क्या आप बिना पानी के जीवन की कल्पना कर सकते हैं? नहीं न? जल हमारे जीवन का एक बेहद ही अहम हिस्सा है। परंतु जल के दिन-प्रतिदिन अत्यधिक दोहन से जल का संकट गहराता जा रहा है। हालांकि सरकार द्वारा इस संकट को दूर करने के लिए समाधान निकालने के प्रयास हो रहे हैं। देखा जाए तो सबसे बड़ी समस्या पीने के पानी को लेकर होती है। मोदी सरकार द्वारा पूरा जोर रहा है कि कैसे देश के हर घर को पीने के पानी से जोड़ा जाए। पीने के शुद्ध जल के लिए हम पूर्णतः भूमिगत जल पर निर्भर हैं और अब सरकार द्वारा इसकी ही जांच करवाने की तैयारी में है कि आखिर देश के किस इलाके में ग्राउंड वाटर का लेवल कितना है। अहम बात यह है कि इसके लिए सरकार टेक्नोलॉजी की भी भरपूर मदद लेने वाली है। इसके लिए हाल ही में सरकार द्वारा एक ऐप लॉन्च की है, जिसका नाम है- जलदूत।
भारत में जलाशय सूख रहे
दरअसल, केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की एक रिपोर्ट बताती है कि 33% से अधिक कुओं के जल स्तर में शून्य से दो मीटर तक की गिरावट दर्ज की गी है। इसके अलावा महानगरों के विभिन्न हिस्सों में 4 मीटर से अधिक की कमी देखने को मिली है। केंद्रीय जल आयोग की 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दो-तिहाई (65%) जलाशय सूख रहे हैं और 12% जलाशय पूरी तरह से सूखे चुके हैं। नल के पानी की अनुपलब्धता और भूजल के अंधाधुंध दोहन ने भारत में पीने के पानी की गंभीर स्थिति पैदा कर दी है और अब मोदी सरकार इस मुद्दे पर संवेदनशील है।
और पढ़ें- ‘पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना’ को बंद करने का वक्त आ गया है?
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र का लातूर एक ऐसा जिला है जहां जल संसाधनों की 90% से अधिक कमी की खबरें सामने आईं हैं। इसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में अनगिनत स्वास्थ्य समस्याएं भी हो रही है। कुछ ऐसी ही स्थिति उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की भी है। वैज्ञानिक अनुसंधान और संबंधित सरकारी नीतियों की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप पानी का अंधाधुंध दोहन हुआ। इसे समझना के लिए ध्यान दीजिए कि 1960 के दशक में पानी की कमी वाले पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हरित क्रांति के कार्यान्वयन में लोगों ने भूजल का अंधाधुंध उपयोग किया था।
इसके अलावा राज्य सरकारों द्वारा बिजली सब्सिडी के माध्यम से किसानों ने पानी की कमी वाले क्षेत्र में धान जैसी फसलों की खेती की जिसमें सबसे ज्यादा जल की आवश्यकता होती है। इसका परिणाम यह हुआ कि भूमिगत जल की कमी होती चली गई। इसलिए समग्र जल संकट से निपटने के लिए सरकार तकनीकी रूप से जुड़े विभिन्न समाधान लेकर आई है, जो कि भारत में पीने के स्वच्छ जल की समस्या से निजात दिलाएगी।
कैसे काम करेगी जलदूत ऐप?
दरअसल, केंद्र की मोदी सरकार इस तरह के उपायों की एक श्रृंखला में गांव में चयनित कुओं के जल स्तर को जांचने के लिए “जलदूत ऐप” विकसित किया है। देशभर में भूमिगत जल स्तर की निगरानी के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय के संयुक्त प्रयास से इसे विकसित किया गया है। इसको लेकर मंत्रालय ने जानकारी देते हुए कहा कि जलदूत ऐप ग्राम रोजगार सहायक (जीआरएस) को वर्ष में दो बार प्री-मॉनसून और पोस्ट-मॉनसून समय में चयनित कुओं के जल स्तर को मापने में सक्षम करेगा। प्रत्येक गांव में पर्याप्त संख्या में मापने वाले स्थानों का चयन किया जाएगा और उस गांव के भूजल स्तर का विश्लेषण किया जाएगा।
इसको देख जानकारी दी गई कि ऐप मजबूत डेटा के साथ पंचायतों की सुविधाएं भी प्रदान करेगा, जिसका उपयोग बेहतर योजनाओं और उनके क्रियान्वयन के लिए किया जा सकता है। जानकारी के मुताबिक भूजल डेटा का उपयोग ग्राम पंचायत विकास (जीपीडीपी) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) नियोजन अभ्यास के हिस्से के रूप में किया जा सकता है। इसके अलावा डेटा का उपयोग विभिन्न प्रकार के अनुसंधान और अन्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भी हो सकता है।
और पढ़ें- मोदी सरकार की एक से बढ़कर एक योजनाएं दर्शा रही हैं नीति आयोग का महत्व
गौरतलब है कि देश में भूजल की स्थिति को देखते हुए प्रौद्योगिकी का उपयोग महत्वपूर्ण है। भूजल स्तर का भू-स्थानिक विश्लेषण अधिक सटीक डेटा देगा। इसके माध्यम से विभिन्न गांवों में जल स्तर की स्थिति जानने की समस्याओं का व्यापक समाधान मिलेगा। यह न केवल जल संरक्षण योजनाएं बनाने में मदद करेगा बल्कि अन्य नीतियों को औपचारिक रूप देने में भी सहायता करेगा। उदाहरण के लिए सरकारी अधिकारी क्षेत्र में पानी की उपस्थिति के अनुसार कृषि और फसल नीतियां बना सकते हैं। यह उन क्षेत्रों को लक्ष्य करने में भी सहायक होगा जो जल संकट से अधिक ग्रस्त हैं। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार सरकार जल संरक्षण योजनाओं को प्राथमिकता दे सकती है।
आपको बता दें कि भारतीय राजनीति में पहली बार केंद्र सरकार ने मई 2019 में पानी की समस्याओं को टारगेट किया था और इसके लिए एक विशेष मंत्रालय का गठन किया गया। जल शक्ति मंत्रालय को जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प और पेयजल और स्वच्छता मंत्रालयों को मिलाकर बनाया गया था। यह योजना भारत में एकीकृत जल प्रबंधन प्रणाली विकसित करने और सभी जल संबंधी नीतियों को समन्वयित करने की थी। यह केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के कुशल नेतृत्व में हो रहा है और परिवर्तनकारी योजनाओं से देश में जल की समस्या का समाधान निकाला जा रहा है।
भारत में 256 जिलों के पानी की कमी वाले ब्लॉकों में उपलब्धता में सुधार के लिए सरकार ने भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए एक मास्टर प्लान-2020 लॉन्च किया। मास्टर प्लान में लगभग 1.42 करोड़ वर्षा जल भंडारण और कृत्रिम रिचार्ज संरचना का उपयोग करने की परिकल्पना की गई थी। इसके अलावा सरकार ने देश में वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने के लिए कैच द रेन अभियान भी शुरू किया था।
केंद्र की मोदी सरकार के ‘जल जीवन मिशन’ के तहत सरकार जल प्रबंधन में परिवर्तनकारी बदलाव लाने के प्रयास कर रही है। प्रत्येक ग्रामीण और शहरी परिवार को कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन (FHTC) प्रदान करने के लिए सरकार ने हर घर नल से जल (HGNSJ) योजना शुरू की है।
और पढ़ें- ‘अग्निपथ योजना का परिणाम है जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की हत्या’
गहरा रहा है जल संकट
अहम बात यह है कि जनसंख्या विस्फोट और जलवायु परिवर्तन के कारण जल संकट बढ़ता ही चला रहा है। अचानक से मौसम का परिवर्तन और उससे जुड़ी समस्याएं जल संकट को बढ़ा रही है। मॉनसून का असामयिक आगमन न केवल फसल पैटर्न को प्रभावित करता है बल्कि भूजल पर अत्यधिक दबाव भी पैदा करता है क्योंकि लोग सिंचाई के लिए भूजल संसाधनों को चुनने के लिए विवश होते हैं। इन परिदृश्यों में आगामी जल समस्याओं से निपटने के लिए संगठित, तिथि आधारित, प्रभावी नीतियां लाना अनिवार्य होता जा रहा है और केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के नेतृत्व में इस बात पर विशेष जोर दिया जाता रहा है।
योजनाओं की बात करें तो भूजल प्रबंधन और विनियमन, राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना, जलाशय प्रबंधन, सिंचाई जनगणना, भूतल लघु सिंचाई, कमान क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम और नदी जोड़ने जैसी अहम योजनाएं केंद्र सरकार के नेतृत्व में चल रही है। इन सभी योजनाओं को अधिक प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिए। इन सभी को जलदूत ऐप जैसी तकनीक से जोड़ा जाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि यह संकट एक इलाक़े का है अपितु यह पूरे देश में फैला हुआ है, इसलिए इन योजनाओं को एकीकृत और समन्वित तरीके से लागू करना ही उचित होगा।
और पढ़ें- भाई-भतीजावाद को भारतीय राजनीति से ख़त्म करने की योजना पर काम कर रही है भाजपा
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट बताती है कि 2025 तक दुनिया की आधी आबादी पानी की कमी से जूझ सकती है। भारत दुनिया की आबादी का 17.7% हिस्सा हैं, इसलिए हम पानी की कमी से सबसे अधिक प्रभावित होने वाली आबादी का हिस्सा हो सकते हैं। ऐसे में जल संरक्षण को एक मिशन बनाकर ही सफलता पाई जा सकती है।
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें.