भारत जिस तीव्रता से विकास की ऊंचाइयों को छू रहा है उसका सम्पूर्ण विश्व को भान हो गया है। अपने बढ़ते विकास के क्रम में भारत आत्मनिर्भरता को लेकर बहुत सजग है, वह विश्व पटल पर अपनी ठसक बनाए रखना चाहता है। वह स्वयं को हर एक क्षेत्र में एक ब्रान्ड के रूप में स्थापित करने की मंशा के साथ आगे बढ़ रहा है और बड़ी ही तीव्रता से अपने घरेलू बाज़ार में उत्पादन कार्य कर रहा है। वस्तुतः भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह आकांक्षा रही है की मेड इन इंडिया का बोलबाला समस्त विश्व में हो, बात विश्वसनीयता और उत्तम गुणवत्ता की यदि हो तो भारतीय उत्पाद सबसे शीर्ष पर हों। अपनी इसी आकांक्षा के साथ भारत कई ऐसे वस्तुओं के उत्पादन पर बल दे रहा है जिसका पूर्व में वह केवल आयात करता था।
सेमीकंडक्टर चिप्स का उत्पादन पूर्व की अपेक्षा दोगुना
इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स के निर्माण में प्रमुख रूप से उपयोग में आने वाली सेमी कंडक्टर चिप्स का भी निर्माण भारत स्वयं ही करेगा। भारत द्वारा लिए गए इस निर्णय का परिणाम भी अब देखने को मिल रहा है। भारत ने सेमीकंडक्टर चिप्स का उत्पादन पूर्व की अपेक्षा दोगुना कर दिया है। ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले साल भारत की सेमीकंडक्टर आवश्यकताओं का केवल 9 प्रतिशत ही स्थानीय रूप से प्राप्त किया गया था, किंतु भारत सरकार द्वारा पीएलआई स्कीम के चलते कंपनियों ने सेमीकंडक्टर के उत्पादन में वृद्धि की, जिसका परिणाम है कि जहां चीन के अंदर चिप के उत्पादन में 24.7% की गिरावट देखी गयी है तो वहीं भारत में इसका उत्पादन दोगुना हो गया है।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार इंटेग्रेटेड सरकिट्स का उत्पादन वर्ष दर वर्ष 24.7% घटकर 24.7 अरब इकाई रह गया जो 1997 के बाद से एक महीने में सबसे बड़ी कमी है। चीन में चिप निर्माण में गिरावट का यह लगातार दूसरा महीना भी है। जुलाई में उत्पादन 16.6 प्रतिशत घटकर 27.2 अरब इकाई रह गया। वस्तुतः चीन में चिप उत्पादन में मंदी आ रही है क्योंकि भारत और अमेरिका दोनों स्थानीय चिप निर्माण को बढ़ावा देने के प्रयासों को तेज कर रहे हैं, किंतु भारत में श्रमिकों की सस्ती लागत एवं अच्छी गुणवत्ता जैसे कारक हैं जो भारत को प्रमुख रूप से एक बेहतर स्थान बनाएंगे।
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ग्लोबल सेमी कंडक्टर के क्षेत्र में चीन वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ध्यान देने वाली बात है कि विश्व भर में चिप उत्पादन का 60 प्रतिशत हिस्सा ताइवान वहन करता है, ऐसे में यदि चीन ताइवान पर आक्रमण कर देता है तो विश्वभर में चिप्स की कमी हो जाएगी जिससे भारत समेत अन्य देशों के विकास में भी बाधा पहुंचेगी। लेकिन वर्तमान में चीन चिप्स उत्पादन में अभी अपने घुटनों पर आ गया है, अतः भारत के समक्ष ऐसी परिस्थितियों का निर्माण हो रहा है जो उसे वैश्विक बाज़ार में चिप्स के उत्पादन एवं आपूर्ति श्रृंखला में चीन से आगे निकलने में बहुत सहायता करेंगी। परिस्थितियों को भांपते हुए भारत सरकार द्वारा भी महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।
वस्तुतः पूरे विश्व में सेमी कंडक्टर का बाज़ार 2021 में कुल 527.88 बिलियन डॉलर का था जो 2029 तक बढ़कर 1380 बिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है। अतः सेमीकंडक्टर चिप का जो बाज़ार है वहां भारी मात्रा में संभावनाएं विद्यमान हैं और भारत इतने बड़े बाज़ार को अपने हाथ से जाने नहीं देगा।
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वेदांता का फ़ॉक्सकॉन के साथ समझौता
इसी क्रम में वेदांता ने सेमीकंडक्टर चिप को बनाने के क्रम में सेमीकंडक्टर चिप्स का निर्माण करने वाली विश्व की जानी मानी कंपनी फ़ॉक्सकॉन के साथ 19.5 बिलियन डॉलर का समझौता किया है। मुख्यतः वेदांता डिस्प्ले लिमिटेड गुजरात में 94,500 करोड़ रुपये के निवेश के साथ एक डिस्प्ले फैब यूनिट स्थापित करेगा और वेदांता सेमीकंडक्टर्स लिमिटेड 60,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ गुजरात में एक एकीकृत सेमीकंडक्टर फैब यूनिट और आउटसोर्स्ड सेमीकंडक्टर असेंबली एण्ड टेस्ट यानी OSAT सुविधा स्थापित करेगा। इस प्रकार, ये दो एमओयू एक साथ मिलकर 1.54 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश गुजरात में लाएंगे और राज्य में लगभग 1 लाख नये रोजगार के अवसर पैदा करेंगे।
वस्तुतः इस प्रकरण से एक निष्कर्ष जो निकलता है वह यह है कि चाहे घरेलू स्थिति हो, वैश्विक परिस्थितियां हो, ये सभी भारत के पक्ष में ही है। अतः यदि भारत हाथ आए हुए इस मौके को भुना पता है तो आर्थिक रूप से वह लाभ तो कमाएगा भी, साथ ही वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भागीदारी भी बढ़ेगी जिससे उसकी साख विश्वपटल पर बढ़ेगी।
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