पनडुब्बी नौसेना के लिए एक बड़ा रणनीतिक हथियार होता है। पनडुब्बी एक प्रकार का जलायन होता है, जो पानी के अंदर रहकर अपना काम करता है। पनडुब्बी के माध्यम से समुद्र से दुश्मनों पर नजर रखी जाती है। सबमरीन लंबे समय तक पानी के नीचे रहकर सारी गतिविधियों को ऑब्जर्व करते हैं। जब पनडुब्बी अपने मिशन पर निकलती है तो कानों-कान किसी को खबर तक नहीं लग पाती।
INS सिंधु ध्वज रिटायर हुआ
हाल ही में भारतीय नौसेना की खास पनडुब्बी INS सिंधु ध्वज रिटायर हुआ। 35 सालों तक अपनी सेवा देने के बाद 16 जुलाई को INS सिंधु ध्वज ने भारतीय नौसेना को अलविदा कहा। INS सिंधु ध्वज कई अभियानों का हीरो रहा है। इसके रिटायर होने के बाद माना जाने लगा कि पनडुब्बियों की कमी के कारण भारतीय नौसेना कमजोर पड़ जाएगी, परंतु इसके विपरीत INS सिंधु ध्वज के रिटायर होने के बाद नौसेना स्वयं को और अधिक मजबूत बनाने में जुट गयी है।
भारतीय नौसेना के लिए एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) फीचर से लैस छह पनडुब्बियों का निर्माण कराया जा रहा है, इसे प्रोजेक्ट-75 (इंडिया) का नाम दिया गया है। प्रोजेक्ट की कुल कीमत करीब 43 हजार करोड़ है। रक्षा मंत्रालय ने प्रोजेक्ट-75 (I) के तहत दुनियाभर के देशों को रिक्यूएस्ट फॉर प्रपोजल (RFP) भेजने के लिए कहा था। सरकार ने प्रपोजल भेजने की समय सीमा पहले ही 30 नवंबर तक बढ़ा रखी है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इस बीच ही दक्षिण कोरियाई डेइवू और स्पेनिश नोवंटिया कंपनी ने भारत के साथ मिलकर रणनीतिक साझेदारी मॉडल के तहत लंबी सहनशक्ति वाली डीजल पनडुब्बी के निर्माण में दिलचस्पी दिखाई है। यहां आपको बता दें कि इस प्रोजेक्ट के तहत विदेशी कंपनियों को भारत की दो कंपनियों, एमडीएल या एलएंडटी में से किसी एक को चुनकर भारत में ही इन छह सबमरीन का निर्माण करना है।
देखा जाए तो अब तक पांच बड़ी कंपनियों ने पनडुब्बी के निर्माण के लिए रिक्यूएस्ट फॉर प्रपोजल (RFP) भेजे थे, जिसमें फ्रांस की नेवल ग्रुप-डीसीएनएस, रूस की रोसोबोरोनएक्सपोर्ट, जर्मनी की थायसेनक्रूप, स्पेन की नोवंटिया और दक्षिण कोरिया की डेइवू शामिल थीं। परंतु इन पांच में से फ्रांस की कंपनी ने परियोजना से अपने हाथ पीछे खींचने का निर्णय लिया। वहीं इसके अलावा अन्य कंपनियों द्वारा भी इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी गयी। इसके पीछे का कारण बताया जाता है कि कुछ मूल उपकरण निर्माता (ओईएम) भारतीय भागीदारों के साथ अपनी विशेषज्ञता और विशिष्ट समुद्री-सिद्ध ईंधन सेल AIP तकनीक साझा करने में सहज नहीं है।
और पढ़ें- चीन की ‘दादागिरी’ पर लगाम कसने के लिए तैयार है Quad, भारतीय नौसेना निभाएगी बड़ी भूमिका
एआईपी तकनीक है महत्वपूर्ण
एआईपी तकनीक के जरिए पनडुब्बियों को ज्यादा देर तक पानी में रह सकती है। पनडुब्बियां दो प्रकार की होती है, जिसमें पहली पारंपरिक और दूसरी परमाणु है। पारंपरिक पनडुब्बियां में डीजल-इलेक्ट्रिक इंजन का उपयोग किया जाता है। इन पनडुब्बियों को अपना ईंधन जलाने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जिसके लिए इन्हें हर दिन समुद्र की सतह पर आना पड़ता है। वहीं अगर इसमें AIP तकनीक को जोड़ दिया जाए, तो सप्ताह में केवल एक ही बार पनडुब्बियों को समुद्र की सतह पर आने की जरूरत पड़ेगी। वहीं जो पनडुब्बियां परमाणु शक्ति से संचालित होती हैं, उन्हें AIP तकनीक की आवश्यकता नहीं पड़ती।
यहां ध्यान देने योग्य यह बात है कि कोई भी पनडुब्बी तब अधिक घातक होती है जब तक वो दुश्मनों की नजरों से बचकर रहें। परंतु एक बार जब कोई पनडुब्बी समुद्र की सतह पर दिखाई देने लगे तो सोनार और मैरिटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट के माध्यम से दुश्मन उसका पता लगा सकते है। बार-बार पानी से बाहर आने से पनडुब्बियों की मारक क्षमता और बचाव क्षमता कम हो जाती है। ऐसे में AIP तकनीक काफी मददगार साबित होती है क्योंकि यह अधिक समय तक पनडुब्बी को समुद्र में रहने की इजाजत देती है। एआईपी प्रणाली एक विद्युत ईंधन सेल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोजन से ऊर्जा जारी करती है और केवल पानी के साथ अपशिष्ट के रूप में कम समुद्री प्रदूषण सुनिश्चित करता है। इस टेक्नोलॉजी से पनडुब्बियों में न तो ज्यादा तेज आवाज आती है और ना ही दुश्मन उसका जल्दी भनक लगा पाता है। अमेरिका, फ्रांस, चीन, यूके और रूस समेत दुनिया के कई बड़े देशों के पास यह तकनीक है।
बता दें कि दक्षिण कोरियाई कंपनी डेवयू ने वर्ष 2019 में अपनी पहली AIP से लैस पनडुब्बी को चालू किया था। वहीं स्पेनिश आइजैक पेरल को 22 अप्रैल 2021 को कार्टाजेना शिपयार्ड में लॉन्च किया गया था। इन दोनों ही पनडुब्बियों में बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों समेत जमीन पर हमला करने वाली मिसाइलें है।
और पढ़ें- भारतीय नौसेना खरीदने जा रही है फाइटर जेट, राफेल और सुपर हार्नेट में चल रही है टक्कर
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) भी प्रौद्योगिकी के विकास में एक अच्छे ब्रेक की उम्मीद कर रहा है और पहले से ही भूमि आधारित प्रोटोटाइप को साबित करके AIP प्रणाली विकसित कर चुका है। ऐसे में अगर यह कंपनियां भारत के साथ AIP प्रौद्योगिकी साझा करने के लिए तैयार होती है, तो यह पनडुब्बी निर्माण में काफी मदद प्रदान करेगा।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।