यूक्रेन के साथ युद्ध के बीच भारत, रूस का एक सच्चा दोस्त बनकर सामने आया है। इस युद्ध के कारण भारत और रूस के बीच संबंध और गहरे हुए है। पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद भारत युद्ध में रूस के विरुद्ध नहीं गया और इस दौरान स्वयं का लाभ देखते हुए व्यापारिक संबंध बढ़ाने का निर्णय लिया, जो दोनो देशों के हित में था। ऐसा कर भारत ने एक तीर से कई निशाने साध लिए। भारत का रूस के साथ व्यापार बढ़ाने का निर्णय तो अच्छा है। परंतु इस बीच एक भारतीय कंपनी द्वारा ऐसा कदम उठाया गया है, जो अभी तो फायदा का सौदा दिख रहा है, लेकिन दीर्घावधि के लिए यह घातक भी साबित हो सकता है।
दरअसल, भारत की बड़ी सीमेंट निर्माता कंपनी अल्ट्राटेक (Ultratech) ने हाल ही में रूस के साथ 157,000 टन कोयले का आयात किया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार कंपनी ने भारत के सबसे बड़े निजी बैंक HDFC की सहायता से युआन मुद्रा का भुगतान करके रूसी कोयला खरीदा है। रिपोर्ट के अनुसार अल्ट्राटेक के द्वारा रूस की कोयला उत्पादक कंपनी एसयूईके (SUEK) से 157,000 टन कोयला का आयात किया जा रहा है, जो रूस के पूर्वी बंदरगाह वानिनो से एमवी मंगस जहास से भारत आ रहा है। रिपोर्ट में बताया गया कि यह सौदा 172,652,900 युआन यानी 25.81 मिलियन डॉलर का है। भारतीय रुपये में इस खेप का मूल्य करीबन 2 अरब डॉलर है।
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अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व होगा कम
उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह सौदा रूस की SUEK कंपनी की दुबई यूनिट से किया गया। इस डील के भुगतान के लिए चीनी मुद्रा युआन का इस्तेमाल किया जा रहा है। युआन के माध्यम से भुगतान का यह तरीका बेहद ही दुलर्भ है। भारतीय कंपनियों द्वारा किसी भी प्रकार के अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए युआन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। परंतु ऐसा माना जा रहा है कि यह तरीका सामान्य भी हो सकता है। इस माध्यम का उपयोग भविष्य में बढ़ सकता है।
असल में यह अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को तोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। दरअसल, यूक्रेन के साथ युद्ध के चलते पश्चिमी देशों ने रूस पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगा रखे है। इन प्रतिबंधों के असर से ही बचने के लिए रूस चीनी करेंसी युआन का अधिक उपयोग कर रहा है। युआन में भुगतान के बढ़ रहे इस्तेमाल से रूस को भी खूब लाभ हो रहा है। इसके माध्यम से वो वैश्विक स्तर पर अमेरिका के डॉलर के प्रभुत्व को भी कम कर सकता है।
वहीं भारत के लिहाज से देखा जाए तो यह सौदा दिखाता है कि वे रूस के साथ हर हाल में व्यापार करने के लिए कितना उत्सुक है। जैसा कि युद्ध के दौरान से ही देखने मिला कि कैसे पश्चिमी देश मिलकर तमाम प्रतिबंध लगा रूस को अलग-थलग करने के प्रयासों में जुटे रहे। परंतु इस दौरान भारत ने पश्चिमी देशों के इतर पूरे मामले पर अपना अलग रूख बनाए रखा और उस पर बड़ी ही मजबूती से कायम रहा। भारत ने यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस की आलोचना करने से दूरी बनाए रखे। इसके अलावा प्रतिबंध के बाद भी भारत ने रूस के साथ अपने तेल और कोयले जैसे आवश्यक संसाधन खरीद अपने व्यापारिक संबंध बनाए रखे। इसके अलावा चीन के नजरिए से भी यह एक बड़ा लाभकारी कदम है। क्योंकि इससे चीन को अपनी मुद्रा को वैश्विक बाजार में बढ़ाने में मदद मिल रही है।
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फिलहाल देखे तो यह एक फायदा का सौदा जरूर दिख रहा है। परंतु दीर्घालिक अवधि के लिए यह समस्या खड़ा करने वाला कदम साबित हो सकता है। ऐसा कर भारत, चीन को उसकी मुद्रा को वैश्विक स्तर पर बढ़ाने में सहायता कर रहा है। द्विपक्षीय व्यापार करने के लिए भारत को किसी दूसरे देश की करेंसी का इस्तेमाल करन की जगह स्वयं की करेंसी रुपये का इस्तेमाल करने की जरूरत है। देखा जाए तो आज के समय में भारत तेजी से प्रगति करने वाले अर्थव्यवस्था वाले देशों की सूची में शामिल है। भारत दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली इकोनमी बन गई है। इन सबके बावजूद भारतीय करेंसी रुपये को अभी तक पहचान नहीं मिल सकी । द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद से डॉलर दुनिया की प्रमुख आरक्षित मुद्रा रही है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली मुद्रा है।
ऐसे में अब समय आ गया है कि भारतीय करेंसी रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण करने की दिशा में तेजी से ठोस कदम उठाए जाए। इससे देश को कई तरह के लाभ होंगे। हालांकि भारत ने रूस के साथ व्यापार करने के लिए रुपये में भगुतान के मैकनिज्म का विकल्प खोजा है। परंतु अब तक इसे अमल में लाने में सफल नहीं हो पाया।
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