श्रीलंका चीन के कर्जजाल के चुंगल में फंसकर बर्बाद हो ही चुका है। पाकिस्तान, नेपाल जैसे देश उसके कर्ज के बोझ तले दबे हुए है। इसके बाद अब ड्रैगन म्यांमार को अपना अगला शिकार बनाने की तैयारी में है। म्यांमार में पिछले वर्ष ही तख्तापलट हो गया था। एक साल से भी ज्यादा समय से वहां सैन्य शासन लागू है। ऐसे में म्यांमार की इसी अस्थिरता का फायदा चीन उठाना चाहता है और इसके पीछे उसका मकसद ही भारत को घेरना है।
दरअसल, म्यांमार इस वक्त गहरे आर्थिक संकट में है। वे आर्थिक बदहाली की तरफ बढ़ रहा है। म्यांमार की मुद्रा क्यात डॉलर की तुलना में लगातार गिरती चली जा रही है। इस समय एक डॉलर लगभग 2400 क्यात के आसपास है। जब वर्ष 2021 में म्यांमार तख्तापलट हुआ था, तब एक डॉलर 1340 क्यात के करीब था। म्यांमार की इसी आर्थिक बदहाली का फायदा उठाकर चीन उसे अपने कर्ज के मकड़जाल में फंसाने का प्रयास कर रहा है। असल में ड्रैगन का इरादा म्यांमार के जरिए भारत में घुसने का है। चीन लंबे समय से म्यांमार पर अपनी पकड़ मजबूत करके भारत के विरुद्ध उसका इस्तेमाल करने की योजना पर काम कर रहा है। चीन चाहता है कि वे म्यांमार के जरिए हिंद महासागर क्षेत्र में स्वयं को मजबूत और भारत को कमजोर कर दें। इसलिए वो वहां ऐसी परियोजनाएं स्थापित कर रहा है, जो हिंद प्रशांत क्षेत्र में उसके वर्चस्व को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
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म्यांमार के प्रति चीन का लगाव
दरअसल, सैन्य शासन लागू होने के कारण म्यांमार को दुनिया के तमाम देशों ने इस समय अलग थलग किया हुआ है। पश्चिमी देशों द्वारा म्यामांर पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए गए। ऐसे में चीन, म्यामांर को यह दिखाने का प्रयास कर रहा है कि वो इन मुश्किल हालातों में उसके साथ खड़ा है। देखा जाए तो चीन का म्यांमार में दखल काफी बढ़ चुका है। वे ना केवल म्यांमार में निवेश कर रहा, बल्कि उसे हथियार भी मुहैया करा रहा है। चीन जिस तरह से म्यांमार में है, उसके पीछे उसका मकसद स्पष्ट नजर आता है। ड्रैगन म्यांमार पर कब्जा करके भारत को नुकसान पहुंचाना चाहता है।
म्यांमार के प्रति चीन के लगाव की एक बड़ी वजह बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) दिखती है। म्यांमार में जब लोकतांत्रिक सरकार थी, तो वो भी चीन के इस समझौते का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो गई, परंतु उसने कई प्रोजेक्ट्स को मंजूरी नहीं दी थी। अब अपने प्रोजक्ट को पूरा करवाने के लिए चीन, म्यांमार की सैन्य सरकार का समर्थन करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। चीन युन्नान प्रांत से म्यांमार के हिंद महासागर तट तक एक ट्रांसपोर्ट और कम्यूनिकेशन कॉरिडोर बनाना चाहता है।
उसका यह प्रोजक्ट चीन म्यांमार आर्थिक गलियारे (CMEC) का भी हिस्सा है, जिससे चीन के आर्थिक और रणनीतिक हित जुड़े हुए हैं। फिलहाल चीन म्यांमार के बंदरगाहों पर अपनी पहुंच बनाकर हिंद महासागर में भारत को घेरने की रणनीति बनाने में जुटा हुआ है। ऐसे में भारत के लिए यह बेहद ही जरूरी हो जाता है कि वो चीन के इस तरह की चालों पर नजर रखे और कपटी ड्रैगन की हर रणनीति, हर चुनौती का सामना करने के लिए स्वयं को तैयार रखना चाहिए। चीन जिस तरह एक-एक कर भारत के पड़ोसियों को अपने जाल में फंसा रहा है, वो आर्थिक के साथ रणनीतिक तौर पर भी नुकसानदेही साबित हो सकता है।
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चीन की कर्जजाल कूटनीति
चीन की तो आदत ही रही है कि वो उन्हीं देशों को चुनता है जो मुश्किल हालातों से जूझ रहा है। मदद के नाम पर उन्हें कर्ज देता है और अपने जाल में फंसाकर इन देशों को बर्बाद कर देता है। इसके बाद वे उन्हें उनके हालातों पर छोड़ देता है। श्रीलंका के साथ चीन ने ठीक ऐसा ही किया। श्रीलंका दिवालिया हो चुका है। वहां की जनता भयंकर आर्थिक संकट से गुजर रही है। श्रीलंका के आर्थिक संकट के पीछे चीन को बड़ी वजह माना जा रहा है। चीन ने पहले तो श्रीलंका को बर्बाद करके रख दिया। इसके बाद उसने श्रीलंका को उसके हालातों पर छोड़ दिया। ऐसे में भारत ही वो देश है, जो मुश्किल हालातों में श्रीलंका के साथ खड़ा है। उसकी मदद कर रहा है। श्रीलंका ने स्वयं यह बात कही है कि संकट के समय में केवल भारत ही हमारी सहायता के लिए आगे आया है।
पड़ोसी देशों में संकट आने पर भारत मानवीय तौर पर सहायता तो करता है ही। इसके अलावा देश में पलायन की समस्या बढ़ने का भी खतरा रहता है। भारत एक ऐसा देश है जहां हर कोई आसानी और शांति से रह सकता है। ऐसे में इन देशों पर संकट आने पर वहां के लोग भारत पलायन करने लगते है। श्रीलंका में संकट आने पर भी ऐसा ही होता हुआ देखने को मिला। आर्थिक दलदल में फंसने के बाद श्रीलंका के लोगों का जीना मुश्किल हो गया। जिसके चलते श्रीलंका के लोग समुद्र के रास्ते तमिलनाडु का रुख करने लगे थे।
ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि कोई देश जब चीन के हाथों यूं बर्बाद होता है, तो उससे भारत के लिए खतरा बढ़ जाता है। चीन इन देशों के माध्यम से भारत में घुसने और कमजोर करने का प्रयास तो करता ही है। साथ ही इससे पलायन की समस्या भी बढ़ने की संभावना रहती है। ऐसे में भारत के लिए यह बेहद ही जरूरी हो जाता है कि वो चालाक चीन की हर रणनीति, हर चाल पर बारीकी से नजर बनाए रखे।
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