रूस भी अब मानने लगा है PoK को भारत का अभिन्न अंग

पाकिस्तान तो बिलबिला ही जाएगा

भारत का अखंड मानचित्र

भारत का अखंड मानचित्र: सत्य कहते हैं, मित्र वही है जो मित्र के काम आए। भई एक बात तो माननी पड़ेगी कि अगर कूटनीति एक खेल होती तो ये खेल क्रिकेट से तो दस गुना अधिक रोचक होता ही, लोकप्रियता में तो यह खेल कभी भी फुटबॉल को पराजित कर देता। इसी परिप्रेक्ष्य में रूस ने एक शक्तिशाली दांव खेला है जो न केवल भारत समर्थक है अपितु अमेरिका और उसके समर्थकों को एक स्पष्ट संदेश भी देता है।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे रूस ने एक ही दांव से न केवल भारत के साथ अपनी मित्रता प्रगाढ़ की है अपितु पाश्चात्य जगत को भी एक स्पष्ट और कड़क संदेश भेजा।

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भारत का अखंड मानचित्र

रूसी मीडिया एजेंसी हाल ही में एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में रूसी मीडिया एजेंसी Sputnik ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा प्रारंभ की थी और फिर भारत का अखंड मानचित्र सामने आया –

तो इसमें महत्वपूर्ण क्या है? यहां महत्वपूर्ण है कि वर्तमान भारत का अखंड मानचित्र दिखाया गया है जहां कश्मीर के दोनों हिस्से भारत के ही हैं, उन्हें न तो विवादास्पद रूप में चित्रित किया गया है, और न ही उन्हें शत्रु देश के हवाले किया गया है। एक ओर जहां सम्पूर्ण जगत हमें एक शोषित, खंडित राष्ट्र के रूप में दिखाने को आतुर है, वहीं रूस अपनी मित्रता को कटिबद्ध रखते हुए हमारे अखंडता को अक्षुण्ण मानता है –

https://twitter.com/DhawanPrasant/status/1582436418990706693

परंतु आपको क्या प्रतीत होता है, ये केवल यहीं तक सीमित है? आपको स्मरण है उस अमेरिकी राजदूत की PoK यात्रा, जहां उस श्वेत मर्कट ने हमारे भूमि को ‘आजाद कश्मीर’ कहने का दुस्साहस किया था? किसी अमेरिकी राजनयिक की पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की यह दूसरी हाई-प्रोफाइल यात्रा थी। इस साल की शुरुआत में अमेरिकी कांग्रेस महिला इल्हान उमर ने PoK का दौरा किया था। भारत ने तब भी कड़े शब्दों में इसका विरोध किया था। परंतु पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत डोनाल्ड ब्लोम ने PoK की अपनी यात्रा के दौरान PoK का उल्लेख एजेके यानी आजाद जम्मू और कश्मीर के रूप में किया। भारत ने अमेरिकी राजनयिक की यात्रा और PoK को आजाद कश्मीर के रूप में विवादास्पद संदर्भ पर संयुक्त राज्य अमेरिका को अपनी आपत्तियों से अवगत कराया है।

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PoK भारत का हिस्सा

भारत ने 1994 में एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें कहा गया था कि PoK भारत का हिस्सा है और पाकिस्तान को अपने अवैध कब्जे को खाली करना चाहिए। कुछ महीने पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि “पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (PoK) भारतीय क्षेत्र का हिस्सा है और आगे भी रहेगा।

ऐसे में भारत ने पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत डोनाल्ड ब्लोम की पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) की यात्रा पर आपत्ति जताई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, “अमेरिकी दूत की PoK में यात्रा और बैठकों पर हमारी आपत्तियों से अमेरिकी पक्ष को अवगत करा दिया गया है”।

बागची ने आगे ये भी कहा, “भारत तथाकथित सीपीईसी में परियोजनाओं का दृढ़ता से और लगातार विरोध करता है, जो भारतीय क्षेत्र में हैं जो पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है”। आधिकारिक बयान में कहा गया है, “ऐसी गतिविधियां स्वाभाविक रूप से अवैध, नाजायज और अस्वीकार्य हैं, भारत द्वारा उनके अनुसार व्यवहार किया जाएगा” –

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रूस का वर्तमान निर्णय महत्वपूर्ण

ऐसे में रूस का वर्तमान निर्णय और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। जिस समय अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष अपनी सनक में समूचे विश्व को उनके देश के विरुद्ध आक्रमण करने के लिए उकसा रहे हैं, ऐसे में पुतिन सुनिश्चित कर रहे हैं कि अपने देश को युद्ध के प्रकोप से बचाएं, और वे भारत के निष्पक्ष प्रयासों की प्रशंसा करने से कभी पीछे नहीं हटे। नवीन PoK का ये मामला रूस और भारत की गहरी मित्रता को दर्शाता है।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (vladimir Putin) ने कुछ समय पूर्व पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमेरिका पर जोरदार हमला बोला। पुतिन ने इस दौरान भारत का भी जिक्र किया, उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों ने भारत को लूटा है और अब वो रूस के विरुद्ध साजिश कर रहे हैं। आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि रूस के पहले के नेताओं ने अमेरिका के बहकावे में आकर अपने सामरिक शक्ति को कम किया, जबकि दूसरे देश हथियारों के जखीरे वैसे ही बनाए रखे।

इतना ही नहीं, पुतिन ने कहा कि पश्चिमी देश रूस को उपनिवेश बनाना चाहते हैं। पश्चिमी देशों ने भारत जैसे देशों को लूटा है। रूस ने स्वयं को कॉलोनी नहीं बनने दिया। सोवियत संघ को फिर से बनाने के आरोपों पर पुतिन ने कहा कि रूस सोवियत संघ को फिर से बनाने का प्रयास नहीं कर रहा है। USSR अब नहीं है, हम अतीत को वापस नहीं ला सकते और रूस को अब इसकी आवश्यकता नहीं है।

वहीं भारत ने भी रूस के इस अद्वितीय सम्मान का भरपूर सत्कार किया है। कुछ ही समय पूर्व विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने पाश्चात्य जगत को धोते हुए स्मरण कराया कि रूस से उनकी निकटता विकल्प नहीं, विवशता थी, जिसके लिए पाश्चात्य जगत ही दोषी है।

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दूसरे देशों को नीचा दिखाने की नीति

पश्चिमी देशों की जो दूसरे देशों को नीचा दिखाने की नीति है उसका अंजाम आज उन्हें ही भुगतना पड़ रहा है। उन्हें लगा था कि यदि वे भारत की मदद नहीं करेंगे तो भारत कभी आर्थिक और रक्षा के क्षेत्रों में विस्तार ही नहीं कर सकेगा। इसके विपरीत भारत ने प्रत्येक मोर्चे पर अपना विराट स्वरूप अपनाया है और स्थितियां ऐसी हैं कि भारत जहां आर्थिक क्षेत्र में दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी महाशक्ति है तो वहीं रक्षा क्षेत्र में भारत के हथियार विदेशों द्वारा खरीदे जा रहे हैं। पश्चिम देशों की दिक्कत यह है कि रूस से भारत इतने हथियार क्यों खरीदता है।

ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वोंग के साथ एक संवाददाता सम्मेलन में जयशंकर ने यह भी कहा था कि भारत और रूस के बीच लंबे समय से संबंध हैं जिसने निश्चित तौर पर भारत के हितों को साधा है। पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए जयशंकर ने कहा कि हमारे पास सोवियत और रूस निर्मित हथियार काफी अधिक हैं, इसके कई कारण हैं। आपको भी हथियार प्रणालियों के नफा-नुकसान पता हैं और इसलिए भी क्योंकि कई दशकों तक पश्चिमी देशों ने भारत को हथियारों की आपूर्ति नहीं की, बल्कि हमारे सामने एक सैन्य तानाशाह को अपना पसंदीदा साझेदार बनाया।

इससे पूर्व में भी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका में अपने एक बयान में अमेरिका को ही लताड़ लगा दी थी। एस जयशंकर ने अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों की ‘मजबूती’ पर सवाल उठाए थे और कहा था कि इस्लामाबाद के साथ वॉशिंगटन के संबंध ‘अमेरिकी हितों’ की पूर्ति नहीं करते हैं। जयशंकर ने कहा था कि यह एक ऐसा रिश्ता है जिससे न पाकिस्तान को लाभ हुआ और न ही अमेरिका को कुछ फायदा पहुंचा। अहम बात यह है कि कुछ हफ्तों पहले ही अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले को पलटते हुए पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान के बेड़े के रखरखाव के लिए 45 करोड़ डॉलर की वित्तीय सहायता को मंजूरी दी है। अमेरिका के फैसले पर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अपने अमेरिकी समकक्ष लॉयड ऑस्टिन के समक्ष चिंता जाहिर की थी।

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1971 का युद्ध

अब बात भी गलत नहीं है, अगर इतिहास के पन्ने पलटे जाएं तो 1971 के युद्ध में जब भारत को अमेरिका की मदद चाहिए थी तो अमेरिका ने पाकिस्तान को मदद देना शुरू कर अपने जंगी जहाज उतारने का ऐलान किया था। वहीं इस मामले में रूस तुरंत कूदा और यह ऐलान कर दिया कि वो भी भारत की मदद के लिए अपने युद्धपोत भारतीय समुद्री क्षेत्र में भेजेगा। स्पष्ट है कि अमेरिका भारत के खिलाफ खड़ा था और रूस भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर। जाहिर है कि अमेरिका के साथ उस समय पश्चिमी देशों ने भी भारत का विरोध ही किया था।

ऐसे वक्त में भारत के लिए हथियारों की पूर्ति केवल रूस द्वारा ही होती थी। इसके चलते मिग जहाज से लेकर टैंक और युद्धपोत सभी की तकनीक में रूसी छाप है‌।‌ दूसरी ओर यदि पाकिस्तान को देखें तो उसे हमेशा भारत के विरोध में अमेरिका का साथ ही मिला है। एक अनुमान के मुताबिक साल 1948 से 2013 के बीच में अमेरिका ने पाकिस्‍तान को 30 अरब डॉलर की सहायता दी थी। इनमें से आधी सहायता पाकिस्‍तानी सेना के लिए थी। अमेरिका सोवियत संघ के खिलाफ पाकिस्‍तान को अपना घनिष्‍ठ सहयोगी मानता था। वहीं पाकिस्‍तान अमेरिका को भारत के खिलाफ काउंटर बैलेंस के रूप में देखता था। अमेरिका ने पाकिस्‍तान को पैटर्न टैंक दिए जिसका इस्‍तेमाल उसने भारत के खिलाफ 1965 के युद्ध में किया था। भारत के वीर जवानों ने इन अमेरिकी टैंकों को तबाह करके पाकिस्‍तान और अमेरिका दोनों को तगड़ी चोट दी थी।

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ऐसे में PoK समेत अनेक मोर्चों पर भारत के पक्ष में इस तरह से सीना तानकर रूस के द्वारा दांव चलना न केवल रणनीतिक है, अपितु सांस्कृतिक और कूटनीतिक रूप से भी अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे एक ही तीर से अनेक लक्ष्य भेदे जाएंगे, बस पीड़ा केवल व्हाइट हाउस को और बिलबिलाहट इस्लामाबाद को होगी।

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