वैश्विक महाशक्ति का तमगा हासिल कर दुनिया के तमाम देशों को अपने पैरों का धूल समझने वाला अमेरिका अब अपने पतन के अंतिम चरण में है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन अपने कुकर्मों से अमेरिका को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं और अब छोटे देश भी उसे भाव नहीं दे रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक मामले पर अमेरिका और चीन की लड़ाई आपने देखी होगी। ऐसा माना जाता है कि चीन ही अमेरिका को टक्कर दे सकता है लेकिन कोरोना के बाद से स्थिति ऐसी हो चली है कि चीन भी भिगी बिल्ली बना हुआ है।
हालांकि, अभी भी दोनों देशों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चली आ रही है लेकिन चीन भी समझ रहा है कि जब तक वह एशिया में मजबूत नहीं होगा, वैश्विक बिरादरी वैसे भी भाव नहीं देगी। यही कारण है कि चीन एशिया में अपने पैर पसारने की कोशिशों में लगा हुआ है लेकिन सच्चाई यह भी है कि भारत के रहते एशिया में चीन की हालत ‘पाकिस्तान’ समान ही रहने वाली है। इसके बावजूद चीन, भारत को अपना घोर विरोधी मानते हुए कई तरह के षड्यंत्र रचने का प्रयास कर रहा है।
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2027 तक ताइवान पर कब्जा करने की प्लानिंग
दरअसल, ताइवान के मामले पर भारत समेत दुनिया के कई देश चीन के विरोध में है, जबकि चीन पूरी तरह से ताइवान पर कब्जा जमाने के फिराक में है। भारत काफी पहले ही ताइवान पर अपना स्टैंड क्लीयर कर चुका है। इसी बीच अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के डायरेक्टर डेविड कोहेन ने कहा कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग चाहते हैं कि उनकी सेना 2027 तक ताइवान पर कब्जा करने में सक्षम हो जाए। यानी 2027 तक चीन पूरी तरह से ताइवान को अपने कब्जे में लेने के प्रयास में है। दूसरी ओर स्थिति यह है कि भारत पूरी तरह से ताइवान के समर्थन में है और ताइवान को एक अलग देश बताते आया है। अमेरिका भी ताइवान के समर्थन में है लेकिन चीन को अमेरिका से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, यह स्पष्ट है। क्योंकि पहले भी कई मामलों पर चीन सामने से आकर अमेरिका को हड़का चुका है लेकिन चीन को पता है कि जब भी वह ताइवान की ओर बढ़ेगा, उसे भारत से करारा जवाब मिलेगा और अपने इसी महत्वाकांक्षाओं के मध्य चीन, भारत की परेशानी बढ़ाने की जुगत में है।
ज्ञात हो कि पिछले दिनों चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र के 19 देशों के साथ बैठक की, जिसमें भारत को आमंत्रित नहीं किया गया था। जिससे यह समझ आता है कि एशिया महाद्वीप में भारत के बढ़े वर्चस्व से चीन बुरी तरह परेशान है और इधर उधर फड़फडाता फिर रहा है। वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते कद के कारण भी चीन की नींद हराम है। भारत का बढ़ता वर्चस्व उसे डराने लगा है। बता दें कि 21 नवंबर को चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में आने वाले 19 देशों के साथ एक मीटिंग की। जिसकी जानकारी चीनी विदेश मंत्रालय से जुड़ी एक एजेंसी ने दी है। इन देशों के साथ उसकी मीटिंग से यह तो स्पष्ट है कि चीन लगातार हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की फिराक में लगा है, इसलिए वह हिंद महासागर में भारत को अलग-थलग करने का प्रयत्न कर रहा है।
जमीनी और समुद्री मार्ग से घेरने की कोशिश
दूसरी ओर चीन अपने CPEC के जरिए जमीनी मार्ग से भारत को घेरने के प्रयास में है। हालांकि, ड्रैगन के मंसूबों से पूरी दुनिया परेशान है। एशियाई देश उससे पहले से ही पीड़ित हैं। अगर हम चीन की सीमा से जुड़े देशों की बात करें तो शायद ऐसा कोई भी देश नहीं है, जिससे चीन का भूमिविवाद नहीं है। अपनी ‘सलामी स्लाइसिंग’ नीति के जरिए चीन ने अपने पड़ोसियों के नाक में दम कर रखा है। इसके जरिए चीन किसी भी सीमावर्ती क्षेत्र पर अपना दावा करता है, हर रोज उसे जोर शोर से उछालता है और उस क्षेत्र को विवादित बना देता है। कुछ वर्षों तक ऐसे ही चलता रहता है और बाद में चीन, उस पूरे क्षेत्र को ही अपना बता देता है। ताइवान वाले मामले में भी कुछ ऐसा ही है।
आपको बताते चलें कि ताइवान के मुद्दे पर भारत कई बार चीन को लताड़ चुका है। वैश्विक मंच पर भी चीन की क्लास लगाई जा चुकी है लेकिन अपने मद में चूर चीन किसी को सुनता कहां है। ‘कुंठित’ जिनपिंग 2027 तक ताइवान को चीन में देखना चाहते हैं और उन्हें पता है कि अगर चीन की ओर से ताइवान के विरुद्ध में कोई कदम उठाया जाएगा, तो भारत समेत पूरा विश्व उस पर टूट पड़ेगा। लेकिन चीन को केवल भारत से ही डर लग रहा है। इसी कारण वह भारत को जमीन और समुद्री मार्ग, दोनों ओर से घेरने का प्रयास कर रहा है ताकि समय आने पर वह भारत पर दबाव बना सके। हालांकि, चीन का यह डर अच्छा भी है क्योंकि यह तो पूरा विश्व जानता है कि भविष्य भारत का ही है और इसके संकेत अभी से ही दिखने लगे हैं। आज भारत का स्टैंड, विश्व के कई देशों का स्टैंड तय करता है। भारत के समक्ष दुनिया के देश गुहार लगाते हैं और ऐसे में अगर जिनपिंग, भारत को धमकाने और भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करेंगे तो परिणाम ‘मलक्का खाड़ी’ में तय होगा।
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