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महिलाओं से लेकर फॉर्मूला-1 के रेसर तक, ये है Marlboro सिगरेट की लोकप्रियता की कहानी

ऐसी अनूठी कहानी दूसरी कोई और नहीं।

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
16 July 2022
in प्रीमियम
Marlboro
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हाल ही में फिलिप मॉरिस कंपनी के CEO जेसेक ओलज़ाक ने बताया कि ब्रिटेन में लोगों की सिगरेट की लत छुड़ाने हेतु एक महत्वपूर्ण योजना के अंतर्गत आने वाले 10 वर्षों में एक महत्वपूर्ण सिगरेट ब्रांड बाजार से हमेशा-हमेशा के लिए गायब हो जाएगा। सरकार ने 2030 तक ब्रिटेन को ध्रूमपान मुक्त बनाने की दिशा में जोर देने को कहा है।

ऐसा क्या अमृत रस था भई?

परंतु वो ब्रांड है कौन सा और वो इतना क्यों महत्वपूर्ण है कि इसके हटने से मानो भूचाल आ जाएगा? कभी खांसी भगाने के लिए हलाहल का भोग लगाने को कहा गया है? कभी बुखार उतारने के लिए कोयले का सेवन करने को कहा गया है? आप भी सोच रहे होंगे कि लेखक महोदय कौन सा भांग का गोला गटक के ये प्रश्न पूछ रहे हैं? ये कथा है मार्लबोरो की  जो महिलाओं से लेकर फॉर्मूला-1 के रेसर तक में लोकप्रिय थी।

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हैं? एक सिगरेट क्या अमृत रस थी भई? अमृत-वमृत कुछ नहीं था, बस मार्केटिंग के मूल मंत्रों को समझने में सफल रहे थे मार्लबोरो के निर्माता। इसका प्रारंभ 1846 में हुआ, जब लंदन के बॉन्ड स्ट्रीट पर तंबाकू विक्रेता फिलिप मॉरिस ने तंबाकू और सिगरेट बेचना प्रारंभ किया। लेकिन क्या आपको पता है कि इस कंपनी के साथ हमारे विवादित मोदी भी जुड़े हुए हैं? कम लोगों को पता हैं कि मार्लबोरो के स्वामी फिलिप मॉरिस इंटेरनेशनल में काफी स्टेक यानी हिस्सेदारी मोदी इंटरप्राइजेज़ यानी ललित मोदी एंड कंपनी की भी है, जिसे कुछ ही वर्ष पूर्व बिकवाली पर डालना पड़ा।

और पढ़ें- परमाणु ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित कर अरबों रुपये बचा सकता है भारत

अब मूल इतिहास पर आते हैं, 1873 में कैंसर से अकाल मृत्यु के बाद ये काम उसकी पत्नी मारग्रेट और भाई लियोपोल्ड ने संभाला। मार्लबोरो का मूल नाम लंदन में स्थित ग्रेट मार्लबोरो स्ट्रीट में स्थित उसके प्रथम फैक्टरी से आया, जहां इसका निर्माण पहली बार प्रारंभ हुआ। परंतु मार्लबोरो को उसका आधिकारिक नाम मिलने में कई वर्ष लग गए और आखिरकार 1924 में ‘मार्लबोरो’ नाम से ये प्रथमत्या अमेरिका में प्रकाशित हुआ।

इसके बाद मार्लबोरो ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे बढ़ता ही चला गया। प्रारंभ में 1920 तक इसे महिलाओं के अनुकूल दिखाया गया और बताया गया कि कैसे मार्लबोरो सिगरेट का होना महिलाओं के लिए ‘वैभव’ की बात है।  

उन दिनों ‘Camel’, ‘Lucky Strike’, ‘Chesterfield’ जैसे सिगरेट प्रचलन में थे, ‘Gold Flake’ ने पंख फैलाने प्रारंभ किये थे, परंतु द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात सब कुछ बदल गया और फिर शीघ्र ही मार्केटिंग का ऐसा खेल रचा गया कि जो मार्लबोरो कल तक महिलाओं के लिए एक स्टेटस सिंबल था वह पुरुषों के लिए ‘गौरव का प्रतीक’ बन गया। अब मार्लबोरो केवल महिलाओं की खास नहीं, पुरुषों की भी पसंद बन चुकी थी।

और पढ़ें- जानवरों की हड्डियों से बनी क्रोकरी का इस्तेमाल बंद करना क्यों आवश्यक है?

यह सिगरेट डॉक्टर की पसंद कैसे बनी?

परंतु प्रश्न तो अब भी स्वाभाविक है, यह सिगरेट डॉक्टर की पसंद कैसे बनी? 50–60 के दशक में जब धूम्रपान से लोग खांसते थे, तो संदेह की सुई स्वाभाविक आनी थी। ऐसे में तंबाकू निर्माताओं ने अखबारों का बेजोड़ प्रयोग किया। उन्होंने ऐसे विज्ञापन प्रसारित किये, जिसमें डॉक्टर खींसें निपोरते हुए कह रहा है कि समस्या प्रदूषित वातावरण में है हमारे उत्पाद में नहीं। दूसरे शब्दों में, “टेकनीक ही गलत है तुम्हारी, हम तो सही ही बात बता रहे हैं…”

ऐसे में यदि Camel जैसे अति प्रचलित सिगरेट ब्रांड का यह हाल था तो सोचिए मार्लबोरो ने कैसे  प्रसिद्धि कमाई होगी। परंतु चिकित्सा ही एक क्षेत्र नहीं था जिसके माध्यम से मार्लबोरो को प्रसिद्धि मिली। मार्लबोरो एक समय खेलों का भी प्रतीक चिह्न माना जाता था। जी हां, जिन खेलों से शराब, मदिरा और धूम्रपान को कोसों दूर रखे जाने का दावा किया जाता है उसी से मार्लबोरो जैसी कंपनियों को न केवल फार्मूला वन, अपितु एक समय ओलंपिक, बैडमिंटन, यहां तक कि क्रिकेट तक से जोड़ा गया था। लोग मार्लबोरो को पुरुषत्व का प्रतीक मानते थे। 1980 से 1990 तक थॉमस कप एवं सुदिरमान कप के लिए मार्लबोरो एक प्रमुख स्पॉन्सर हुआ करता था, परंतु फिर एक समय विल्स और बेन्सन एंड हेजेस जैसे सिगरेट निर्माता क्रिकेट विश्व कप भी खुलेआम स्पॉन्सर करते थे।

मार्लबोरो की सफलता सबसे अधिक फार्मूला वन मोटो स्पोर्ट्स से ही दिखी है। चाहे आर्यटन सेन्ना हो, माइकल शूमाकर हो या फिर कोई और, मार्लबोरो है यानी भौकाल है। कई फार्मूला वन प्लेयरों का तो खर्चा पानी तक इस ब्रांड ने उठाया।

एकाएक कैसे गायब हो गया मार्लबोरो?

परंतु ऐसा क्या हुआ कि जो ब्रांड एक समय पूरे संसार पर एकछत्र राज करता था वह एकाएक गायब हो गया? क्या लोग धूम्रपान के हानिकारक साइड इफेक्ट के प्रति जागरूक हो गए? क्या उन्हें आभास हुआ कि वे जो कर रहे हैं, गलत कर रहे हैं? समझना होगा कि ऐसा भी नहीं हैं।

21वीं सदी के प्रारम्भिक दशक में धूम्रपान के क्षेत्र में नये माध्यमों ने जगह ले ली। लोग अब केवल पारंपरिक सिगरेट पर ही निर्भर नहीं रहे। अब वेपिंग यानी ई सिगरेट या फिर हुक्का भी लोगों में लोकप्रिय होने लगा, और लोगों का पारंपरिक सिगरेट से मोहभंग होने लगा। ऐसे में जो भी कहे कि धूम्रपान को खत्म करने के दृष्टिकोण से लोग सिगरेट छोड़ रहे हैं, उन्हें तो हम स्पष्ट कह सकते हैं कि “मैं आपको सीरियसली नहीं लेता”।

परंतु ये कहना गलत नहीं होगा कि मार्लबोरो की यात्रा जैसी भी हो, बड़ी रोचक रही है। किसी समय इसका प्रभुत्व ऐसा था कि महिलाओं से इसका प्रभुत्व डॉक्टरों तक में व्याप्त था। ऐसे में अगर थ्री इडियट्स के एक संवाद को मार्लबोरो के परिप्रेक्ष्य में कहें तो “कुछ तो बात थी उसमें, जो सेहत के लिए हानिकारक होकर भी वो डॉक्टरों की पसंद हुआ करती थी…”

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