उत्तर प्रदेश सरकार गिद्धों की घटती आबादी को रोकने के लिए एक बड़े कदम के तहत गोरखपुर में दुनिया का पहला गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केंद्र बना रही है। इसका उद्घाटन 3 सितंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करेंगे। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर वन मंडल स्थित महराजगंज के फरेंदा में बन रहे केंद्र के निर्माण के लिए 1.06 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बजट जारी किया गया। यह संरक्षण केंद्र गोरखपुर शहर के विकास में भी अहम भूमिका निभाएगा। इससे पहले 2021 में रेड हेडेड गिद्ध संरक्षण केंद्र परियोजना के लिए 80 लाख रुपये जारी किए गए थे।
लेकिन गिद्धों की आबादी इतनी महत्वपूर्ण क्यों है?
- गिद्ध पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए मृत जानवरों के शवों को साफ करते हैं जिससे मृत पशुओं से बैक्टीरिया और फंगस पर्यावरण में नहीं फैलता
- गिद्धों का पेट अत्यधिक अम्लीय होता है जो उन्हें रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं को मारने में मदद करता है
- शवों का सेवन करने वाले जंगली कुत्तों से जुड़े स्वास्थ्य खतरों को कम करता है
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विलुप्त होने की कगार पर हैं गिद्ध
जुलाई 2019 में न्यूज़ 18 की एक खबर के अनुसार, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संसद में बताया कि 1980 के दशक के बाद से भारत में गिद्धों की आबादी में 99।95 प्रतिशत की गिरावट आई है। 1980 के दशक में, भारत में लगभग 40 मिलियन गिद्ध थे, जो मुख्य रूप से तीन प्रजातियों से संबंधित थे- सफेद पीठ वाले गिद्ध, लंबे चोंच वाले गिद्ध और पतले बाल वाले गिद्ध। 2017 तक, यह संख्या घटकर 19,000 रह गई। गिद्धों की आबादी में तेज गिरावट को स्वीकार करते हुए, मंत्री ने बताया कि गिद्धों की जनसंख्या में गिरावट पहली बार नब्बे के दशक के मध्य में देखी गई थी। 2007 तक, गिद्धों की तीन निवासी जिप्स प्रजातियों की आबादी में 99% की गिरावट आ चुकी थी।
क्यों विलुप्त हो रहे हैं गिद्ध?
- इनकी घटती आबादी का सबसे बड़ा कारण है 1990 के दशक के दौरान पशु चिकित्सा पद्धति में इस्तेमाल होने वाली डाइक्लोफेनाक, एक नॉन -स्टेरायडल एंटी- इंफ्लेमेटरी ड्रग (एनएसएआईडी)। गिद्ध डाइक्लोफेनाक के संपर्क में तब आते हैं जब वे किसी ऐसे जानवर के शव को खाते हैं जिसे उसकी मृत्यु से 72 घंटे पहले उसे डाइक्लोफेनाक से उपचारित किया गया हो। यह दवा गिद्धों के लिए अत्यंत विषैली होती है और उनके गुर्दे को प्रभावित करता है और वे आंत के गठिया से मर जाते हैं। 2006 में इस दवा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। हालांकि भारत में डाइक्लोफेनाक का उपयोग अब काफी कम हो गया है, लेकिन कुछ जगहों पर इसका दुरुपयोग जारी है।
- इसके आलावा कुछ लोगों में ऐसा मिथक फैला हुआ है कि गिद्धों में औषधीय शक्तियां होती हैं जिसके चलते लोगो ने गिद्धों का शिकार करना शुरू कर दिया। कई बार कुछ इलाकों में बिजली के तारों में फंसकर भी गिद्ध मारे जाते हैं।
- कई बार शरारती तत्व इनके घोंसलों और अण्डों पर पत्थर मारते हैं। गिद्धों में प्रजनन धीमा होता है और जब उनके अंडों को नुकसान पहुंचता है तो इससे उनकी आबादी के जीवित रहने की संभावना और भी कम हो जाती है।
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गिद्धों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाये गए?
इन गिद्धों की विलुप्त होती प्रजाति के संरक्षण के लिए देश के विभिन्न राज्यों में 8 गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र स्थापित किए गए।
चार केंद्र- हरियाणा में पिंजौर (2004 में स्थापित), पश्चिम बंगाल में राजाभटखावा (2006 में स्थापित), असम में रानी (2009 में स्थापित) और भोपाल के पास केरवा (2008 में स्थापित) स्थापित किये गए। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सहायता से संबंधित राज्य वन विभाग इनका संचालन करते हैं।
चार अन्य केंद्र – गुजरात के जूनागढ़ में (2006 में स्थापित), ओडिशा में नंदनकानन (2006 में स्थापित), तेलंगाना में हैदराबाद (2006 में स्थापित) और रांची में मुटा, राज्य के चिड़ियाघरों में स्थापित हैं और केंद्रीय चिड़ियाघर के समर्थन से राज्य वन विभाग द्वारा चलाए जा रहे हैं। एमओईएफ और सीसी के प्राधिकरण (सीजेडए) और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी से तकनीकी सहायता इन्हें प्राप्त होती है। 1980 के दशक तक गिद्ध काफी आम थे लेकिन अब वर्तमान में वे विलुप्त होने की कगार पर हैं।
गिद्ध और पारसी
अन्य धर्मों में जहाँ मृत के शरीर का अंतिम संस्कार या दफन किया जाता है, वहीं जब एक पारसी की मृत्यु होती है, तो उसका शरीर गिद्धों के लिए ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ में छोड़ दिया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पारसी लोगों के लिए मृतकों को दफनाना या उनका अंतिम संस्कार करना प्रदूषणकारी प्रकृति के रूप में देखा जाता है। इसलिए सदियों से पारसी इसके लिए गिद्धों पर निर्भर रहे हैं। लेकिन अब जब ये पक्षी विलुप्त हो रहे हैं तो यह पारसियों के लिए भी एक बड़ा संकट है।
भारत सरकार गिद्धों की प्रजाति को बचाने के लिए हर संभव प्रयास में लगी है और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की परियोजना गिद्ध संरक्षण और प्रजनन केंद्र इसी दिशा में अगला कदम है।
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