नरेंद्र दामोदर दास मोदी, यह केवल एक नाम नहीं है बल्कि अब एक नीति बन गई है। पीएम मोदी ने वैश्विक स्तर पर भारत की ऐसी धाक जमाई है कि अपने आप को सुपर पावर कहने वाला अमेरिका, भारत की सुनता है और वही सबसे अराजकतावादी मुल्क यानी अफगानिस्तान का तालिबानी शासन भी भारत के हितों के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करता है। अफगानिस्तान में एक समय अमेरिका की पकड़ थी इसके बावजूद तालिबान, अमेरिकी सैनिकों की धज्जियां उड़ाता रहता था। ध्यान देने वाली बात है कि भारत, अफगानिस्तान का सीधे तौर पर नाम भी नहीं लेता है, उसके बावजूद भी तालिबान ऐसे मुद्दे उठा रहा है जिसमें भारत का हित छिपा है। यह दिखाता है कि भारत का अब अनौपचारिक रूप से अफगानिस्तान में मजबूत कूटनीतिक तंत्र बैठ चुका है जिसने असल में अमेरिका की जगह ले ली है।
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तालिबान ने खोली पाकिस्तान की पोल
दरअसल, हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की तरफ से दावा किया गया कि आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मौलाना मसूद अजहर अफगानिस्तान में छिपकर बैठा है और अपने आतंकी संगठन को मजबूत कर रहा है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान सरकार से मांग की कि मसूद अजहर को गिरफ्तार कर पाकिस्तान के हवाले कर दिया जाए। इस बयान के जरिए पाकिस्तान ने न केवल अफगानिस्तान बल्कि पूरे विश्व के साथ बल्फ खेलने की कोशिश की थी, जिसके बाद अफगानिस्तान भड़क गया।
आतंक के आका पाकिस्तान को उम्मीद नहीं थी कि अफगानिस्तान का तालिबानी शासन उसकी पोल खोल देगा। मसूद अजहर से जुड़े दावों पर तालिबान सरकार ने मीडिया में आई उन खबरों का बुधवार को खंडन किया, जिसमें अफगानिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) का सरगना मसूद अजहर की मौजूदगी का दावा किया गया था। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने कहा कि ऐसे आतंकवादी संगठन पाकिस्तान की जमीन से संचालन कर सकते हैं और यहां तक कि सरकारी संरक्षण में भी वे अपना काम जारी रख सकते हैं।
अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने पकिस्तान के दावों को कड़े शब्दों में खारिज किया है। खबरों में दावा किया गया कि पाकिस्तान ने उसे (मसूद अजहर) सौंपने की मांग वाला एक पत्र भी अफगानिस्तान को भेजा है। इसके साथ ही मुजाहिद ने अफगानिस्तान के टोलो न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि उन्होंने इस बाबत मीडिया में आई खबर देखी है लेकिन यह सच नहीं है। किसी ने भी हमसे ऐसी मांग नहीं की है। मुजाहिद ने कहा, जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख अफगानिस्तान में नहीं है। ऐसे संगठन पाकिस्तान की जमीन से संचालन कर सकते हैं और यहां तक कि आधिकारिक संरक्षण में भी अपने कुकर्मों को अंजाम दे सकते हैं। प्रवक्ता ने कहा कि हम किसी को भी, किसी दूसरे देश के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देंगे।
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अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर टकराव
ध्यान देने वाली बात है कि तालिबानी सरकार ने पाकिस्तान के दांव को पटखनी देते हुए उसे ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। इससे पहले भी तालिबान, पाकिस्तान सेना पर सीमा पर गतिरोध बढ़ाने के आरोप लगाता रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने मंगलवार को सीमा पर झड़प के पीछे पाकिस्तानी सेना द्वारा अपनी सीमा पर एक सुरक्षा चौकी बनाने के प्रयास को जिम्मेदार ठहराया, जिसमें कम से कम तीन पाकिस्तानी सैनिकों सहित दोनों पक्षों के सैनिकों की मौतें हुईं।
तालिबान के प्रवक्ता बिलाल करीमी ने बुधवार को एक बयान में कहा, “पाकिस्तानी बलों ने लाइन के पास एक सैन्य चौकी बनाने की कोशिश की थी जिसके चलते टकराव की स्थिति बनी।” दोनों पक्षों के बीच टकराव का यह सिलसिला अफगान पक्ष के पख्तिया प्रांत और पाकिस्तान के कुर्रम क्षेत्र में हुआ, जिसने एक बार फिर दोनों देशों के बीच टेंशन बढ़ा दी है। इस मुद्दे को लेकर फायरिंग और हिंसा के बाद उच्च स्तरीय वार्ता हुई और मामले को शांत कराने की कोशिश की गई। पाकिस्तान ने अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ते वक्त जो सोचा था अब सब कुछ उसका उल्टा हो रहा है। अफगानिस्तान, पाकिस्तान की मुसीबतें बढ़ाने में अपनी पूरी ताक़त झोंक रहा है और यह भारत के लिहाज से बिल्कुल सही है।
भारत को लुभाने में जुटा तालिबान
गौरतलब है कि अमेरिका ने अपने बल के दम पर तालिबान को कंट्रोल करने की कोशिश की थी लेकिन वे नहीं कर पाए। वहीं, भारत बिना कुछ बोले ही अनौपचारिक तौर पर अफगानिस्तान को अपनी साइड में ला चुका है। तालिबान जानता है कि भारत, अफगानिस्तान का एक मित्र राष्ट्र रहा है। ऐसे में तालिबान हमेशा ही भारत के प्रति सकारात्मक रहा है। हालांकि, यह भी कहा जाता है कि पिछले वर्ष जब अमेरिका अफगानिस्तान छोड़कर गया था तो अफगानिस्तान में तालिबान ने खूब आतंक मचाया लेकिन अहम बात यह है कि भारतीय दूतावास या वहां के किसी अधिकारी को एक खरोंच तक नहीं आई थी। भारत ने वहां अपने दूतावास को बंद कर दिया था लेकिन जब दोबारा अधिकारी गए तो उन्होंने सीधे तौर पर स्वीकार किया कि दूतावास की कोई भी चीज तनिक भी नहीं छेड़ी गई है। भारतीय अधिकारियों ने जिस हाल में दूतावास को छोड़ा था उन्हें उसी हाल में सहज दूतावास मिला तो कि एक बेहद सकारात्मक स्थिति है।
यह दिखाता है कि भारत को लुभाने की कोशिश में अफगानिस्तान की तालिबान सरकार कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती है। इसके कारण ही तालिबान, पाकिस्तान के आतंकी संगठनों को आड़े हाथों ले रहा है और सार्वजनिक मंचों पर यह दावा कर रह है कि पाकिस्तान आतंक की फैक्ट्री है। दूसरी ओर अफगानिस्तान सीमा पर भी पाक सेना की मुश्किलें बढ़ा रहा है। भारत की सीमाओं पर भी पाक सैनिक बिल्कुल ही डरी हुई मुद्रा में बैठे हैं क्योंकि यह भी सच है कि यदि पाकिस्तानी और भारतीय सैनिकों के बीच सीमा पर कोई टकराव होता है तो भारत को लुभाने की कोशिश में तालिबान अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर पाक सेना की मुश्किलें बढ़ा देगा और पाकिस्तानी सेना कभी भी दो मोर्चों पर सक्रिय हो ही नहीं पाएगी। ज्ञात हो कि भारत ने तालिबान को लेकर हमेशा ही अपना नकारात्मक रुख स्पष्ट किया है। इसके बावजूद तालिबान भारत का समर्थक बन बैठा है और इसके पीछे अनौपचारिक रूप से अपनाई गई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक नीतियों को अहम फैक्टर माना जा रहा है।
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