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राजनाथ सिंह– वो व्यक्ति जिसके प्रति भाजपा से लेकर सम्पूर्ण राष्ट्र कृतज्ञ है

देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी यात्रा !

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
10 July 2022
in चर्चित
raajnaath

Source- Google

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“हम इसकी कड़ी से कड़ी निन्दा करते हैं….”

यह लाइन हमने सोशल मीडिया पर कभी न कभी तो अवश्य सुनी होगी। पर इस लाइन का उपहास जितनी बार जाने अनजाने हम सभी ने उड़ाया है न, उस व्यक्ति के अधिकतम योगदानों से आज भी हम सब अपरिचित हैं। आज हम बात करते हैं राजनाथ सिंह की, जो न केवल देश के सबसे उच्चतम सेवकों में से एक रहे हैं, अपितु जिनके कारण भाजपा भी अक्षुण्ण है, और भारत भी।

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अब आप भी सोच रहे हैं – ऐसे कैसे? भला एक व्यक्ति के कारण भारत की अखंडता की रक्षा कैसे अक्षुण्ण हो सकती है? क्या हमारी सेना योग्य नहीं? ऐसा नहीं, परंतु राजनीतिक इच्छाशक्ति भी कोई चीज़ होती है, और 2010 तक आते आते वह लगभग नगण्य पड़ चुकी थी। कांग्रेस का भारत पर एकछत्र राज था, पर उसके निरंकुश शासन से पूरा देश तंग आ चुका था। परंतु उनके पास एक मजबूत और दमदार विकल्प की कमी थी। अब इस समय भारतीय जनता पार्टी देश में सबसे प्रभावशाली विपक्षी पार्टी थी, परंतु उसमें भी समस्याओं का भंडार लगा हुआ था। न अब उसे दिशा देने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी थे, न ही बढ़ावा देने के लिए कोई श्यामा प्रसाद मुखर्जी या दीनदयाल मुखर्जी जैसे ओजस्वी नेता। अब नेतृत्व के नाम पर लालकृष्ण आडवाणी ही बचे थे, जो नेतृत्व पर तो मानो जैसे कुंडली मारकर बैठ चुके थे।

और पढ़ें: “भिड़ने की न सोचें, परिणाम अच्छे नहीं होंगे”, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन को चेतावनी दी

राजनाथ सिंह कैसे उभरे?

राजनीति उन्हे विरासत में नहीं मिली, परंतु वे उसकी ओर काफी आकर्षित हुए। मूल रूप से कृषि परिवार से आने वाले राजनाथ सिंह का जन्म  भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जिले के एक छोटे से ग्राम भाभोरा में 10 जून 1951 को हुआ था। इनके पिता का नाम राम बदन सिंह और माता का नाम गुजराती देवी प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात इन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में भौतिक शास्त्र में आचार्य की उपाधी प्राप्त की। किशोरावस्था से ही वे १३ वर्ष की आयु में ही संघ परिवार से जुड़ गए और मिर्ज़ापुर में भौतिकी व्याख्यता की नौकरी लगने के बाद भी संघ से जुड़े रहे। १९७४ में, माथे पर एक चमकदार लाल तिलक के साथ, उन्हें भारतीय जनसंघ का सचिव नियुक्त किया गया।

जब आपातकाल भारत पर थोपा गया, तो राजनाथ ने तुरंत इंदिरा गांधी के अत्याचारी शासन के विरुद्ध नारा बुलंद किया, और परिणामस्वरूप उन्हे 2 वर्ष कारावास भोगना पड़ा। परंतु उनका प्रयास निष्फल नहीं गया। 1977 में, वह मिर्जापुर से विधान सभा के सदस्य चुने गए। उस समय वह जयप्रकाश नारायण के जेपी आंदोलन से प्रभावित थे और जनता पार्टी में शामिल हो गए थे और मिर्जापुर से विधान सभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे। उस समय उन्होंने राज्य (राजनीति) में लोकप्रियता हासिल की और 1980 में नवनिर्मित भाजपा में शामिल हो गए और पार्टी के शुरुआती सदस्यों में से एक थे। वह 1984 में भाजपा युवा विंग के राज्य अध्यक्ष, 1986 में राष्ट्रीय महासचिव और 1988 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उन्हें उत्तर प्रदेश विधान परिषद में भी चुना गया था।

राजनाथ सिंह उन नेताओं के गुट में शामिल हैं, जो ढिंढोरा पीटने में नहीं, अपितु अपने काम से उत्तर देने में विश्वास रखते हैं। जब कल्याण सिंह की सरकार प्रथमतया उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई, तो राजनाथ सिंह को शिक्षा मंत्रालय का पद प्रभार सौंपा गया। आज जिस सख्ती से योगी आदित्यनाथ अपराधियों के प्रति रवैया अपना रहे हैं, उसकी झलक राजनाथ सिंह ने अपने कार्यकाल में ही दे दी, जब उन्होंने उस समय परीक्षा में चीटिंग और चीटिंग माफिया के विरुद्ध डंडा चलाया, जब कोई सपने में भी इसके विरुद्ध सोच नहीं सकता था, परंतु अयोध्या जन्मभूमि आंदोलन और चीटिंग माफिया प्रकरण के कारण जल्द ही राजनाथ सिंह को अपने पद से हाथ धोना पड़ा।

और पढ़ें: राजनाथ सिंह ने दी पेपर ड्रैगन को चेतावनी, UNCLOS पर चीन की मनमानी व्याख्या नहीं चलेगी

राजनाथ सिंह जब 2000 में स्वयं मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने पुनः इस प्रवृत्ति को लागू करने का प्रयास किया, परंतु उनके इस निर्णय का स्वागत करने का बजाय इस राज्य की जनता ने उल्टा विरोध किया, क्योंकि मुफ्तखोरी की बीमारी तब केवल दिल्ली तक सीमित नहीं थी। 2002 में राजनाथ सिंह को पुनः सत्ता से हाथ धोना पड़ा, और जनता ने पहले मायावती और फिर उस मुलायम सिंह यादव को सत्ता में बैठाया, जो भ्रष्ट और निरंकुश लोगों को खुलेआम बढ़ावा दे।

परंतु राजनाथ सिंह ने कभी पराजय नहीं मानी। उनके आदर्श स्पष्ट और मजबूत थे। दिसंबर 2005 को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने, और 19 दिसंबर 2009 तक वह इस पद पर रहे। इस बीच भाजपा के पास देश की परिस्थितियों को देखते हुए इतना तो स्पष्ट था कि वह आसानी से 2009 में काँग्रेस को 2009 में सत्ता से पदच्युत कर सकती हैं, परंतु आडवाणी की हठधर्मिता के कारण ये सुनहरा अवसर उनके हाथ से निकल गया। परंतु इस समय भी राजनाथ सिंह ने अपनी सूझ बूझ का परिचय अवश्य दिया। भाजपा के लिए निरंतर सरदर्द बनते जा रहे जसवंत सिंह ने जब मुहम्मद अली जिन्ना के गुणगान में एक पुस्तक निकाली, तो सबकी आशाओं के विपरीत राजनाथ सिंह ने न केवल उनकी भर्त्सना की, अपितु उसे पार्टी से भी निकलवाया।

परंतु उनका असल व्यक्तित्व 2013 में निकलकर सामने आया। राजनाथ सिंह को पुनः भाजपा का अध्यक्ष चुना गया था, क्योंकि नितिन गडकरी ने तब इस्तीफा दिया था। तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभुत्व हर ओर था, और उनका प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में चुना जाना था। परंतु इसमें सबसे बड़ी अड़चन फिर बन रहे थे लालकृष्ण आडवाणी, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि नरेंद्र मोदी पीएम उम्मीदवार बने। यूं तो राजनाथ सिंह भी नरेंद्र मोदी के कोई विशेष पक्षधर नहीं थे, परंतु वे परिस्थितियों से अनभिज्ञ नहीं थे, और वे भली भांति जानते थे कि यदि उन्होंने नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार नहीं बनाया, तो भाजपा की सत्ता वापसी करना असंभव हो जाएगा। फिर आगे क्या, इसके लिए कोई रॉकेट साइंस लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

इसका उन्हें उचित पुरस्कार भी मिला, क्योंकि जब नरेंद्र मोदी की सरकार, तो प्रथम सरकार में वे देश के गृह मंत्री बने, और दूसरे सत्र में वे रक्षा मंत्री के रूप में सबके समक्ष आए। वे भले ही लोगों के लिए ‘निन्दा मामा’ के रूप में चर्चित हों, पर उनकी कार्यकुशलता और उनकी क्षमता पर शायद ही कोई संदेह कर पाएगा। यदि राजनाथ सिंह नहीं होते, तो न ही भाजपा आज देश में इतनी शक्तिशाली हो पाती, और न ही भारत संसार के समक्ष फिर से अपनी योग्यता दिखाने योग्य हो पाता।

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Tags: उत्तर प्रदेशनरेंद्र मोदीभाजपाभारतराजनाथ सिंह
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