हुआ है, तेरे को नहीं पता पर हुआ है! कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों उन तथाकथित याचिकाकर्ताओं का है जो सामाजिक सरोकार से जुड़ी याचिका कम और राजनीति से प्रेरित याचिकाएँ दायर करने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। लेकिन न्यायालय का काम है सबको सुनना, सबकी याचिकाओं को समान रूप से तवज्जो देना। न्यायालय ने ठीक ऐसा ही किया और भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आज मुंबई मेट्रो की लाइन तीन के लिए मेट्रो शेड के चल रहे निर्माण को रोकने से इनकार कर दिया।
दरअसल, सत्ता परिवर्तन के बाद महाराष्ट्र में रूके हुए विकास कार्यों को रफ़्तार देने के लिए शिंदे सरकार ने रुके हुए मेट्रो शेड के निर्माण कार्य को स्वीकृति देकर पुनः चालू करा दिया था। चूँकि पूर्व में महाविकास अघाडी की सरकार ने इस विकास कार्य को रोक दिया था इसलिए इसके पुनः चालू होने पर एक वर्ग विशेष के पेट में मरोड़ें उठने लगीं। साम दाम दंड भेद की नीति के तहत बेबुनियाद याचिकाओं की झड़ी लग गई। ध्येय केवल यह था कि कैसे भी करके यह निर्माण कार्य रुक जाए।
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आरे पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
लेकिन वो कहा गया है न “होइहि सोइ जो राम रचि राखा।” सर्वोच्च न्यायालय ने मुंबई मेट्रो की लाइन तीन के लिए मेट्रो शेड के चल रहे निर्माण को रोकने से इनकार कर दिया, क्योंकि इसके खिलाफ एक नई याचिका दायर की गई थी। शीर्ष अदालत ने मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के हलफनामे को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि “निर्माण के लिए कोई पेड़ नहीं काटा जा रहा है, और कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया।”
जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट और अनिरुद्ध बोस की पीठ कार्यकर्ताओं द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि “MMRCL ने 2019 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए पेड़ों की कटाई फिर से शुरू कर दी है।” यह उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार के सत्ता में आने के बाद, सरकार ने आरे कॉलोनी में कार शेड के निर्माण कार्य को आगे बढाने का फैसला किया था, जिसे पहले उद्धव ठाकरे सरकार ने रद्द कर दिया था।
कुछ नहीं मिला तो पेड़ों की कटाई का आरोप मढ़कर याचिका लगा दी गईं। पेड़ों की कटाई फिर से शुरू होने के आरोपों को खारिज करते हुए, MMRCL ने अदालत को बताया कि एप्रोच रोड पर पेड़ों की शाखाओं को ही काटा गया था क्योंकि वे वाहनों को बाधित कर रहे थे। MMRCL के हलफनामे में यह भी कहा गया है कि “जमीन पर केवल खरपतवार और झाड़ियों को साफ किया गया था, और कोई पेड़ नहीं काटा गया था।”
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मुंबई मेट्रो की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि “2019 में अदालत द्वारा दिए गए यथास्थिति को बनाए रखा गया है।” उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने विभिन्न स्थानों की तस्वीरें जमा की हैं। “जमीन पर केवल झाड़ियों को साफ किया गया था। एक रोड है जहाँ ऐसी शाखाएँ थीं जिन्हें ट्रिमिंग की आवश्यकता होती थी, और ट्रिमिंग होती थी ताकि वाहनों को गुजरने में दिक़्क़त न हो। फिर भी ट्रिमिंग के दौरान कोई पेड़ नहीं काटा गया।”
हलफनामे को यह कहते हुए स्वीकार करते हुए कि पेड़ नहीं काटे जा रहे हैं। अदालत ने कहा कि “कोई विशेष अंतरिम निर्देश जारी करने की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने यह भी कहा कि अगली सुनवाई तक कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा।” पीठ ने आदेश में कहा, “यह कहने के लिए पर्याप्त है कि जैसा कि संबंधित प्रतिवादी ने कहा है, 7 नवंबर, 2019 के आदेश के बाद से कोई पेड़ नहीं काटा गया है और सुनवाई की अगली तारीख तक नहीं काटा जाएगा।”
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इस पूरे मामले में एकमात्र ध्येय यही था कि कैसे भी करके आरे कॉलोनी और शेड वाले मुद्दे को जितना लंबित कर सकें उतना किया जाए। वहीं कोर्ट ने सभी पहलुओं और पक्षों पर विचार कर यह निर्णय लिया कि “न ही इस परियोजना को रोकने की आवश्यकता है और न ही इस पर रोक लगाने का कोई औचित्य बनता है।” सुप्रीम कोर्ट ने आरे शेड निर्माण को हरी झंडी दिखाकर कई तत्वों के फ़न को कुचल दिया है जो विकास कार्य में विलंब का विष घोलना चाह रहे थे।
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