धर्म-अधर्म के युद्ध में रिटायर्ड जस्टिस इंदु मल्होत्रा सदैव “धर्म” के पक्ष में खड़े होने के साथ अपना धर्म निभाती और वकालत के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करती आई हैं। हालिया मामला एक वायरल वीडियो के कारण तूल पकड़ रहा है, जहां इंदु मल्होत्रा ने मंदिरों पर अतिक्रमण करते हुए वामपंथी सरकारों ने कैसे उनका सर्वनाश किया है इस पर टिप्पणी की है। हालांकि, यह कोई नया मामला नहीं है जहां इंदु मल्होत्रा ने धर्म-मंदिर और उसकी रीति-नीति से खिलवाड़ करने वालों को आगाह किया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जस्टिस की एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है जिसमें वो दावा करती हैं कि कम्युनिस्ट सरकारों ने हिंदू मंदिरों पर “हर तरफ” से कब्जा कर लिया है। इंदु मल्होत्रा ने कहा, “कम्युनिस्ट सरकारें राजस्व पर केंद्रित हैं। वे हिंदू मंदिरों से आय अर्जित करने के एकमात्र उद्देश्य से हिंदू मंदिरों पर कब्जा कर रहे हैं।”
पद्मनाभस्वामी मंदिर प्रशासन को लेकर सुनाया था फैसला
ज्ञात हो कि पद्मनाभस्वामी मंदिर प्रशासन को लेकर फैसला सुनाने वाली बेंच की एक सदस्य इंदु मल्होत्रा तिरुवनंतपुरम गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के प्लेटिनम जुबली समारोह में हिस्सा लेने राजधानी पहुंची थीं। वो दो न्यायाधीशों वाली सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच की सदस्य थीं, जिसने वर्ष 2011 के केरल उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया था कि राज्य सरकार को एक ट्रस्ट बनाना चाहिए और श्रीपद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में लेना चाहिए, जिससे त्रावणकोर शाही परिवार को प्रबंधन करने का अधिकार मिल सके। अपने संबोधन में वो सुप्रीम कोर्ट के 2020 के एक फैसले का जिक्र कर रही थीं, जिसमें उन्होंने श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रशासन में त्रावणकोर शाही परिवार के अधिकारों को बरकरार रखा था। यू यू ललित (जो अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं) की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने वर्ष 2011 में केरल उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश को उलट दिया था, जिसमें 1991 में त्रावणकोर के अंतिम शासक की मृत्यु के साथ मंदिर पर शाही परिवार के अधिकार समाप्त होने की बात कही गई थी।
ध्यान देने वाली बात है कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर को 18 वीं शताब्दी में त्रावणकोर रॉयल हाउस द्वारा उसे उसका मूल स्वरुप दिया गया था। यही नहीं, पूर्व जस्टिस इंदु मल्होत्रा सबरीमाला मंदिर वाले केस में भी एकमात्र महिला न्यायाधीश थीं, जिन्होंने 5 न्यायाधीशों में सबके उलट अपना पक्ष रखते हुए मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित रखने के लिए कहा था। लेकिन सितंबर 2018 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला किया कि सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर के परिसर के अंदर जाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
4-1 के फैसले में शीर्ष अदालत ने केरल हिंदू सार्वजनिक पूजा के स्थान (प्रवेश का प्राधिकरण) नियम, 1965 के नियम 3 (बी) को रद्द कर दिया, जिसके तहत सबरीमाला में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया था। इस बहुमत के फैसले में एकमात्र असहमति वाली आवाज न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की थी, जो 5 न्यायाधीशों की पीठ में एकमात्र महिला भी थीं। न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ने अपनी तर्कसंगत दलील में कहा था कि गहरी धार्मिक भावना वाले मामलों में अदालत को दखल नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि मंदिर और देवता संविधान के अनुच्छेद 25 द्वारा संरक्षित हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि अदालत को तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि उस धर्म या वर्ग का कोई पीड़ित व्यक्ति न हो।
वामपंथियों ने उगला जहर
अब जिस पूर्व जस्टिस का इतिहास ही हिंदू धर्म के हित में खड़े रहकर कार्य करना हो, उसपर आक्षेप लगने भी स्वाभाविक ही हैं। हाल ही में उन्होंने जो बयान दिया, उस पर वामपंथी भड़क उठे। केरल के मंदिर मामलों के मंत्री के राधाकृष्णन ने सोमवार को केरल विधानसभा में बताया कि सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न मंदिर बोर्ड को 229 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की है।
राधाकृष्णन ने आगे कहा, “यह वामपंथी सरकार थी जिसने यह सुनिश्चित करने का बेड़ा उठाया था कि मंदिरों की संपत्ति उन्हें वापस दी जाए। किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वाम सरकार थी जो वर्ष 2018 और 2019 में सबसे भीषण बाढ़ के समय और जब कोविड की चपेट में आई थी, मंदिर के कर्मचारियों की मदद के लिए सामने आई थी। हमारी सरकार ने राज्य के बजट में इसके लिए धन निर्धारित किया था।”
आपको बताते चलें कि वामपंथी सरकारों की आदत रही है कि कुछ भी हो जाए, कितना भी ग़लत कर लें पर पिछले दरवाज़े से वापस हो लेंगे लेकिन वे भूल जाते हैं कि धर्म पर आने वाली आंच में वे स्वयं झुलस सकते हैं। वही रिटायर्ड जस्टिस इंदु मल्होत्रा के इस बयान से उजागर हो गया है कि वास्तव में वामपंथी शासन कितने पानी में है और कितना हिंदू विरोधी है।
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