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‘भारतीय छात्र कनाडा आ रहे हैं’ CBC के लेख का TFI ने ‘ऑपरेशन’ किया है

TFI संस्थापक अतुल मिश्रा की जादुई भाषा में कमाल का लेख, छोड़ मत दीजिए।

Atul Kumar Mishra द्वारा Atul Kumar Mishra
13 September 2022
in मत
CBC News
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बीते 11 सितंबर, 2022 को CBC News ने एक ओपेड प्रकाशित किया, जिसके माध्यम से प्रकाशन ने यह बताने का प्रयास किया कि अधिक से अधिक भारतीय छात्र अपनी शिक्षा ग्रहण करने कनाडा क्यों आ रहे हैं, किंतु बिना सर-पैर के लिखा गया यह ओपेड स्वयं का ही उपहास उड़ाता है। वस्तुतः जब हम ऐसे किसी लेख को लिखते हैं तो स्वयं के द्वारा किए दावों को बल प्रदान करने के क्रम में पर्याप्त आंकड़े भी प्रस्तुत करते हैं किंतु CBC द्वारा प्रकाशित इस ओपेड में आंकड़े ही अपर्याप्त हैं जिससे यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि यह लेख एक एजेंडे के अंतर्गत लिखा गया है।

लेख में किए गए दावों की पोल खुलेगी

यह लेख कनाडा में रह रहे दो भारतीय प्रवासी सरबमीत सिंह और अक्षय कुलकर्णी के द्वारा लिखा गया है लेकिन मैं इनके लेख को लेकर केवल बड़ी-बड़ी बातें नहीं करूंगा, मैं तथ्यों को आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए इनके द्वारा किए गए दावों की पोल खोलूंगा।

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यूक्रेन से लौटे छात्रों को सरकारी मेडिकल कॉलेज में मिलेगा दाखिला? डूब जाएगी नैया

यूक्रेन संकट के बीच मेडिकल छात्रों के लिए मोदी सरकार का बड़ा फैसला, अब सरकारी शुल्क पर ही चलेंगे निजी मेडिकल कॉलेज

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इस लेख में यह बताया गया है कि भारतीय छात्र किन दो कारणों से कनाडा में प्रवास करते हैं, लेखकों की माने तो भारत में अस्थिर राजनीतिक वातावरण एवं रोज़गार के साधन में कमी के कारण भारतीय छात्रों को कनाडा आना पड़ता है। इस लेख में एक भारतीय को सदर्भित करते हुए बताया गया है कि करण सिंह नाम का एक व्यक्ति कनाडा चला गया है क्योंकि उसे हरियाणा में व्यक्तिगत सुरक्षा को लेकर भय है। इस लेख का मूल आधार यही है, किंतु समझना होगा कि पिछले कई दशकों से भारतीय छात्र बेहतर शिक्षा एवं रोज़गार की खोज में विश्वभर में जाते रहे हैं। भारतीय छात्र अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, यूक्रेन और यहां तक ​​कि चीन भी जाते रहे हैं, इन देशों के अतिरिक्त भारतीय छात्रों का कनाडा जाना तुलनात्मक रूप से नयी घटना है|

सरलता के लिए इन छात्रों को हम 6 वर्ग समूहों में विभाजित कर सकते हैं-

1)अच्छे छात्र, गरीब माता-पिता (जीएसपीपी)

2)औसत छात्र, गरीब माता-पिता (एएसपीपी)

3)अच्छे छात्र, मध्यवर्गीय माता-पिता (जीएसएमपी)

4)औसत छात्र, मध्यम वर्ग के माता-पिता (एएसएमपी)

5)अच्छे छात्र, अमीर माता-पिता (जीएसआरपी)

6)औसत छात्र, अमीर माता-पिता(एएसआरपी)

एएसपीपी के अंतर्गत छात्र दो-तिहाई भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं और कभी-कभी वे एएसएमपी में भी शामिल हो जाते हैं। एएसएमपी के छात्र ज्यादातर टियर-2 भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ते हैं। जीएसपीपी, जीएसएमपी और जीएसआरपी आम तौर पर भारत में प्रतिष्ठित प्रवेश परीक्षाओं को पास करते हैं। ये वे हैं जो आपको IIT और IIM जैसे टियर-1 विश्वविद्यालयों में मिलते हैं।

और पढ़ें- ‘द वायर’ के औपनिवेशिक गुलामों, कान्होजी आंग्रे के बारे में विष वमन करने से पहले ये पढ़ लो

अब कुल मिलाकर बचे एएसआरपी छात्र, आमतौर पर यह बिगड़ैल बच्चे होते हैं जिनका जीवन के प्रति सादा और लक्ष्यहीन दृष्टिकोण होता है। वे अपने पूरे स्कूली जीवन में ही संघर्ष करते हैं लेकिन उनके पास सबसे चमकदार लैपटॉप होते हैं ये वे लोग हैं जो 12वीं की परीक्षा के बाद विदेश के लिए पहला विमान पकड़ते हैं। किंतु किस देश के लिए?

ये लोग यूएस और यूके नहीं जाते हैं, सिंगापुर या औस्ट्रलिया भी नहीं जाते, विश्वविद्यालय के लिहाज़ से अमेरिका और ब्रिटेन में दुनिया के कुछ बेहतरीन विश्वविद्यालय हैं। वस्तुतः पढ़ाई में शुरू से ही कमजोर रहने के कारण MIT, कैम्ब्रिज, स्टैनफोर्ड, ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड, कैलटेक, इंपीरियल आदि जैसे कॉलेज एएसआरपी को प्रवेश नहीं देते हैं, मूलतः एएसआरपी प्रवेश परीक्षा को क्रैक नहीं कर पाएंगे। उस ने कहा कि एएसआरपी अभी भी अच्छे कॉलेजों की पहली प्रतियों में शामिल हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, लंदन स्कूल ऑफइकोनॉमिक्स एक ग्रेड-ए कॉलेज है लेकिन लंदन (और उसके उपनगरों) में ऐसे स्कूल हैं जिनमें लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंडबिजनेस, लंदन स्कूल ऑफ बिजनेस एंड फाइनेंस और लंदन इकोनॉमिक्स स्कूल जैसे मिलते-जुलते नाम हैं। आप एडिडास-एबिदास की अवधारणा से तो भलीभाँति परिचित होंगे, लेकिन एएसआरपी इन मिलते-जुलते नामों के कॉलेज के लिए समझौता नहीं करते हैं। हालांकि इन छात्रों के लिए सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया अपेक्षाकृत आसान विकल्प हैं किंतु फिर भी एएसआरपी के लिए यह मिशन भी असंभव होता है।

इसलिए इन एएसआरपी के पास चीन, यूक्रेन या कनाडा में अध्ययन करने का एकमात्र विकल्प ही बचा रहता है। चीन के महानगरों की हर गली में डेंटिस्ट्री का एक कॉलेज है। चीन में कोई भी डेंटिस्ट बन सकता है। मेरे बचपन का एक दोस्त (एएसआरपी) पटना में Levi’s का शोरूम चलाता है। वह अपने लिए काफी अच्छा कर रहा है, किंतु उसने चीन से डेंटिस्ट की पढ़ाई की है। यूक्रेन के मेडिकल कॉलेजों की पढ़ाई 30% सस्ती तो है लेकिन ये 0% ज्ञान प्रदान करते हैं। यह बात और है कि यूक्रेन से डॉक्टरी पढ़कर लौटे छात्र लगभग कभी भी आईएमए परीक्षा पास नहीं कर पाते हैं और इसलिए उन्हें भारत में डॉक्टर ही नहीं माना जाता है, ऐसे में वे विदेश में रहने को मजबूर हो जाते हैं।

चीन और यूक्रेन,एएसआरपी के शीर्ष के पसंदीदा देशों में हुआ करते थे जब से कनाडा एक विकल्प के रूप में उनके सामने आया है तो धीरे-धीरे ये कनाडा की तरफ़ पलायन करने लगे है, हालांकि कनाडा, चीन एवं यूक्रेन की तुलना में कम से कम 3 गुना अधिक महंगा है लेकिन एएसआरपी के पास धन की कमी नहीं है। इसलिए, पिछले 20 वर्षों में, हमने कनाडा को केवल खालिस्तानी, कैब ड्राइवर और एएसआरपी निर्यात किए हैं। चीन और यूक्रेन क्षेत्र में अब एएसएमपी का दबदबा है।

और पढ़ें- आप पृथ्वी से प्रेम करते हैं तो इलेक्ट्रिकल व्हीकल कभी मत खरीदना

इन कॉलेजों का एकमात्र उद्देश्य ही पैसा कमाना है

कनाडा विषयों को चुनने के लिए एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करता है- मूलतः कानून, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, प्रबंधन इत्यादि विषय। मैकगिल, या टोरंटो विश्वविद्यालय जैसे अच्छे संस्थानों को छोड़कर कनाडाई विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना बहुत आसान है। इसलिए एएसआरपी आमतौर पर कनाडा के ऐसे कॉलेजों में पढ़ते हैं जिन कॉलेजों का एकमात्र उद्देश्य ही पैसे कमाना होता है।

ब्रिटिश कोलंबिया के प्रश्न को समझना बहुत आसान है। ब्रिटिश कोलंबिया कनाडा में यहूदी बस्ती से प्रभावित प्रांत है।  इसमें किसी भी कनाडाई प्रांत की तुलना में प्रति वर्ग फुट अधिक प्रवासी और प्रति वर्ग मील अधिक कॉलेज हैं।  ओंटारियो इसका दूसरा उदाहरण है, इसलिए यह महज संयोग नहीं है कि पढ़ाई के लिए कनाडा जाने वाले अधिकांश भारतीय छात्र ब्रिटिश कोलम्बिया एवं ओंटारियो निवास करते हैं और यदि साथ में कोई अन्य एएसआरपी रहने लगता है तो और सोने पे सुहागे जैसी बात हो जाती है।

मैं यदि यह कहूं कि फ्रांस में एक ‘अस्थिर राजनीतिक माहौल’ है किंतु मै अगर आँकड़ों और तथ्यों को न रखूँ तो यह मात्र मेरे दिमाग़ में उपजा हुआ विचार होगा। CBC ओपेड के पास इस व्यापक झूठ की पुष्टि करने के लिए कोई भी ठोस तथ्य नहीं है। नौकरी के अवसरों की कमी एक वैध बिंदु है लेकिन किस देश में इसकी प्रचुरता नहीं है? उदाहरण के लिए अमेरिका को ले सकते हैं, ओबामा के दौर में अमरीकी नौकरी के अवसरों की कमी को लेकर त्राहि त्राहि रहे थे, ट्रम्प के शासन के दौरान लोग नौकरी के अवसरों की कमी को लकेर त्राहि त्राहि कर रहे थे और लोग मौजूदा बाइडेन युग के दौरान में भी नौकरी के अवसरों की कमी के बारे में रो ही रहे हैं। गरीबी, सुरक्षा, नौकरियां और महंगाई (सकारात्मक सुधार) किसी भी राजनीतिक अभियान के चार स्तम्भ होते हैं। कुछ भी हो, आँकड़े बताते हैं कि भारत ने पिछले 25 वर्षों की तुलना में पिछले 8 वर्षों में अधिक नौकरियां जोड़ी हैं (स्पष्टीकरण के लिए ईपीएफ पंजीकरण डेटा देखें)।

और ग्रामीण हरियाणा का एक अप्रवासी अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित क्यों है? क्या वह कुछ छुपा रहा है? हो सकता है कि श्री करण सिंह की अगली यात्रा के दौरान उनके घर की जांच की जाए।

इसे सारांशित करते हुए मैं कहना चाहूंगा कि CBC संपादकीय बोर्ड ने भारत विरोधी लेख लिखने का फैसला तब किया जब भारत ने अर्थव्यवस्था के खेल में यूके को पीछे छोड़ दिया। उन्होंने दो यादृच्छिक एएसआरपी चुने और उन्हें साधारण स्कूल-स्तरीय अंग्रेजी में एक ड्रोनिंग पीस लिखने को कहा। इन एएसआरपी के माता-पिता को अपने बच्चों से बात करनी चाहिए और उन्हें पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने और ड्रग्स से दूर रहने के लिए कहना चाहिए। ऐसा करना ही समझदारी की बात होगी।

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Tags: डेंटिस्टमेडिकल कॉलेजलंदन स्कूल ऑफइकोनॉमिक्ससीबीसी न्यूज
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