महान लोगों की यह पहचान होती है कि प्रतिकूल परिस्थिति में भी वो अपना कार्य इतनी तन्मयता के साथ करते हैं कि जब भविष्य में उनका आंकलन किया जाता है तो उन्हें युगपुरुष की संज्ञा दे दी जाती है। भारत की भूमि ऐसे युगपुरुषों की जननी रही है। उन्हीं में से जन्मे एक महान पुरुष थे सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरय्या, जिन्होंने भारत के अंदर अभियांत्रिकी की नींव रखी। भारत के अंदर अभियांत्रिकी के क्षेत्र में विश्वेश्वरय्या द्वारा किए गए कार्यों ने भविष्य के भारत को अभियांत्रिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अपने अतिविशिष्ट कार्यों की वजह से ही वो भारतीय अभियांत्रिकी के पिता कहलाए।
महान प्रतिभा के धनी सर विश्वेश्वरय्या का जन्म कर्नाटक के कोलार ज़िले के चिक्कबल्लापुर में 15 सितम्बर 1860 को एक तेलुगु परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री एवं माता का नाम वेंकाचम्मा था। पिता संस्कृत के विद्वान थे। विश्वेश्वरय्या ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा कोलार से ही प्राप्त की। सामान्य परिवार से आने वाले विश्वेश्वरय्या के समक्ष धन का अभाव था, अतः उन्हें ट्यूशन कराना पड़ा। विश्वेश्वरय्या ने 1880 में बीए में प्रथम स्थान प्राप्त किया तत्पश्चात इंजीनियरिंग के पढ़ाई के लिए उन्होंने पूणे के साइंस कॉलेज में प्रवेश लिया। पढ़ाई में अच्छा होने की वजह से उन्हें मद्रास सरकार का सहयोग भी मिला। 1883 की एलसीई व एफसीई, जिन्हें वार्तमान समय में बीई कहा जाता है, उसकी परीक्षा में विश्वेश्वरय्या अव्वल आए। उनकी प्रतिभा को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें नासिक में सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त किया।
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उनके बारे में एक क़िस्सा बहुत प्रचलित है। एक बार कुछ भारतीयों को अमेरिका में फैक्ट्रियों की कार्यप्रणाली देखने के लिए भेजा गया। फैक्ट्री के एक ऑफ़िसर ने एक विशेष मशीन की ओर इंगित करते हुए कहा, अगर आप इस यंत्र के बारे में जानकरी प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको इसकी 75 फुट ऊंची सीढ़ी पर चढ़ना होगा। यह सुनते ही सब घबरा गए किंतु भारतीयों का प्रतिनिधित्व कर रहे सबसे वरिष्ठ व्यक्ति ने कहा, ठीक है हम चढ़ते हैं अभी, यह कहकर वह व्यक्ति सीढ़ी पर चढ़ गया और यंत्र का निरीक्षण करने के बाद वह शख़्स नीचे उतर आया, वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि विश्वेश्वरय्या थे।
विश्वेश्वरय्या मूलतः भारत के पहले सिवल इंजीनियर थे। अपने इंजीनियर रहते हुए उन्होंने बहुत सारे उल्लेखनीय कार्य किए। कर्नाटक में किए गए उनके कार्यों के कारण उन्हें कर्नाटक का भागीरथी कहा गया। मैसूर को एक समृद्ध राज्य बनाने में विश्वेश्वरय्या का अभूतपूर्व योगदान रहा। पराधीन भारत में कृष्णराज सागर बांध, भद्रावती आयरन एण्ड स्टील वर्क्स, मैसूर सैंडल ऑयल एंड सोप फैक्ट्री, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ़ मैसूर जैसे प्रतिस्ठान विश्वेश्वरय्या के अथक प्रयासों के कारण पूर्ण हो पाए। वस्तुतः जब वो मात्र 34 वर्ष के थे तो उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे तक पानी को भेजने की विस्तृत योजना बनाई। वह योजना इतनी उत्कृष्ट थी कि सभी को पसंद आयी।
सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के क्रम में विश्वेश्वरय्या ने एक नए ब्लॉक सिस्टम का निर्माण किया। उन्होंने इस्पात के दरवाज़े बनाए, जो बांध से पानी के बहाव को रोकने का काम करता था। उनके इस कार्य का लोहा अंग्रेज़ी सरकार ने भी माना, ब्रिटिश अधिकारियों ने बांध के संदर्भ में उनकी जमकर प्रशंसा की। आज भी यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लायी जाती है। कहते हैं कि जब कृष्णराज सागर का निर्माण हो रहा था तब भारत में सीमेंट का उत्पादन नहीं होता था, इसके लिए उनके नेतृत्व में इंजीनियरों ने ऐसा मोर्टार (मसाला) बनाया, जो सीमेंट से ज़्यादा मज़बूती प्रदान करता था।
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शिक्षा के महत्व को भलीभांति समझने वाले विश्वेश्वरय्या लोगों की गरीबी का कारण शिक्षा को मानते थे। उन्होंने मैसूर में स्कूलों की संख्या में भारी वृद्धि कराई। उनके प्रयासों से देश में कई कृषि व इंजीनियरिंग संबंधी कॉलेज खुले। उनके इन प्रयासों ने भारत में अभियांत्रिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास किया। भारत में अभियांत्रिकी को नए शिखर पर ले जाने वाले विश्वेश्वरय्या ने जो बीज बोए, आज भारत उसी का फल काट रहा है। किंतु बड़े दुःख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि आज भारत के कॉलेजों में अभियांत्रिकी के पढ़ाई का स्तर गिर रहा है, छात्र पास होने के लिए पढ़ते हैं न कि देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचाने के लिए।
आपको बताते चलें कि विश्वेश्वरय्या और मोहनदास करम चंद गांधी दोनों अच्छे दोस्त थे किंतु वो गांधी के कुछ विचारों से असहमति रखते थे। उनका मानना था कि गांधी जी के कृत्यों की वजह से औद्योगीकरण नकारात्मक रूप से प्रभावित होगा, जो कि भारत के विकास में बाधक होगा। विश्वेश्वरय्या ने गांधी जी से सत्याग्रह आंदोलन रोकने का भी आग्रह किया था लेकिन महात्मा गांधी ने कहा, विश्वेश्वरय्या को लगता है कि सत्याग्रह फ़ैक्ट्रियों में संघ को जन्म देगा, जो देश के विकास में बाधा पहुंचाएगा लेकिन यह हर मनुष्य का अधिकार है कि वे अपने खिलाफ हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाए। 101 साल के विश्वेश्वरय्या की मृत्यु 14 अप्रैल 1962 को हुई, जितना विशाल उनका जीवन था उससे कहीं विशाल उनके द्वारा किए गए कार्य। उनके सम्मान में भारत सरकार ने उनके जन्मदिवस 15 सितम्बर को अभियांत्रिकी दिवस के रूप में घोषित किया, जो आज भी मनाया जा रहा है।
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