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अंततः चुनाव चिह्न से तय हो गया कि बालासाहेब ठाकरे की विरासत को संभालने के लिए एकनाथ शिंदे ही सबसे योग्य हैं

बालासाहेब ठाकरे के वास्तविक उत्तराधिकारी को चुनाव आयोग भी अच्छे से पहचानता है

Vaishali Shukla द्वारा Vaishali Shukla
13 October 2022
in राजनीति
शिवसेना चुनाव चिह्न
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इस साल महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल तब आई जब शिवसेना दो धड़ों में बंट गयी और उद्धव ठाकरे की मुख्यमंत्री की कुर्सी गयी सो अलग। शिवसेना के टूट जाने के बाद से ही चुनाव आयोग ने इनका मूल चुनाव चिह्न फ्रीज़ कर दिया था। जिसके बाद से ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच चुनाव चिह्न को लेकर एक जंग चल पड़ी थी। लेकिन अब दोनों गुटों के बीच जारी पहचान चिह्न की जंग पर विराम लग गया है क्योंकि दोनों ही गुटों को नया नाम आवंटित कर दिया गया है।

और पढ़े: ‘शिवसेना’ में अब अकेले बचे उद्धव ठाकरे, बड़े भाई ने भी छोड़ा साथ

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एकनाथ शिंदे ने निर्णय का किया स्वागत

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को ‘ढाल और दो तलवार’ का चिह्न मिला और ‘बालासाहेबांची शिवसेना’ (बालासाहेब की शिवसेना) का नाम दिया गया है। वहीं दूसरी ओर उद्धव ठाकरे के खाते में ‘मशाल’ का चिह्न आया है और उनकी पार्टी का नाम ‘शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)’ आवंटित हुआ है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने चुनाव आयोग के इस निर्णय का खुले दिल से स्वागत किया है और इस चुनाव चिह्न को छत्रपति शिवाजी महाराज और पुरानी शिवसेना से भी जोड़ दिया है। शिंदे ने कहा कि चुनाव चिह्न के लिए उनका पहला विकल्प ‘सूर्य’ था। लेकिन वो ये चुनाव चिह्न मिलने से बहुत अधिक खुश है।

उन्होंने कहा, ‘बालासाहेबांची शिवसेना आम लोगों की शिवसेना ही है। हम निर्वाचन आयोग के द्वारा आए इस फैसले को स्वीकार करते हैं। हमने पहले ‘सूर्य’ चिह्न को प्राथमिकता दी थी लेकिन चुनाव आयोग ने तलवार और ढाल को मंजूरी दे दी यह चुनाव चिह्न पुरानी शिवसेना का चुनाव चिह्न था। यह एक महाराष्ट्रियन प्रतीक माना जाता है। यह छत्रपति शिवाजी और उनके सैनिकों का भी प्रतीक है।

दोनों गुटों के बीच चल रही इस जंग में चुनाव आयोग ने चुनाव चिह्न के लिए तीन विकल्प और नये  नाम मांगे थे। जिस पर दोनों गुटों ने शिवसेना (बालासाहेब ठाकरे) नाम मांगा था। दोनों गुटों के द्वारा समान मांग आते देख चुनाव आयोग ने दोनों ही गुटों को ये नाम देने से मना कर दिया था। नाम के अलावा दोनों ने चिह्नों के दिए गए विकल्पों में त्रिशूल और उगता सूरज चुनाव चिह्न की मांग की थी।

और पढ़े: ‘चीटिंग करता है तू’, शिंदे के सीएम बनने पर उद्धव का रिरियाना मज़ेदार है

सूरज का निशान भी खारिज

चुनाव आयोग ने विकल्पों के रूप में दिये जाने वाले चुनाव चिह्नों में से गदा और त्रिशूल को धार्मिक संकेत बताते हुए इनको खारिज कर दिया था। वहीं, उगता सूरज का निशान भी खारिज कर दिया गया था क्योंकि ये पहले से ही द्रमुक के पास है।

इनको मिलने वाले चुनाव चिह्न अपने आप में बहुत ही विशेष है क्योंकि अगर इतिहास देखें तो ये दोनों चिह्न शिवसेना की राजनैतिक यात्रा में पहले से ही शामिल रह चुके हैं। अब इन चुनाव चिन्हों के मिलने के पीछे क्या कारण है इस बात को समझने के लिए आपको ले चलते है कुछ साल पीछे।

सबसे पहले बात करते हैं एकनाथ शिंदे को मिलने वाले चुनाव चिह्न की, तो साल 1968 में जब शिवसेना को राजनीति में आए हुए 2 साल हो चुके थे तब पार्टी ने ढाल और दो तलवार के चिह्न पर अपना चुनाव लड़ा था। इसका पूरा-पूरा श्रेय पार्टी संस्थापक दिवंगत बाल ठाकरे के पिता और समाज सुधारकर प्रबोधंकर केशव सीताराम ठाकरे के पक्ष में जाता है।

और पढ़े: देवेंद्र फडणवीस उद्धव ठाकरे को उनकी पीठ में छुरा घोंपने का दंड दे रहे हैं

चुनाव चिह्नों का इतिहास

वहीं साल 1966 में शिवसेना का निर्माण हुआ था। उसके बाद साल 1968 में मुंबई नगर निगम का चुनाव लड़ा, तब पार्टी को ढाल और तलवार का चुनाव चिह्न मिला था। वहीं साल 1980 के समय में पार्टी का चिह्न रेल इंजन था। इसके बाद ये चुनाव चिह्न बहुत अधिक चर्चाओं में आया था।

अब बात करते हैं उद्धव ठाकरे को मिलने वाले चुनाव मशाल चिह्न की, तो साल 1990 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना की ओर से इस चिह्न पर छगन भुजवल ने चुनाव लड़ा था। उस चुनाव के दौरान उन्होंने मझगांव क्षेत्र से मशाल के चिह्न पर चुनाव जीत लिया था।

वैसे तो दोनों ही गुटों को शिवसेना का चुनाव चिह्न मिला है, लेकिन अगर सहीं अर्थों में देखें तो एकनाथ शिंदे को उद्धव ठाकरे से पुराना वाला चुनाव चिह्न मिला है। वहीं एकनाथ शिंदे को वो चुनाव चिन्ह दिया गया है, जो कभी बालासाहेब ठाकरे का चुनाव चिह्न हुआ करता था। साथ ही एकनाथ शिंदे को मिलने वाले नाम पर भी ध्यान देना होगा।

और पढ़ें- उद्धव ठाकरे द्वारा सरकार कब्जियाते ही ठंडे बस्ते में चली गई हाइपरलूप योजना, लेकिन अब होगी एक ग्रांड री-एंट्री

विरासत नहीं संभाल पाए उद्धव ठाकरे

बालासाहेब ठाकरे की हमेशा से ही एक अलग पहचान थी। बालासाहेब ने अपनी विरासत को आगे ले जाने के लिए उद्धव ठाकरे का चुनाव किया था। लेकिन उद्धव ठाकरे, बालासाहेब ठाकरे की विरासत को आगे ले जाने में असफल साबित हुए। जिस हिंदुत्व का हुंकार बाबा साहेब भरा करते थे आज उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने अपना रास्ता बदलकर अपने ही पिता की विरासत की हंसी उड़वा दी। वहीं बालासाहेब ठाकरे को मानने वाले अधिकतर शिव सैनिक एकनाथ शिंदे की तरफ आ गए।

सही अर्थों में देखें तो बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना अब एकनाथ शिंदे के पाले में जा चुकी है और रही उद्धव ठाकरे की बात तो वो बस नाम के लिए बालासाहेब की विरासत संभाल रहे हैं। एकनाथ शिंदे को मिलने वाले शिवसेना चुनाव चिह्न के बाद यह अब पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है।

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