सच्चा मित्र वही, जो मित्र के काम आए। ये बात भारत और रूस के लिय अक्षरश: चरितार्थ होती है। रूस यूक्रेन विवाद पर भारत ने संसार की रीतियों और नीतियों से ठीक उलट अपनी अलग परिपाटी अपनाते हुए अपने विचारों, अपने हितों को सर्वोपरि रखा, चाहे अप्रत्यक्ष रूप से रूस का समर्थन ही क्यों न पड़े और रूस भी अब सूद समेत भारत के इस उपकार का ऋण चुका रहा है।
हाल ही में रूसी राजदूत डेनिस एलिपोव भारत के रूस से तेल खरीदने एवं उससे जुड़े पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका एवं यूरोप की आपत्तियों पर टिप्पणी की। एकदम आक्रामक रुख अपनाते हुए उन्होंने बोला, “भारत और रूस के बीच व्यापार इस समय ज़ोरों पर है, और हम लोग विभिन्न पेमेंट प्रणाली के माध्यम से (RuPay एवं MIR) व्यापार को एक नए स्तर पर ले जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त हमारे पास तटस्थ देशों के माध्यम से (ईरान / इराक) व्यापार करने का भी मार्ग खुला है, एवं उनकी मुद्रा में भी व्यापार संभव है”।
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परंतु वे उतने पे नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, “मुझे ये नहीं समझ में आता है कि किस आधार पर ये (पाश्चात्य जगत) भारत की बुराई कर रहे हैं। जो पश्चिम में रहकर (विशेषकर अमेरिका) भारत की बुराई करते हैं, वे इस बात पर चुप्पी साध लेते हैं कि वे स्वयं रूसी ऊर्जा संसाधनों का दोहन करते हैं, और उनके कथित प्रतिबंध केवल नाम के हैं, और अपने दोहरे मापदंडों को छुपाने के लिए वे भारत को बदनाम करते हैं”।
रूसी राजदूत ने की यूरोप की खिंचाई
ये तो मात्र प्रारंभ था क्योंकि रूसी राजदूत ने यूरोप की खिंचाई करते हुए उसे अमेरिका का गुलाम बताया और बोला, “यूरोप अपनी स्वायत्ता खो चुका है, ताकि वह अमेरिका के सत्ता की हनक को प्राप्त करवाने में उसकी सहायता कर सके, भले उसका खुद का बंटाधार क्यों न हो जाए। वैसे भी पश्चिमी प्रतिबंधों का हमारे व्यापार पर कोई असर नहीं पड़ेगा उलटे इन्ही का नुकसान अधिक होगा”।
अब रूसी राजदूत ने ये बात यूं ही नहीं कही है। Centre for Research on Energy and Clean Air, Moscow के अनुसार वर्तमान कालखंड यानी फरवरी से अब तक केवल तेल के निर्यात से रूस को 93 बिलियन यूरो की रिकॉर्ड कमाई हुई, जिसमें 97 बिलियन डॉलर की कमाई यानी लगभग दो तिहाई कमाई केवल तेल के निर्यात से सामने आई है।
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अमेरिका को ठेंगा दिखाते हुए भारत और चीन ने रूसी तेल खरीदा
परंतु प्रश्न तो अब भी उठता है कि ये तेल खरीद कौन रहा है? अमेरिका के भय से अधिकतम विकसित देशों ने रूस से क्रय विक्रय यानी किसी भी प्रकार के व्यापार पर प्रतिबंध लगाया है। परंतु दिवालियापन के भय से कई यूरोपीय देश महंगे दाम पर भी रूसी तेल खरीदने को तैयार हैं और जर्मनी जैसे देश चाहकर भी प्रतिबंध लगाने को तैयार नहीं। ऐसे में आगमन होता है भारत और चीन जैसे देशों का जिन्हें रूस ने भर-भर के डिस्काउंट प्रदान किये और मौके पर ताबड़तोड़ छक्के मारते हुए इन दोनों ही देशों ने भारी मात्रा में अमेरिका के कोपभाजन को ठेंगे पर रखते हुए पहले से कहीं अधिक रूसी तेल को खरीदना प्रारंभ किया।
परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं है। 2021 में भारत ने 16 मिलियन बैरेल रूसी तेल को आयात किया जो उसके कुल तेल आयात का आधा भी नहीं था। परंतु केवल फरवरी से लेकर जून तक में ही भारत ने 13 मिलियन बैरेल से अधिक रूसी क्रूड ऑइल को आयात किया है ताकि तेल के दाम भी नियंत्रित रहे और अरब जगत एवं अमेरिका की हेकड़ी को भी ठेंगा दिखाया जा सके। अब समझे ये पश्चिमी जगत की कुंठा क्यों और किसलिए?
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