आखिरकार दिवाली पर वही हुआ, जिसकी उम्मीद थी। दिवाली पर दिल्ली में लोगों ने जमकर पटाखे चलाए। पटाखे तो प्रत्येक वर्ष लोग चलाते ही हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली सरकार ने पटाखों पर प्रतिबंध लगा रखा है। केजरीवाल सरकार का कहना है कि पटाखों से प्रदूषण होता है इसलिए इन पर बैन लगाया गया है। केजरीवाल के इस प्रतिबंध का विरोध निरंतर हो रहा था। निरंतर यह कहा जा रहा था कि हिंदुओं के त्योहारों पर जो फर्जी ज्ञान की गंगा बहती है, उसे रोका जाना चाहिए और हिंदुओं के त्योहारों पर जो रोक लगाई जाती हैं उसे बंद होना चाहिए। चलिए, आज जब दिवाली पर हिंदुओं ने पटाखे चलाकर दिल्ली सरकार को समझा दिया कि यह हिंदू विरोधी तानाशाही खुलेआम ऐसी ही नहीं चलेगी, तब हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे हिंदुओं के त्योहारों पर जब पुराने फर्जी नैरेटिव धुंधले पड़ने लगे तो अब नए नैरेटिव बनाए जा रहे हैं।
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होली
वामपंथी लॉबी वर्षों से होली पर एक नैरेटिव बनाने की कोशिश करती है कि होली पर पानी की बर्बादी नहीं होनी चाहिए। होली इसलिए नहीं मनानी चाहिए क्योंकि इससे पानी की बर्बादी होती है और पानी के सीमित संसाधनों में इसे बचाना आवश्यक है। बिल्कुल सही, पानी को बचाना चाहिए। पेयजल की मात्रा सीमित है, इसलिए इसका बचाव करना चाहिए। लेकिन यह ज्ञान सिर्फ हिंदू त्योहारों पर ही क्यों निकलकर सामने आता है? होली के अतिरिक्त क्या कहीं और पानी की बर्बादी नहीं होती? जिन बड़े-बड़े AC के कमरों में बैठकर बुद्धिजीवी ज्ञान देते हैं क्या उससे पानी की बर्बादी नहीं होती? तमाम जगहों पर, तमाम तरीकों से पानी यूं ही बर्बाद किया जाता है लेकिन बुद्धिजीवियों का पूरा ज्ञान हिंदुओं के त्योहारों पर ही निकलता है। लेकिन आपको बता दें कि पिछले कई वर्षों के निरंतर संघर्ष के बाद अब होली पर पानी का ज्ञान देने वालों की संख्या में काफी कमी आ गयी है।
करवाचौथ
अभी हाल ही में करवाचौथ का त्योहार था। इसे लेकर भी निरंतर सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। करवाचौथ पर फ़ेक फेमिनिज़्म का झंडा लेकर फर्जी नारीवादी मैदान में कूद पड़ती हैं। इसी दिन उनका तमाम तरह का ज्ञान शुरू होता है। पुरुष के लिए व्रत क्यों? यह महिलाओं का शोषण है? पुरुष व्रत क्यों नहीं रखता? ऐसे तमाम सवाल खड़े किए जाने लगते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या हिंदू महिलाओं को अपना चुनाव करने का अधिकार नहीं है? जब बुर्का की बात आती है, हिजाब की बात आती है तो यही फर्जी नारीवादी इस चुनाव करने की आज़ादी का ढोल पीटती हैं कि महिलाओं को अपना चुनाव स्वयं करने दो। लेकिन हिंदुओं के मामले में वे अपनी ही बात से पलट जाती हैं।
दिवाली
हर वर्ष दिवाली पर इनका प्रदूषण का राग शुरू हो जाता है। वर्ष भर ख़ूब पटाखे चलाए जाते हैं, तब प्रदूषण नहीं होता। शादियों में जमकर आतिशबाजी होती है, तब प्रदूषण नहीं होता। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी जब जीती तो जमकर आतिशबाजी हुई, तब प्रदूषण नहीं हुआ। लेकिन जैसे ही हिंदू अपना सबसे बड़ा त्योहार मनाने के लिए पटाखे चलाते हैं तो प्रदूषण होने लगता है। सुप्रीम कोर्ट प्रतिबंध लगा देता है। केजरीवाल सरकार प्रतिबंध लगा देती है। यानी कि वर्षभर पटाखे चल सकते हैं लेकिन दिवाली पर नहीं चल सकते? हिंदुओं ने इस बार दिवाली पर ख़ूब पटाखे चलाए हैं। इसका अर्थ यह भी समझा जा सकता है कि हिंदू अब और ज्यादा अपने धर्मों में हस्तक्षेप बर्दाश्त करने के मूड़ में नहीं हैं।
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नया नैरेटिव
दिवाली पर पटाखों को बंद करवाने का नैरेटिव जब धूर्त वामपंथियों का नहीं चला तो अब यह नया नैरेटिव लेकर सामने आ गए। अब लोगों के मन में यह बिरादरी यह डर पैदा करने की कोशिश कर रही है कि तुम लोग दिवाली पर पटाखे चलाते हो इसलिए दिल्ली गैस चेंबर बन जाती है। पीटीआई के इस ट्वीट को देखिए, इसमें पीटीआई ने लिखा है कि दिवाली की सुबह दिल्ली वाले ‘गैस चेंबर’ में उठे।
Delhiites wake up to 'very poor' air quality after many residents flouted firecracker ban on Diwali
— Press Trust of India (@PTI_News) October 25, 2022
सिर्फ पीटीआई ही नहीं बल्कि और भी बहुत से वामपंथियों ने पटाखे चलाने का मजाक उड़ाया है। वे यह कहते हुए ट्वीट कर रहे हैं कि दिल्ली वाले पटाखे चलाए थे अब यह उसका परिणाम है। बल्कि यह तथ्यात्मक तौर पर बिल्कुल भी सही नहीं है। अब आप ANI के इस ट्वीट को देखिए, 24 अक्टूबर का यह ट्वीट है, जिसमें ANI ने सूचना दी है कि 24 अक्टूबर को भी दिल्ली में AQI बहुत बुरा था यानी कि प्रदूषण ज्यादा था।
Delhi wakes up to smog covering the national capital's sky with the overall AQI (Air Quality Index) under the 'poor' category, at 276.
(Visuals from India Gate & Lodhi Road) pic.twitter.com/9ssB9ILezR
— ANI (@ANI) October 24, 2022
इससे पहले के कुछ दिनों की स्थिति अगर आपको समझनी है तो इस ट्वीट थ्रेड को देखिए। इस थ्रेड में हमें दिखता है कि दिवाली के पहले से ही पराली जलाने की ख़बरें सामने आने लगी थी। तमाम ख़बरों में हम यह देख सकते हैं कि दिल्ली-NCR में धुंध पहले से ही बढ़ने लगी थी लेकिन वामपंथी इसकी पूरी जिम्मेदारी सिर्फ पटाखों पर डालेंगे।
Meanwhile #Firecrackers is still 10 days in waiting 👍 #Diwali https://t.co/0FvL6QUg7i
— Ritu Raj (@RituRajqsc74) October 13, 2022
इसके पीछे का उनका उद्देश्य एक दम स्पष्ट है कि लोगों को यह अहसास दिलाओ कि तुमने जो पटाखे चलाए, उसकी वज़ह से प्रदूषण छाया है। दिल्ली सरकार इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर रही, उस पर सवाल मत पूछो। दिल्ली सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी है, उस पर लोग कुछ ना बोलें, इसलिए लोगों को ही जिम्मेदार ठहरा दो और इसलिए यह नया नैरेटिव बनाने की कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन आपको समझना होगा कि पटाखों की वज़ह से एकदम इतना प्रदूषण नहीं होता बल्कि दिल्ली में हर वक्त प्रदूषण रहता है। पराली जलने लगती है तो प्रदूषण बढ़ने लगता है। कोहरा के आने से बढ़ने लगता है। दिल्ली सरकार की वर्षों-वर्षों की नीति-अपंगता के कारण बढ़ने लगता है। ऐसे में आपको इन धूर्तों के एजेंडे से बचकर रहने की आवश्यकता है।
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