किसी ने सत्य कहा है, “जब तक सच अपने जूते के फीते बांधता है, झूठ पूरी दुनिया का एक चक्कर लगा चुका होता है।” परंतु यह भी एक सत्य है कि सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं। आज स्थिति यह है कि द वायर जैसे प्रोपेगेंडाधारी पोर्टल्स अपने फेक न्यूज़ के पीछे न घर के रहे, न घाट के। मेटा के हाथों दुरदुराए जाने के पश्चात अब स्थिति यह हो चुकी कि यह शीघ्र ही कोर्ट के चक्कर काट सकते हैं पर इनकी ढिठाई खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। इन्हें लगता है कि ये नैतिकता का चोला ओढ़कर संसार को उल्लू बना सकते हैं, पर बंधु, यह 2022 है। इस लेख में हम केंद्र सरकार की एक नई नीति के बारे में विस्तार से जानेंगे, जो इन फेक न्यूज मंडली को एक ही प्रहार में सर्वनाश करने के लिए पर्याप्त है।
हाल ही में ईकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह सामने आया है कि केंद्र सरकार एक या उससे अधिक केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त Grievance Appellate Committees (GACs) को IT एक्ट के संशोधित अधिनियमों के तीन माह के अंतर्गत लागू करेगी। तात्पर्य? तात्पर्य यह कि संशोधित नियमों के अनुसार सोशल मीडिया उपभोक्ताओं को अब अपने नियमों के उल्लंघन या शोषण यानी abuse of rights होने पर बार बार कोर्ट के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। यानी हर छोटी से छोटी बात के लिए इनके कोर्ट जाने पर लगाम लग जाएगा क्योंकि उनके सारे काम इसी GAC के समक्ष ही हो जाएंगे। इस बदलाव का अंतिम ड्राफ्ट शीघ्र ही सामने आने वाला है।
नए नियमों के अंतर्गत किसी भी अति संवेदनशील कंटेंट पर एक्शन लेने की समयसीमा घटाकर अब केवल 24 घंटे कर दी गई है, जिसमें संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेद 14, 19 एवं 21, जो देश के नागरिकों के मूलभूत अधिकारों एवं उनकी स्वतंत्रता से संबंधित है, उन सबके मान को ध्यान में रखते हुए किया गया है। इसके अलावा उक्त प्लेटफॉर्म्स के लिए भी ‘Due Diligence’ के नाम पर राहत दी गई यानी मोदी सरकार के नीति के अंतर्गत सबका साथ, सबका विकास।
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द वायर तो हाल ही में फंसा था!
तो नई नीति से द वायर, कारवां, एमनेस्टी इत्यादि जैसे फेक न्यूज मंडली का नुकसान कैसे होगा? द मेटा और टेक फॉग वाला कांड भूल गए? एक अज्ञात सूत्र के आधार पर ‘द वायर’ ने दावा किया था कि भाजपा नेता अमित मालवीय ने सोशल मीडिया से 705 पोस्ट्स हटवाए। हमने देखा कि कैसे ट्विटर ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हैंडल को हटाया और वहां के चुनावों को प्रभावित किया। ‘द वायर’ कुछ तकनीकी चीजों का हवाला देकर सोच रहा था कि लोग इसे सही मान लेंगे। परंतु पोल तब खुल गई थी जब ‘Meta’ के कम्युनिकेशंस हेड एंडी स्टोन ने इस पूरी खबर को बनावटी करार दे दिया।
उन्होंने कहा कि बनावटी दस्तावेजों के आधार पर ‘द वायर’ ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। हालांकि, जब ‘द वायर’ ने ठेका ले ही लिया था तो वो क्यों पीछे हटता। उसने एक अलग रिपोर्ट लिख कर दावा किया कि जिन दस्तावेजों के आधार पर उसने रिपोर्ट बनाया है वह फर्जी नहीं हैं। फिर उसने एंडी स्टोन का एक ईमेल दिखाया, जिसमें उन्होंने कथित रूप से कंपनी के आंतरिक दस्तावेजों के लीक होने पर आपत्ति जताई थी। परंतु शनै शनै द वायर अपने ही बनाए जाल में उलझता ही चला गया। Squarespace’ कंपनी के तकनीकी विशेषज्ञ ब्रेंट किमेल ने भी ‘द वायर’ को लताड़ते हुए कहा था कि उसके दावे सही नहीं है। वो एंडी स्टोन के साथ काम कर चुके हैं और उनका कहना है कि भले ही एक दशक से उन दोनों की बातचीत नहीं हुई लेकिन उन्होंने कभी पहले एंडी स्टोन को उस भाषा में बात करते नहीं देखा, जैसा ईमेल में दिख रहा है।
हालांकि, द वायर ने कंटेंट मॉडरेशन के निर्णयों के बारे में गलत रिपोर्ट प्रकाशित करने को लेकर मेटा की बहुत अधिक आलोचना की थी जिसके बाद अब द वायर ने विसंगतियों का हवाला देते हुए अपनी इस रिपोर्ट को वापस लेने का निर्णय लिया है। द वायर प्रकाशन के द्वारा रविवार को कहा गया है कि वह ‘कुछ विसंगतियों’ का हवाला देते हुए उन सभी रिपोर्टों को वापस ले रहा है। प्रकाशन ने कहा है कि संपादकीय निरीक्षण में चूक होने की समीक्षा की जा रही है ताकि सभी स्रोत-आधारित रिपोर्टिंग की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए असफल प्रोटोकॉल लागू किए जा सकें।
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द वायर ने अपने एक पोस्ट में कहा है कि “हमारी जांच, जो चल रही है, हमें अभी तक उन स्रोतों की प्रामाणिकता के बारे में एक निर्णायक दृष्टिकोण लेने की अनुमति नहीं देती है, जिनके साथ हमारी रिपोर्टिंग टीम का एक सदस्य कहता है कि वह लंबे समय से संपर्क में है।” इस पर मेटा ने कहा कि उनके लिए उनके सामग्री निर्णयों के लिए जवाबदेह होना वैध है, ‘द वायर के द्वारा लगाए गए सभी आरोप झूठे हैं’ और कहानी में प्रयोग किए गए मेटा कर्मचारी के दो ईमेल के स्क्रीनशॉट भी ‘फर्जी’ हैं। साथ ही कंपनी ने ये भी कहा था कि वह अपने सामग्री निर्णयों की जांच को स्वीकार करते हैं, लेकिन हम इन झूठे आरोपों को मूल रूप से खारिज करते हैं, जिसे हम गढ़े हुए सबूत मानते हैं। हमें इस बात की पूरी उम्मीद है कि द वायर इस धोखाधड़ी का शिकार है, अपराधी नहीं। और अभी तो हमने टेक फॉग वाले कांडों पर प्रकाश भी नहीं डाला है।
सबका हिसाब होगा
ऐसे में जब केंद्र सरकार द्वारा गठित GAC के समक्ष ऐसी शिकायतें सामने आएंगी तो स्वत: दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। परंतु द वायर अपनी हरकतों से कहां बाज आने वाला है। यही हाल कारवां, आल्ट न्यूज जैसे फेक न्यूज मंडलियों का भी है, जो आज भी झूठी खबरों, नौटंकियों के सहारे अपना जीवनयापन करते फिरते हैं। हम सभी वामपंथियों की नीयत से काफी अच्छे से अवगत हैं। वे एक पैटर्न के अनुरुप काम करते हैं कि सरेआम फेक न्यूज फैलाओ और जब पकड़े जाओ तो चुपके से माफी मांग के मामले से किनारा कर लो। हाल ही में द वायर ने ऐसा किया और यदि हम पहले के मामलों को देखें तो लोनी मामले के समय भी यही देखने को मिला था।
ALT News के कथित पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर गाजियाबाद के लोनी में ताबीज बेचने वाले अल्पसंख्यक बुजुर्ग के साथ हुई मारपीट और दाढ़ी काटने वाले कांड को न केवल सांप्रदायिक रंग दिया बल्कि धड़ल्ले से फेक न्यूज भी फैलाई। वहीं, इस मामले में यूपी पुलिस की कार्रवाई और जांच को कारण इन सभी कथित वामपंथी पत्रकारों को माफी मांगने पर मजबूर होना पड़ा। मोहम्मद जुबैर, सबा नकवी और राणा अय्यूब को भी लोनी पुलिस कोतवाली जाकर माफी मांगनी पड़ी थी और उन्होंने स्वीकार किया था कि उन्होंने बिना सत्यता के ट्वीट किए थे।
दरअसल, गाजियाबाद के लोनी में ताबीज बेचने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के एक बुजुर्ग के साथ कुछ लोगों ने मारपीट की थी और उसकी वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी। उस वीडियो के जरिए वामपंथी मीडिया समूहों ने यह दिखाने की कोशिश की कि बुजुर्ग को ‘जय श्री राम’ न बोलने के कारण मारा गया और उनकी दाढ़ी काटी गई लेकिन वामपंथियों का यह एजेंडा पूरी तरह एक्सपोज हो गया। अब सोचिए, जब ऐसे लोग नए अधिनियमों के दायरे में आएंगे, तो इनकी क्या हालत होगी? दाने दाने को तरस जाएंगे ये सब और यही होगा। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि मोदी सरकार की नई रणनीति फेक न्यूज मंडलियों का रहा सहा व्यापार समेटवाकर ही मानेगी।
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