कहते हैं कि किसी भी सभ्य समाज का आधार उसकी न्याय प्रणाली होती हैं। यदि न्याय प्रणाली कुशलता के साथ कार्य करती है तो समाज का भी भला होता है। भारतीय समाज प्रारंभ से सभ्य समाज के श्रेणी में रहा है। हां, प्राचीनता से नए युग में बढ़ने के साथ-साथ सामाजिक मूल्यों में कमी अवश्य आयी है। बदलते समय के साथ न्याय की अवधारणा एवं उसे न्यायसंगत बनाने वाली संस्था दोनों में परिवर्तन हुआ है।
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न्याय में पारदर्शिता अति आवश्यक है
वर्तमान भारतीय समाज में न्यायपालिका की संकल्पना विकसित हुई जिसने भारत के समाज को तर्कसंगत न्याय दिलाने का प्रयास किया। परंतु कहते हैं कि जितना महत्वपूर्ण न्याय होता है, उतना ही आवश्यक न्याय में पारदर्शिता भी होती है। इसी उद्देश्य के साथ कार्य कर रही न्यायपालिका ने सदा ही पारदर्शिता को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। परंतु कुछ न्यायधीश एवं न्यायमूर्ति ऐसे भी रहे हैं जिन्होंने न्याय की सही अवधारणा की परिभाषा से इतर कार्य किया है, जिस कारण न्यायपालिका पर प्रश्न भी उठे हैं।
हालांकि इस बीच न्यायपालिका में पारदर्शिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक बड़ा निर्णय लिया गया है। दरअसल, देश के सर्वोच्च न्यायालय में 27 सितंबर से सभी संविधान पीठ की सुनवाई को लाइव-स्ट्रीम के माध्यम से कराने का फैसला हुआ है। मंगलवार को शीर्ष अदालत के सभी न्यायाधीशों ने इस संबंध में विचार-विमर्श किया और सर्वसम्मति से लाइव स्ट्रीमिंग का निर्णय लिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) उदय उमेश ललित ने पूर्ण अदालत की बैठक की अध्यक्षता की, जहां सभी न्यायाधीश एकमत थे कि लाइव-स्ट्रीमिंग नियमित आधार पर संवैधानिक मामलों के प्रसारण के साथ शुरू होनी चाहिए।
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यूट्यूब के माध्यम से होगी लाइव स्ट्रीमिंग
प्राप्त जानकारी के अनुसार शुरुआत में सुनवाई यूट्यूब के माध्यम से लाइव टेलीकास्ट की जाएगी। इसके बाद शीघ्र ही सुप्रीम कोर्ट कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने के लिए अपना प्लेटफॉर्म भी विकसित करेगा। फिलहाल जिन मामलों के लाइव-स्ट्रीम किए जाने की संभावना है, उनमें आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग कोटा कानून की चुनौतियां, दाऊदी बोहरा समुदाय में बहिष्कार की धार्मिक प्रथा, अपरिवर्तनीय टूटने के आधार पर विवाह को भंग करने की सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति और 1984 भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए बढ़े हुए मुआवजे पर केंद्र सरकार की याचिका जैसे बिंदु शामिल हैं।
इस संबंध में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने पिछले सप्ताह CJI और उनके साथी न्यायाधीशों को पत्र लिखकर सर्वोच्च न्यायालय से सार्वजनिक और संवैधानिक महत्व के मामलों की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग शुरू करने का अनुरोध किया था। वो 2018 में सूचना की स्वतंत्रता के अधिकार और “प्रत्येक नागरिक के लिए न्याय तक पहुंच” के अधिकार का एक हिस्सा लाइव-स्ट्रीमिंग की घोषणा के लिए याचिकाकर्ताओं में से एक थीं।
ध्यान देने योग्य बात है कि पटना हाईकोर्ट, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट समेत अन्य हाईकोर्ट ने भी केस की सुनवाई का लाइव प्रसारण करना शुरू कर दिया है। अदालतों की सुनवाई के लाइव प्रसारण के इस निर्णय से न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ेगी और इससे नागरिकों में न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास और बढ़ेगा, जो लोकतंत्र को भी मजबूत बनाएगा।
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