यह तो हम सभी जानते हैं कि कुत्ता सबसे वफादार होता है, कुत्तों को इंसान का सबसे अच्छा दोस्त भी माना जाता है। ये कुत्ते ही हैं जो बिना किसी स्वार्थ के इंसान के प्रति वफादारी निभाते हैं। यही कारण है कि कुत्ता पालना आजकल फैशन बनता जा रहा है। परंतु क्या आप जानते हैं कि कुत्तों के साथ हमारा नाता बेहद ही पुराना रहा है। हिंदुओं के पौराणिक ग्रंथ महाभारत में भी कई बार कुत्तों के बारे में चर्चा मिलती है।
एक प्रसंग पर ध्यान दें तो जब राजा जनमेजय अपने लोगों के कल्याण के लिए यज्ञ कर रहे थे। इसी दौरान एक छोटा कुत्ता यानी पिल्ला यह सबकुछ बड़ी ही जिज्ञासा से देख रहा होता है। परंतु जनमेजय के भाई इस दौरान कुत्ते को वहां से मारकर भगा देते हैं। जिसके बाद बेचारा पिल्ला रोते हुए अपनी माता सरमा (जिसे देव शुनी या देवताओं की कुतिया भी कहा जाता है) के पास आता है और उनसे शिकायत करता है। वो उन्हें बताता है कि बिना किसी अपराध के जनमेजय के भाईयों ने इतना पीटा कि मुझे भागने भी नहीं दिया। यह सुनकर माता क्रोधित हुई और जनमेजय के पास आयी। तब सरमा राजा जनमेजय को श्राप देती हैं कि क्योंकि उनके पुत्र को बिना कारण क्षति पहुंचायी गयी है तो इसलिए उस पर अदृश्य खतरा आ जाएगा।
महाभारत में एक जगह और कुत्ते का प्रसंग आता है जब अपने अंत समय में पांडव स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं। इस समय उनके साथ-साथ एक कुत्ता भी चल रहा था।
ऐसा अक्सर ही देखने मिलता है कि लोगों को कुत्ता पालने का शौक तो बहुत होता है लेकिन वो देसी कुत्तों की तुलना में विदेशी नस्लों को ज्यादा तवज्जो देते हैं। इसके लिए हजारों रुपये खर्च कर कुत्तों की नयी-नयी विदेशी नस्लें तक मंगवायी जाती हैं। परंतु देखा जाए तो भारतीय कुत्ते भी विदेशी नस्लों वाले कुत्तों से पीछे नहीं हैं। सूझबूझ से लेकर शारीरिक क्षमता के मामले में तो देसी कुत्तों का जवाब ही नहीं है।
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SPG के दस्ते में देसी नस्ल का कुत्ता
स्वदेशी कुत्तों को महत्व देते हुए अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सुरक्षा मुहैया कराने वाली विशेष सुरक्षा बल (SPG) के दस्ते में पहली बार देसी नस्ल का कुत्ता शामिल किया जा रहा है। कर्नाटक के कुत्तों की स्वदेशी नस्ल मुधोल हाउंड को SPG में शामिल किया गया है। पहले से ही मुधोल हाउंड भारतीय वायु सेना और अन्य सरकारी विभागों में सेवारत है। परंतु इसे पहली बार प्रधानमंत्री की सुरक्षा वाली टीम में जगह दी गयी है।
मुधोल कुत्तों की बनावट सामान्य कुत्तों से थोड़ी अलग होती है। लंबे-पतले मुधोल कुत्तों में लंबी दूरी तक दौड़ने की क्षमता होती है। यह कुत्ते 50 किमी/ घंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं और 3 किमी की दूरी से किसी भी वस्तु को सूंघ सकते हैं। इन कुत्तों का वजन 20 से 22 किलोग्राम के बीच होता है और यह 72 सेंटीमीटर तक लंबे हो सकते हैं। कुत्तों की यह नस्ल अपनी वफादारी, शिकार और रखवाली कौशल के लिए जानी जाती है। बताया जाता है कि मुधोल कुत्ते सादा खाना पसंद करते हैं। यह ज्वार की एक रोटी पर जिंदा रह सकते हैं। इनकी रफ्तार जर्मन शेफर्ड से दोगुनी तेज मानी जाती है।
जब प्रधानमंत्री की सुरक्षा वाले दस्ते में देसी कुत्तों को रखा जा सकता हैं, तो हम क्यों स्वेदशी कुत्तों को तवज्जों नहीं दे सकते। फिर क्यों हम विदेशी नस्लों को चुनते हैं। कई लोगों को भारतीय नस्लों के कुत्तों के नाम तक नहीं पता होगा। अगर आपको लगता है कि भारतीय नस्लों के कुत्तों में अधिक विकल्प नहीं मौजूद नहीं होते। तो आज हम आपके लिए एक सूची लेकर आए हैं जिनमें एक से एक स्वदेशी नस्ल के कुत्तों के बारे में हम आपको बताएंगे।
यह है स्वदेशी नस्ल के कुत्तों की सूची
चिप्पीपराई
कुत्तों की यह नस्ल ज्यादातर तमिलनाडु में ही पाई जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मन की बात कार्यक्रम में एक बार इनका जिक्र कर चुके हैं। चिप्पीपराई तमिलनाडु का एक शहर भी है, जिसके नाम पर ही कुत्तों की इस नस्ल का नाम रखा गया। चिप्पीपराई को विशेष रूप से लोगों के द्वारा शिकार करने के लिए पाला जाता है। यह पक्के शिकारी कुत्ते होते हैं। इसकी खासियत यह है कि चिप्पीपराई कुत्ते बेहद ही तेज गति से भागते हैं और 10 फीट से अधिक लंबी छलांग भी लगा सकते हैं। साथ ही अन्य कुत्तों की तुलना में ये अधिक समझदार माने जाते हैं।
परिआह
यह कुत्तों की सबसे पुरानी नस्लों में से एक मानी जाती हैं। कहा जाता है कि कुत्तों की यह नस्ल 4500 वर्ष पुरानी है। मोहनजोदड़ों में भी इसके अवशेष मिलने की बात सामने आ चुकी है। इस नस्ल को लेकर गांव से लेकर शहरों की गलियों में दौड़ती हुई देखने को मिल ही जाती है। परिआह नस्ल के कुत्तों का पालना बेहद ही आसान होता है। इसके खाने पर अधिक खर्च की आवश्यकता नहीं पड़ती। दूध से लेकर रोटी-ब्रेड और बिस्कुट तक यह कुछ भी खा लेते हैं। साथ ही यह अधिक बीमार भी नहीं पड़ते हैं। इसके अलावा परिआह कुत्ते जल्दी थकते भी नहीं हैं।
राजपलायम
राजापलायम दूध के रंग जैसे सफेद पतली खाल वाले कुत्ते होते हैं। इनका नाम तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले के राजापलयम शहर पर रखा गया है। यह कुत्ते जंगली सूअरों के शिकार और रखवाली के लिए जाने जाते हैं। जहां आम कुत्तों केवल 10 से 15 सालों तक ही जीते हैं, वहीं राजापलायम का जीवन 20 से अधिक वर्षों तक होता है। कुत्तों की इस नस्ल को उनकी बहादुरी, चुस्ती और बुद्धिमानी के लिए पहचाना जाता है।
कन्नी
कुत्तों की यह नस्ल दिखने में कुछ-कुछ चिप्पीपराई की तरह ही होती है। कन्नी कुत्तों को उनकी वफादारी और सच्चे मन के चलते ही यह नाम दिया गया। दरअसल, कन्नी शब्द का तमिल में अर्थ शुद्ध होता है। ऐसा माना जाता हैं कि हर हालात में कन्नी नस्ल के कुत्ते अपने मालिक और उसके घर की रक्षा करते हैं। जंगली जानवरों का शिकार करने के लिए इन कुत्तों को पाला जाता हैं। आमतौर पर कन्नी नस्ल के कुत्तों की उम्र 14 से 16 वर्ष तक होती है। पहले अधिकतर जमींदार ही कन्नी कुतों को पाला करते थे क्योंकि यह उनकी फसलों और घर की रखवाली करते थे।
कोम्बाई
कुत्तों की यह ब्रीड तमिलनाडु में ही पायी जाती है। इनका नाम भी तमिलनाडु के शहर कोम्बाई पर रखा गया। सीआरपीएफ द्वारा भी कोम्बाई नस्ल को भर्ती किया जा चुका है। यह घर की रखवाली करने के लिए जाने जाते हैं। कोम्बाई एक वफादार एवं बहादुर नस्ल हैं। यह अपने मालिक के प्रति सुरक्षा का भाव रखते है। हर वातावरण मैं रहने के लिए यह अनुकूल होते हैं। कोम्बाई कुत्ते घर के बाहर बैठकर चुपचाप नजर रखते हैं और घर में जहां कोई चुपके से घुसने की कोशिश करता है उसकी खबर लेते हैं।
गद्दी कुत्ता
गद्दी कुत्ते यानी भोटिया नस्ल के कुत्तों से शायद आप परिचित नहीं होंगे। यह आमतौर पर पहाड़ों पर पाए जाते हैं। गद्दी कुत्ते दिखने में शेर भांति होते हैं। यहां तक कि ये चीते, हिम तेंदुओं या गुलदार से मुकाबला तक कर सकते हैं। गद्दी कुत्ते आमतौर पर हिमाचल, उत्तराखंड और हिमालयन प्रदेशों में देखने को मिलते हैं। गद्दी कुत्ते, दुनिया की सबसे महंगी नस्ल तिब्बतियन मस्टिफ जैसे लगते हैं। गद्दी कुत्ते बेहद ही वफादार होते हैं। कहा जाता है कि इस नस्ल के दो कुत्ते 500 से अधिक भेड़ों तक को संभाल सकते हैं। यह जितना खाते हैं इनके अंदर ताकत भी उतनी ही होती है।
जोनंगी
आम तौर पर कुत्तों की यह नस्ल आंध्र प्रदेश में पायी जाती है। हालांकि कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में पाए जाते हैं। इनके बाल छोटे और मुलायम होते हैं जो इन्हें अन्य कुत्तों से अलग बनाते हैं। इन्हें मुख्य तौर पर शिकार और चरवाही के लिए पाला जाता है। यह खेतों और घरों की भी रखवाली करते हैं। ये कुत्ते किसी एक व्यक्ति या एक परिवार के प्रति ही अपनी वफादार निभाते हैं तथा उनकी ही बात मानते हैं। जोनंगी गड्ढा खोदने में माहिर होते हैं।
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बखरवाल
जम्मू-कश्मीर और हिमाचल के हिस्सों के साथ ही इस नस्ल के कुत्तों को उत्तरी पाकिस्तान और अफगानिस्तान में भी पाया जाते हैं। खास तौर पर इन्हें बकरवाल और गुर्जर जनजातियों द्वारा पाला जाता हैं। कुत्तों की यह नस्ल दक्षिणी एशिया की सबसे पुरानी नस्ल मानी जाती है। बखरवाल नस्ल दो प्रकार की होती है, जिसमें एक सामान्य और दूसरी लद्दाखी बखरवाल। बताया जाता है कि लद्दाखी बखरवाल एक सांस में काफी देर तक भौंक सकते हैं। बखरवाल नस्ल के कुत्ते तिब्बतियन मस्टिफ तथा परिआह नस्ल की क्रॉसब्रीडिंग से तैयार होने की बात भी कही जाती है।
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