क्या आप भी इलेक्ट्रिक व्हीकल को पसंद करते हैं?
क्या आपको लगता है कि ईवी ही भविष्य है?
क्या आप ईवी को कच्चे तेल का विकल्प मानते हैं?
अगर आप ऐसा सोंचते हैं तो आप बिल्कुल गलत हैं. ईवी भविष्य हो ही नहीं सकता और इसी कारण भारत समेत दुनिया के तमाम देश अब ईवी का विकल्प ढूंढने में लगे हैं और इस रेस में भारत काफी आगे निकल चुका है. इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेनों के साथ भारत परिवहन क्षेत्र में क्रांति लाने को तैयार है.
भारत में हाइड्रोजन से चलेगी ट्रेन
दरअसल, हाल ही में रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि भारत हाइड्रोजन ऊर्जा पर आधारित ट्रेन बना रहा है, जो 2023 यानी अगले वर्ष तक बनकर तैयार हो जाएगी. अगर भारत ऐसा कर पाता है तो यह परिवहन के क्षेत्र में परिवर्तन के क्रम में मील का पत्थर साबित होगा और साथ ही यह भारत के अंदर परिवहन के क्षेत्र को क्रांतिकारी तरीक़े से बदल कर रख देगा. वस्तुतः हाइड्रोजन को जीवाश्म ईंधन के बाद सबसे ज़्यादा भरोसेमंद ईंधन माना जा रहा है, जो परिवहन को सुगम तो बनाएगा ही साथ ही कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने में भी सहायक होगा. इसी क्रम में भारत उन अग्रणी देशों की सूची में शामिल है जो हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा के क्षेत्र में विकास की सम्पूर्ण संभावनाओं के हर सिरे को तलाश रहा है. वहीं, वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (एनएचएम) की घोषणा की गई है, जो ऊर्जा स्रोत के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग करने के लिए एक रोड मैप तैयार करेगा.
वर्तमान में भारत का परिवहन क्षेत्र 13.5% कार्बन के उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी है और भारत में परिवहन क्षेत्र में रेलवे सबसे बड़ा घटक है. ऐसे में यदि ट्रेन हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा पर चलने लगेगी तो यह भारत द्वारा तय किए अपने शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु बहुत ही महत्वपूर्ण कदम साबित होगा. वस्तुतः भारत ने स्वयं को 2070 तक नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन वाला देश बनाने का लक्ष्य रखा है. ऐसे में यदि रेलवे में यह विकास होता है तो यह परिवहन के अन्य क्षेत्र में भी पूरी व्यापकता के साथ फैलेगा, इससे भारत द्वारा अपने लक्ष्यों की प्राप्ति सरलता के साथ की जा सकेगी.
ज्ञात हो कि एक हाइड्रोजन ईंधन टैंक को 5 से 10 मिनट में भरा जा सकता है. वहीं, टेस्ला के 120 kW के फास्ट चार्जर भी तीस मिनट में 80% बैटरी बैकअप देते हैं, इसलिए हमें यह समझना चाहिए कि इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करना भी आसान काम नहीं है. EV से यात्रा को व्यावहारिक बनाने के लिए देश में चार्जिंग स्टेशनों के रूप में एक विशाल बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होगा. दूसरी ओर हाइड्रोजन FCV पहले से मौजूद पंप स्टेशनों के नेटवर्क पर कार्य कर सकते हैं और मोदी सरकार हाइड्रोजन फ्यूल को ईंधन के रूप में प्रयोग करने की ओर कदम बढ़ा चुकी है. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव का हालिया बयान इसका प्रमाण है.
हाइड्रोजन फ्यूल से नहीं होगा पर्यावरण का ह्रास
ध्यान देने वाली बात है कि ईवी नहीं हाइड्रोजन ही भविष्य है, जिस पर भारत काफी तेजी से काम कर रहा है. हाइड्रोजन ईंधन एक शून्य कार्बन उत्सर्जन ईंधन है. हाइड्रोजन को ईंधन के रूप में प्रयोग करने में समस्या प्रदूषण नहीं बल्कि तकनीक का कम विकास है लेकिन भारत ने इस क्षेत्र में लंबी छलांग लगा ली है. हाइड्रोजन ऊर्जा को लेकर विश्व के अन्य देश भी अपने अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं. इंडो पैसिफ़िक क्षेत्र में भारत के साथ साथ जापान और साउथ कोरिया ही ऐसे देश हैं, जो हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा के ऊपर गंभीरता से कार्य कर रहे हैं. वहीं, जर्मनी ऐसा कमाल करने वाला इकलौता देश है. आज स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता पूरी दुनिया की अनिवार्यता बन गई है. यह भारत के लिए एक और कारण से भी महत्वपूर्ण है. देश में ईंधन की जितनी मांग है, उसका अधिकतर भाग हम आयात करते हैं, जिसके लिए देश को हर वर्ष 160 अरब डालर खर्च करने पड़ते हैं. इससे विदेशी मुद्रा का बहिर्गमन होता है. हालांकि, भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत और उत्सर्जन वैश्विक औसत के आधे से भी कम है.
वहीं, पश्चिमी देशों की ओर से ईवी को जमकर बढ़ावा दिया जा रहा है, जो किसी खतरे से कम नहीं है. लेकिन जिस ईवी का झंडा पश्चिमी देश उठा रहे हैं वह मात्र उनकी एक चाल मात्र से ज़्यादा और कुछ भी नही हैं. वस्तुतः ईवी में लिथियम बैटरी का उपयोग किया जाता है जिसके फटने की संभावना काफी ज्यादा है. आम तौर पर इन गाड़ियों की बैटरी क्षमता 40kWh से 100kWh तक होती है. इसका मतलब है कि आप चलते फिरते एक बड़े बॉम्ब पर सवार हैं. इतनी क्षमता के बावजूद भी ये गाड़ियां एक बार चार्ज करने के बाद 300KM से ज़्यादा नहीं चल पाती हैं. इसके बावजूद ईवी की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और पश्चिमी देशों द्वारा इसे खूब बढ़ावा भी दिया जा रहा है.
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नतीजतन लिथियम पाने की चाह में ज़्यादा खुदाई हो रही है, जिससे न सिर्फ़ पृथ्वी की पारिस्थिकी तंत्र का नाश हो रहा है अपितु पानी का व्यय भी अधिक हो रहा है. एक औसतन ईवी कार की कीमत सामान्य कार की कीमत से अधिक होती है किंतु कार्यक्षमता कहीं कम. एक्स्पर्ट्स की मानें तो एक ईवी कार की लाइफ़ साइकल औसतन 5 वर्ष की होती है तत्पश्चात उसकी कार्यक्षमता काफी घट जाती है. अब यदि कोई व्यक्ति ईवी लेता है और 5 वर्ष के बाद उसे बेच देता है तो उस कार को बनाने के दौरान हुए प्रदूषण को बेअसर नहीं कर पाएगा. इन सब के बाद गरीब देश जैसे अफ़्रीका आदि देशों में लिथियम निकालने के क्रम में बाल मज़दूरी एवं बंधुआ मज़दूरी जैसे कृत्य भी हो रहे हैं, जिसमें मनुष्यों का शोषण हो रहा है. यह सब कारक बताते हैं कि ईवी का कोई विशेष भविष्य नही है. आने वाले चंद वर्षों में हाइड्रोजन आधारित गाड़ियां इसे कई गुना पीछे छोड़ देंगी. भारत सरकार हाइड्रोजन आधारित गाड़ियों एवं अब ट्रेन को बढ़ावा देने में जी जान से जुटी है, जिससे किसी भी तरह पर्यावरण का ह्रास नहीं होगा.
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