Layer’r Shot परफ्यूम ने जून महीने में दो विज्ञापन जारी किए और ये दोनों ही विज्ञापन अस्वीकार्य और विचित्र थे। विज्ञापन के नाम पर ये दोनों ही ऐसी भयावह सामग्री थे कि लोगों ने इस घटिया विज्ञापन को बनाने वाले निर्माताओं पर अपना गुस्सा उतारा। वहीं ASCI ने इस मुद्दे से निपटने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और नये दिशा-निर्देशों को जारी किया। इसके साथ ही विज्ञापन एजेंसियों को किसी भी लिंग को स्टीरियोटाइप नहीं करने को और महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करने से रोकने के लिए कहा है।
ये कोई पहला विज्ञापन नहीं है
यहां प्रश्न ये है कि क्या Layer’r Shot परफ्यूम विज्ञापन महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करने वाला पहला विज्ञापन था? क्या पहले महिलाओं को एक यौन वस्तु के रूप में पेश नहीं किया गया था? उत्तर ये है कि ऐसे कई ब्रांड और कई विज्ञापन आ चुके हैं जिन्होंने बार-बार ऐसे कृत्य किए हैं। आइए उन विज्ञापनों के बारे में जानें।
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लक्स का विज्ञापन जो महिलाओं का सूक्ष्म वस्तुकरण दिखाता है
विज्ञापन में रेशम के वस्त्रों में सजी महिलाओं को दिखाया गया है। विज्ञापन में महिलाओं के चिकने पैरों को प्रदर्शित किया गया जो कपड़े से कम चमकदार और नरम नहीं दिखते। विज्ञापनों में आकर्षक पोशाक पहने महिलाओं को मोहक संवाद बोलते हुए दिखाया गया है। कोई भी ये समझने में देर नहीं लगाएगा कि इस विज्ञापन में महिलाओं को यौन वस्तुओं के रूप में पेश किया गया है। भारतीय दर्शक इस तरह के वीडियो और तस्वीरों से भली-भांति परिचित हैं।
लीला चिटनिस और मधुबाला से लेकर माधुरी दीक्षित, करिश्मा, ऐश्वर्या राय और करीना तक, सभी ने लक्स की अच्छाई का समर्थन किया है। जबकि उनमें से कुछ को साबुन से खेलते हुए देखा जा सकता है, अन्य को गुलाब की पंखुड़ी वाले बाथटब में नहाते हुए दिखाया गया है। एकमात्र ब्रांड जिसे लगभग 50 भारतीय फिल्मी सितारों का समर्थन मिला है, वह गर्व से दावा करता है कि “लक्स- आपकी खूबसूरत का राज”।
महिलाओं के वस्तुकरण में कोका कोला भी आगे है
कोका कोला भी महिलाओं के वस्तुकरण की पद्धति में शामिल है ताकि उसके अधिक से अधिक उत्पाद बिक सकें। अपने उत्पादों को बेचने के लिए पश्चिमी परिधानों को पहनाने, रंग प्रतीकवाद और यौन प्रतीकात्मकता प्रदर्शित करने से भी पीछे नहीं है। प्रीमियम ब्रांड के लिए एक नये विज्ञापन में लड़कियों को आधा नग्न और दूध से ढका हुआ दिखाया गया, ऐसे जैसे मॉडल का कपड़ा, कपड़ा न होकर पीने की कोई वस्तु हो।
Wild Stone का विज्ञापन
सभी विज्ञापनों में से डियोड्रेंट और परफ्यूम के विज्ञापन सबसे अधिक कामुक जान पड़ते हैं। ऐसे विज्ञापन महिलाओं को हद से अधिक वस्तुपरक बनाते हैं। Wild Stone के विज्ञापन में आप देखेंगे कि एक महिला को ऐसे ऐक्ट करते हुए दिखाया गया है जैसे वो पुरुष द्वारा उपयोग किए गए Wild Stone के सुगंध में खो गयी है और अपनी सारी गरिमा को पीछे छोड़ उस पुरुष के साथ जा सकती है। Wild Stone के कई विज्ञापन देखकर आप समझ सकते हैं कि ये कितना घृणित।
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वाइल्ड स्टोन डिओडोरेंट के लिए ऐसा ही एक और विज्ञापन है। ब्रांड ने कुछ साल पहले ‘इट थिंग्स’ टैगलाइन के साथ एक विज्ञापन चलाया था। दुर्गा पूजा की पृष्ठभूमि के बीच, विज्ञापन में पारंपरिक बंगाली पोशाक में एक विवाहित महिला को दिखाया गया था, जो गलती से एक अजनबी पुरुष की कल्पनाओं में खो गयी थी। इस पर बंगाली समुदाय बहुत नाराज था और इस प्रकार, समुदाय ने अपने धार्मिक त्योहार की मानहानि का विरोध किया।
Amul Macho का विज्ञापन
अब, अंडरगारमेंट ब्रांड के विज्ञापन पर आते हैं, जिसमें सना खान दिखायी देती हैं। इस विज्ञापन में दिखाए गए अरुचिकर और अश्लील संवादों और भावों को देखकर कोई भी आसानी से समझ सकता है कि कैसे अमूल माचो के इन विज्ञापनों में स्पष्ट रूप से दोहरे अर्थ वाले तत्व हैं। अमूल माचो के सना खान अभिनीत इस आपत्तिजनक सामग्री को काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी।
स्लाइस, थम्स अप और भी बहुत कुछ
स्लाइस का एक विज्ञापन जिसमें कैटरीना कैफ को कामुकता से मैंगो ड्रिंक पीते हुए दिखाया गया है, उसे कैसे अनदेखा किया जा सकता है जब बात वस्तुकरन की हो रही हों। उनके होठों से ड्रिंक टपकने का दृश्य हो या ‘थम्स अप’ वाला विज्ञापन जिसमें अभिनेता रणवीर सिंह एक ‘चोर’ के हाथों से एक कीमती चीज छीनने के लिए मिस्र के पिरामिड पर वीरतापूर्वक कूदते हैं, दोनों विज्ञापन महिलाओं को चित्रित करने के लिए चर्चा में रहे हैं। विज्ञापन एजेंसियां इन विज्ञापनों में महिलाओं को एक ऐसी वस्तु के रूप में चित्रित करती हैं। ‘थम्स अप’ ब्रांड के एक अन्य विज्ञापन में सलमान खान दिखते हैं जो केवल एक बोतल पकड़ने के लिए हेलीकॉप्टर और तेज कारों पर कूदते और उतरते हैं, जिसमें महिला को भी दिखाया गया है जिसे विज्ञापन में केवल एक वस्तु के रूप में इस्तेमाल किया गया है।
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विज्ञापन एजेंसियां महिलाओं को केवल एक यौन वस्तु के रूप में ही दिखाती है। हालांकि, एएससीआई के नये दिशानिर्देश को आशा की नयी किरण के रूप में देखा जा सकता है। एक फिल्म, पुस्तक या फिर विज्ञापन का एक समाज पर बहुत अधिक असर पड़ता है। ऐसे में नैतिकता तो यही है कि अपने किसी भी कृत्य को एक जिम्मेदारी की तरह देखा जाए। ये भी समझा होगा कि जाए कि महिल कोई वस्तु नहीं है।
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