देश की वयोवृद्ध पार्टी होने के नाते कांग्रेस से जिस सुचिता की उम्मीद की जाती है उसको कांग्रेस ने कभी माना ही नहीं। हाँ, उस सुचिता की अवहेलना कांग्रेस और उसके नेताओं ने अवश्य की। हमेशा अपनी हार पर कुंठा निकालने के चक्कर में अपने ही पैर में कुल्हाडी मारने के आदी हो चुके कांग्रेसी नेता अब सच में अपने कद की तो मिट्टी पलीद कर ही रहे हैं साथ ही उस पद की मान-मर्यादा को भंग कर रहे हैं। जो उनको मिल तो गया पर उसका आदर करना शायद कांग्रेस के यह वरिष्ठ नेतागण भूल गए। निश्चित रूप से संसद में नेता विपक्ष की कुर्सी में 2014 के बाद कुछ तो ऐसा घुस गया है कि जो उस पर बैठता है वो अनर्गल और विवादास्पद टिप्पणी करने का आदी हो जाता है। फिर चाहे वो मल्लिकार्जुन खड़गे हों या अधीर रंजन चौधरी और कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष को मुंह की बीमारी ही लग जाती है और यह तथ्य है।
दरअसल, हाल ही में एक टिप्पणी के बाद लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ‘राष्ट्रपत्नी’ कहा। ये टिप्पणी तब आई जब कांग्रेस प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा सोनिया गांधी से नेशनल हेराल्ड मामले में पूछताछ का विरोध कर रही थी। विरोध बढने के बाद मीडिया को जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “यह जुबान फिसलने से हुआ है। मैं व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति से मिलकर इस मामले में माफी मांगूंगा।”
न जाने कितनी बार ऐसे कांग्रेस नेताओं की जुबान फ़िसलती है। कितनी बार भाषा की अज्ञानता वाला बहाना आता है। क्योंकि अधीर रंजन ने इस बार भी यही कहकर बचने की कोशिश की कि “वो बंगाली हैं इसलिए उनके मुंह से अज्ञानता में राष्ट्रपति की बजाय राष्ट्रपत्नी निकल गया।” ऐसे में यह जानना आवश्यक है कि ऐसा कितनी बार है जब अधीर रंजन चौधरी से गलती से मिस्टेक हो गई।
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अधीर रंजन चौधरी की अनेकों बार ज़बान फ़िसली
पहला, 2019 में लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने निर्मला सीतारमण को ‘निर्बला’ कहा था। इसके अलावा, उन्होंने सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को ‘नॉन-डिलीवरी एजेंसी’ कहकर उसकी आलोचना भी की थी।
दूसरा, 2019 में ही अधीर ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध करते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को ‘प्रवासी’ कहा था। “उनके घर गुजरात में हैं लेकिन वे दिल्ली आ गए हैं।” ऐसे में अधीर बाबू को तो कबका बंगाल वापस चला जाना चाहिए था।
तीसरा, अधीर रंजन ने 2020 में बजट सत्र के दौरान अपने बयान से विवाद खड़ा कर दिया था। उन्होंने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा था कि “ये महात्मा गांधी को गाली देते हैं। ये रावण की संतान हैं।” चौधरी ने कहा था कि “भाजपा के सांसद मोदी के चापलूस हैं।” इस पर बीजेपी नेताओं ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि “हम इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा नहीं कहते।” इस पर अधीर ने आगे कहा था, “गंगा और नाली की तुलना नहीं की जा सकती।”
चौथा, पश्चिम बंगाल के बशीरहाट में एक जनसभा के दौरान अधीर रंजन ने कहा था कि “मैं पाकिस्तानी हूं। तुम लोगों को जो करना है कर लो।” पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर निशाना साधते हुए कहा था कि “ये उनके पिता जी की खेती नहीं है।”
ऐसे कई घटनाक्रम रहे हैं जब अधीर रंजन चौधरी के बयानों में विष का भाग देखा गया। पर अभी तो उनसे पुराने कांग्रेसी मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रकरण और कथित रूप से फिसलती जुबान के उदाहरण बाकी हैं। यह वही मल्लिकार्जुन खड़गे हैं जो अधीर रंजन चौधरी से पूर्व लोकसभा में कांग्रेस के नेता थे और अब वो राज्यसभा में कांग्रेस के नेता हैं। अर्थात सदन बदला पर ज़िम्मेदारी वही बनी हुई है। इसलिए हमनें शुरुआत में कहा कि यह कांग्रेस के नेताओं को सदन में ‘नेता’ का तमगा मिलते ही आखिर क्या हो जाता है जो वो मान-मर्यादा को गिरवी रख अनर्गल बयानबाज़ी करते हैं।
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मल्लिकार्जुन खड़गे भी कुछ कम नहीं है
अब मल्लिकार्जुन खड़गे के बयानों पर आयें तो, 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे विवादों में आ गए थे। चुनाव में भाजपा की जीत को चुनौती देते हुए खड़गे ने कहा था, ”वह जहां भी जाते हैं, कहते रहते हैं कि कांग्रेस 40 सीटें नहीं जीतेगी। अगर कांग्रेस को 40 से ज्यादा सीटें मिलती हैं, तो क्या मोदी दिल्ली के विजय चौक पर फांसी लगा लेंगे?” यूँ तो किसी भी नेता से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती जहाँ वो ऐसी बात कहे और वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे से एक वरिष्ठ नेता होने के नाते उनसे सभी “बैटर उम्मीद किए थे।”
दूसरा विवादित बयान था, एक लोकसभा बहस के दौरान सरकार ने कहा था कि संविधान में ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द का विपक्ष द्वारा ‘दुरुपयोग’ किया गया है। इस जुबानी जंग के जवाब में मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि “अगर संविधान बदलने की कोई कोशिश की गई तो उसके बाद खून-खराबा होगा।”सदन से ऐसे शब्द और आह्वाहन से अगर देश में आग नहीं भी लग रही होगी तब भी इसे सुनकर अवश्य लग गई होगी।
तीसरा, एक मामले के बाद खड़गे के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई, जब उन्होंने भारत रत्न पुरस्कार का कथित रूप से अनादर किया था। सौ की सीधी बात यह है कि, चाहे अधीर रंजन चौधरी हों या मल्लिकार्जुन खड़गे हों दोनों ने नेता होने की मान-मर्यादा को सदा-सर्वदा नीलाम ही किया है। उपरोक्त सभी घटनाएं कांग्रेस की जर्जर स्थिति और उसके नेताओं की मुंह की बीमारी को दर्शाती हैं। जाहिर है, विपक्ष के नेताओं में बहुत अधीरता है और नाम अधीर होने से अधीर हो जाना जितनी बडी बेवकूफी है शायद ही उससे बडी बेवकूफी कहीं और देखने मिलेगी।
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