एक समय होता था, जब अमेरिका के उंगली उठाते ही समस्त संसार त्राहिमाम कर उठता था। व्हाइट हाउस के एक इशारे पर समस्त संसार उसका दास हो जाता था। परंतु वो एक समय हुआ करता था, और एक आज का समय है, जब अफ्रीकी देश तक अमेरिका की गीदड़ भभकियों को गंभीरता से नहीं लेते और अब अमेरिका को अपनी बात मनवाने के लिए भारत और जापान के समक्ष गिड़गिड़ाना पड़ रहा है।
असल में अमेरिका ने हाल ही में अनुरोध किया है कि भारत और जापान रूसी तेल को खरीदने से परहेज करें। ब्लूमबर्ग में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका विश्व भर में धड़ल्ले से बेचे जा रहे रूसी तेल पर लगाम लगाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके लिए वह व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास कर रहे हैं। परंतु यह कार्य सुनने में जितना सरल लग रहा है, वास्तव में वह इतना है नहीं।
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रूसी क्रूड ऑयल का दबदबा
अमेरिका की ऊर्जा सचिव जेनिफर ग्रेनहोम को अपने क्वाड सहयोगियों को इस योजना के लिए स्वीकृति करवाने का काम सौंपा गया है, ताकि रूसी तेल किसी भी स्थिति में 60 डॉलर प्रति बैरेल से अधिक न कमा पाए। अगर ऐसा हुआ, तो वैसे ही गैर रूसी तेल अंतर्राष्ट्रीय बाजार में औसतन 100 डॉलर प्रति बैरेल कमा रहा है, और इससे अमेरिकी सहयोगियों, विशेषकर मध्य एशिया के उसके साथियों को खूब लाभ मिलेगा।परंतु अमेरिका को ऐसा करने की नौबत क्यों आई? Centre for Research on Energy and Clean Air, Moscow के अनुसार वर्तमान कालखंड यानी फरवरी से अब तक केवल तेल के निर्यात से रूस को 93 बिलियन यूरो की रिकॉर्ड कमाई हुई, जिसमें 97 बिलियन डॉलर की कमाई यानी लगभग दो तिहाई कमाई केवल तेल के निर्यात से सामने आई है।
प्रश्न तो अब भी उठता है कि ये तेल खरीद कौन रहा है? अमेरिका के भय से अधिकतम विकसित देशों ने रूस से क्रय विक्रय यानी किसी भी प्रकार के व्यापार पर प्रतिबंध लगाया है। परंतु दिवालियापन के भय से कई यूरोपीय देश महंगे दाम पर भी रूसी तेल खरीदने को तैयार हैं और जर्मनी जैसे देश चाहकर भी प्रतिबंध लगाने को तैयार नहीं। ऐसे में आगमन होता है भारत और चीन जैसे देशों का, जिन्हें रूस ने भर-भर के डिस्काउंट प्रदान किये, और मौके पर ताबड़तोड़ छक्के मारते हुए इन दोनों ही देशों ने भारी मात्रा में अमेरिका के कोपभाजन को ठेंगे पर रखते हुए पहले से कहीं अधिक रूसी तेल को खरीदना प्रारंभ किया।
परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं है। 2021 में भारत ने 16 मिलियन बैरेल रूसी तेल को आयात किया जो उसके कुल तेल आयात का आधा भी नहीं था। परंतु केवल फरवरी से लेकर जून तक में ही भारत ने 13 मिलियन बैरल से अधिक रूसी क्रूड ऑयल को आयात किया है ताकि तेल के दाम भी नियंत्रित रहे और अरब जगत एवं अमेरिका की हेकड़ी को भी ठेंगा दिखाया जा सके।
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ये नया भारत है झुकेगा नहीं
परंतु बात अब केवल तेल तक ही सीमित नहीं है। लाइवमिन्ट के रिपोर्ट के अनुसार, रूस के कोयला को अब भारत को एक्सपोर्ट की तैयारियां ज़ोरों शोरों पे है, क्योंकि इसके खरीददार पिछले कुछ माह में काफी तेज़ी से बढ़े हैं। रिपोर्ट के अंश अनुसार, “जहां यूरोप ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकल्पों की ओर देखता है, वहीं रूस ने भारत को अपनी सेल्स बढ़ा दी है, जो प्रारंभ में उतना महत्वपूर्ण मार्केट कोयले के परिप्रेक्ष्य में नहीं था। तुर्की अब भी एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है इस क्षेत्र में”। मतलब स्पष्ट है, जो रूस का कोयला पहले मूल रूप से यूरोप, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे बड़े-बड़े क्षेत्रों में जाता था, अब वो एकमुश्त रूप से अमेरिका की कृपा से भारत को पहुंचेगा, क्योंकि जितने ज्यादा सैंक्शन, उतने अधिक भारत को लाभ।
ऐसे में अमेरिका जापान के कंधे पर बंदूक रखकर भारत के सामने रूसी तेल न खरीदने के लिए मिमिया रहा है, क्योंकि उसके अर्थव्यवस्था के पलीते लगे पड़े हैं, और वह भी जानता है कि यदि भारत ने इस बार मना कर दिया, तो उसके अर्थव्यवस्था की ऐसी की तैसी हो जाएगी। परंतु भारत ने भी स्पष्ट कर दिया है – वह चलेगा तो अपने हिसाब से, किसी के इशारों पर नहीं।
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