किसी ने सत्य कहा है, “आप कुछ लोगों को हर समय उल्लू बना सकते हो, आप सभी को कुछ समय तक उल्लू बना सकते हो, पर सबको हर समय उल्लू नहीं बना सकते!” दुर्भाग्य है चीन के नैनोमीटर से भी छोटे मस्तिष्क में ये बात आज तक नहीं घुसी क्योंकि उसे लगता है कि संसार तो घोंचू है, इसके तिकड़मों का क्या ही पता चलेगा। पर बंधु, संसार इसकी तरह अपने नेत्रों और अपने मस्तिष्क में आयोडेक्स डालकर तो बैठी नहीं है। इस लेख में हम विस्तार से चीन की इसी हास्यास्पद सोच से अवगत होंगे, जो एक ओर मित्रता का हाथ बढ़ाता है और दूसरी ओर भारत को नीचा दिखाने एवं उसके साथ विश्वासघात करने के स्वप्न भी बुनता है।
दरअसल, हाल ही में बांग्लादेश में चीन के शीर्ष राजनयिक ली जिमिंग ने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से भारत के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। उन्हें लगता है कि भारत और चीन आर्थिक और भू-राजनीतिक मुद्दों को हल करने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं। चीनी राजदूत ने ढाका में कहा कि चीन की भारत के साथ कोई रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता नहीं है। वह बंगाल की खाड़ी को भारी हथियारों से लैस नहीं देखना चाहता है।
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इसके पीछे भी बड़ा कारण है
वाह भई, अप्रतिम विचार, क्या बात है, पर यह यूं ही नहीं हुआ, मजबूरी थी बंधुवर! जिनके राष्ट्राध्यक्ष को कोई टके का भाव न दे, तो ऐसे ही मनाना पड़ता है न। जी20 या संयुक्त राष्ट्र तो छोड़िए, जिनपिंग महोदय को भारत ने SCO समिट तक में पानी भी नहीं पूछा। अधिक रोचक बात तो यह है कि यह टिप्पणी तब आई जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत में चीनी राजदूत सुन वेइदॉन्ग के समक्ष भारत-चीन संबंधों पर कड़ी टिप्पणी की।
अपनी विदाई भाषण में सुन वेइदॉन्ग ने कहा कि भारत और चीन के बीच मतभेद होना स्वाभाविक है। उन्हें सामान्य आधार की तलाश करनी चाहिए और अपने संबंधों को असहमति से परिभाषित नहीं होने देना चाहिए। चीन और भारत के एक साथ विकसित होने के लिए दुनिया में पर्याप्त जगह है। उन्होंने कहा, “दोनों पक्षों को मतभेदों को खत्म करने और इसका समाधान ढूंढने का प्रयास करना चाहिए। भारत-चीन को बातचीत और परामर्श के माध्यम से एक उचित समाधान की तलाश करनी चाहिए। भारत-चीन संबंधों का सामान्य होना दोनों देशों के हित में है।”
अब यह बात उन्होंने यूं ही नहीं कही। चीन के दोहरे मापदंडों से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है लेकिन इसके वर्तमान हरकतों को देखकर एक बार पाकिस्तान भी अपने आप को कहेगा – ‘भाईजान, अपने भी कुछ स्टैंडर्ड होते हैं।’ चाहे जितना भी निकृष्ट हो पाकिस्तान, उसका एक स्पष्ट ध्येय है- आतंकवाद, जिसके लिए वह सब कुछ भी करने को तैयार रहता है। परंतु चीन का क्या ध्येय है, क्या उद्देश्य है, इसे समझना तो अनंत यानी Infinity को समझने से भी अधिक कठिन है। उदाहरण के लिए जो चीन भारत से शांतिवार्ता की बात करता है, वही पुनः सीमा पर घुसपैठ की तैयारियां प्रारंभ कर रहा है। विश्वास नहीं होता तो आपको बता दें कि पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग लेक के नजदीक चीनी सेना शेल्टर बनाने में जुटी है और यह वही इलाका है जहां विवाद हुआ था और इसके बाद समझौते के तहत दोनों देशों की सेनाएं पीछे की ओर जाने को राजी हुई थीं।
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TFI ने पहले ही कही थी ये बात
हालांकि, हमने पहले ही बताया था कि दोनो देशों द्वारा उठाया गया यह कदम ज़्यादा दिनों तक शांति स्थापित नहीं करेगा और इस शांति को भंग करने का कारण भी स्वयं चीन ही होगा क्योंकि वस्तुतः खुद को कॉम्युनिस्ट कहने वाले चीन के मूल स्वभाव में ही विस्तारवाद है। और अब जब चीनी सैनिक पैंगोंग लेकर के नजदीक शेल्टर बना रहे हैं तो हमारी यह बातें सही साबित होती दिख रही हैं।
चीन अपने छल, कपट एवं दोगलेपन के लिए मशहूर है। दुनिया पर राज करने की महत्वाकांक्षा रखने वाले चीन की नज़र लद्दाख पर बहुत पहले से ही है। मूलतः भारत के आसपास के क्षेत्र को चीन वन पॉम एंड फाइव फ़िंगर के अंतर्गत देखता है। वस्तुतः तिब्बत की पांच उंगलियां एक चीनी विदेश नीति है, जिसका श्रेय माओत्से तुंग को दिया जाता है, जो तिब्बत को चीन की दाहिनी हथेली मानता है, जिसकी परिधि पर पांच उंगलियां हैं: लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान, और नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी!
जब दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटी थी, हमने तब भी कहा था कि चीन की मंशा को जानते हुए भी उसपर भरोसा दिखाना भारत के हित में नहीं होगा क्योंकि अगर चीन दोबारा ऐसा कृत्य करता है तो भारत की भूमि पर चीनी सैनिक आगे बढ़ सकते हैं। अक्साई चिन पर पहले से ही चीनी ने अवैध तरीके से कब्जा जमा रखा है। दूसरा कारण है भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था ने चीन के कान खड़े कर दिए हैं। चीन यह कभी नही चाहेगा कि भारत जैसा बड़ा देश जो कि उसके पड़ोस में स्थिति है वह आर्थिक रूप से मज़बूत हो। तमाम प्रतिष्ठित संस्थाओं की रिपोर्ट यह कह रही है कि भारत विकास की नयी रफ़्तार पकड़ने वाला है, ऐसे में चीन भारत को उलझाए रखने के लिए ऐसे कृत्य करने की कोशिश अवश्य करेगा।
जो गलतियों से सीखे, वो चीन कहां!
अब इस बात को सत्य में परिवर्तित करने के लिए चीनी प्रशासन जी जान से जुट गया है। एक सप्ताह पहले ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग तीसरी बार देश के सर्वोच्च नेता चुने गए हैं. उन्होंने सीपीसी बैठक के दौरान गलवान वैली हिंसा का वीडियो चलवाया और इसके बाद यह बताने की कोशिश की गई कि चीनी सेना से भारतीय सेना का बड़ा नुकसान किया, जबकि हकीकत से ये कोसों दूर है। चीन, भारत को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी मान रहा है इसीलिए वो बार-बार ऐसी हरकतें कर रहा है जिससे भारत किसी तरह की गलती करे और फिर चीन इसका फायदा उठा सके।
चीन वापस से विवादित इलाके में अपने टेंट बना रहा है। चीनी सैनिक जब एलएसी और पैंगोंग लेक से दूर हटे तो रुटोग काउंटी में मौजूद अपने मिलिट्री गैरिसन यानी छावनी में गए। अब चीनी सेना इसी छावनी में सैनिकों के लिए लॉजिस्टिक सपोर्ट बेस बढ़ा रही है। खबरों के अनुसार, चीनी सेना ने रुटोग काउंटी छावनी में 20 दिन के भीतर ही 85 से ज्यादा नए शेल्टर तैयार कर लिए हैं। यह चीनी सेना के लिए सबसे बड़े लॉजिस्टिक सपोर्ट बेस के तौर पर देखा जा रहा है, यहां पर 250 से ज्यादा अस्थाई शेल्टर भी हैं। ऐसे में यदि चीन ये सोच रहा है कि वह भारत की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाकर पीछे से पूर्वी लद्दाख में घुसपैठ भी कर लेगा और कोई कुछ नहीं कर पाएगा, तो उससे बड़ा मूर्ख इस संसार में कोई नहीं। कम से कम अपने पालतू पाकिस्तान के अनुभव से ही कुछ सीख लेता, पर छोड़िए, जो गलतियों से सीखे, वो चीन कहां।
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