालापानी जैसे क्षेत्रों पर नेपाल के निराधार दावों पर जोर देकर भारत के साथ ऐसा करने की कोशिश की थी।

नेपाल में सरकार बदली और अब के पी शर्मा ओली की जगह आये शेर बहादुर देउबा, जिन्हें चीन विरोधी और भारत समर्थक माना गया लेकिन उन्होंने भी चीन राग अलापना शुरू कर दिया। हालांकि, श्रीलंका के विपरीत नेपाल के भारत के प्रभाव क्षेत्र में रहने की संभावना है लेकिन फिर भी चीन के प्रभाव को उस पर साफ़ देखा जा सकता है।

कुल मिलाकर भारत गैर-समर्थक और अवसरवादी देशों से घिरा हुआ है। भारत की भूमि जो प्रकृति से समृद्ध है उस पर ये देश चील की तरह अवसर की तलाश में आंखें गड़ाए बैठे हैं कि कब उन्हें हमला करने का मौका मिले। ऐसे अस्थिर और षड्यंत्रकारी देशों से घिरे भारत के लिए आवश्यक है कि वह अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति को और अधिक बढ़ाने पर ध्यान दे। मोदी सरकार इस क्षेत्र को और अधिक सशक्त करने हेतु कदम बढ़ा चुकी है। हालांकि, ऐसे अस्थिरता के माहौल में जिस तरह भारत अभी भी शांत और स्थिर बैठा है वह अचंभित करने वाला भी है और प्रशंसनीय भी।

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