सच्ची रामायण- 6: क्या सच में लक्ष्मण जी ने ली थी रावण से दीक्षा ?

वाल्मीकि रामायण में यह कहीं भी वर्णित नहीं है कि युद्ध के बाद लक्ष्मण जी ने रावण से दीक्षा ली थी लेकिन हमें वर्षों से यही बताया जा रहा है. यहां पढ़िए पूरी सच्चाई.

Sachchi Ramayan

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Sachchi Ramayan part 6: ऐसा कहा जाता है कि रावण परम ज्ञानी था। वह बहुत बड़ा शिवभक्त था। उसने कई सिद्धियां प्राप्त कर ली थी। ये सारी बातें हमें काफी पहले से ही बताई जाती रही है। काफी पहले से ही रावण का गुणगान होता आ रहा है, हमारे मस्तिस्क में यह ठूसने का प्रयास किया जाता रहा है कि रावण मरकर भी श्रीराम से श्रेष्ठ निकला। बताया तो यह भी गया है कि ‘परमज्ञानी’ रावण ने लक्ष्मण को ज्ञान तक दिया लेकिन सवाल यह उठता है इन सारी बातों के प्रमाण कहां है? इसके लिखित साक्ष्य कहां हैं? इस लेख (Sachchi Ramayan part 6) में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे लक्ष्मण जी ने कभी भी रावण से कोई दीक्षा नहीं ली थी और वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में कहीं भी इसका वर्णन नहीं है।

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Sachchi Ramayan – अभी तक हमें ये बताया जाता रहा है

दरअसल, हमें बताया जाता रहा है कि मृत्यु से पूर्व रावण ने लक्ष्मण को दीक्षा दी थी और ऐसा करने के लिए श्रीराम ने लक्ष्मण को आदेश दिया था क्योंकि उनके अनुसार रावण परमज्ञानी था और उसका ज्ञान प्राप्त करना किसी रत्न से कम नहीं था। जी हाँ, ऐसी गल्प कथाओं से हम सभी को कभी न कभी भ्रमित किया गया है। हमें यह बताया जाता रहा है कि भगवान श्रीराम ने रावण के नाभि में बाण मारा तो रावण तड़पते हुए रथ से जमीन पर गिर पड़ा, उसके गिरते ही राक्षस सेना में हाहाकार मच गया और उन्होंने अपने अंतिम सेनापति व राजा के परास्त होते ही मैदान छोड़ दिया।

अब युद्ध समाप्त हो चुका था और श्रीराम सहित सब लोग रावण को मरणासन्न अवस्था में देखने पहुंचे। अचेत पड़े अंतिम सांसें गिन रहे रावण की ओर ईशारा करते हुए श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा, ‘लक्ष्मण! रावण जैसे विद्वान इस धरती पर बहुत कम हैं, जाओ उससे शिक्षा ले लो।’ बड़े भाई की आज्ञा पाकर न चाहते हुए भी लक्ष्मण जाकर रावण के सिर के पास खड़े होकर शिक्षा देने को कहा। रावण ने लक्ष्मण की ओर देखा भी नहीं।

कुछ देर इंताजार और अपने को अपमानित महसूस करने के बाद लक्ष्मण श्रीराम के पास पहुंचे और बोले, ‘भइया! मरणासन्न पड़ा है लेकिन इसका अहंकार…’, इससे पहले लक्ष्मण अपनी बात पूरी कर पाते श्रीराम ने बीच में टोका, ‘लक्ष्मण मेरे भाई! अहंकार रावण में नहीं तुममे है, विजयी होने का। रावण युद्ध हार चुका है, अब वह हमारा शत्रु नहीं है। तुम उससे कुछ लेने गए थे तो उसके पैरों के पास याचक की मुद्रा में खड़े होते लेकिन तुम तो सिर के पास आदेश वाली मुद्रा में खड़े थे। शिक्षा पाने के लिए अधिकार नहीं विनम्रता की जरूरत होती है।’ लक्ष्मण बात समझ गए वे तुरंत वहां से जाकर रावण के पैरों के पास खड़े होकर शिक्षा देने के लिए अनुरोध किया।

Sachchi Ramayan part 6: ये रही इसकी सच्चाई

अभी तक हमें यही बताया गया है परंतु क्या ये वास्तव में सत्य है? चलिए वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड की ओर चलते हैं।

स तु निहररिपुह् स्थिरप्रतिज्ञः ।
स्वजनबलाभिवृतो रणे रराज ।।
रघुकुलनृपनन्दनो महुजा ।
स्त्रिदशगणैरभिसंवृतो यथेन्द्रः ।। ६-१०८-३४

युद्ध कांड के इस श्लोक के अनुसार वचनबद्ध, मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम रावण का वध कर तेजोमय हो चुके थे और उनके इस कार्य का प्रकाश चारों ओर विद्यमान हो रहा था। इसके अतिरिक्त जितने भी श्लोक हैं, उनमें विभीषण शोक संतप्त थे और श्रीराम एक शोकाकुल विभीषण को एक सज्जन पुरुष की भांति सांत्वना दे रहे थे आदि वर्णित है। उदाहरण के लिए आप इस श्लोक को देख लीजिए –

वदन्तं हेतुमद्वाक्यं परिदृष्टर्थनिश्चयम् ।
रामः शोकसमाविष्टमित्युवाच विभीषणम् ।।

यहाँ पर यानी वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में कहीं भी उल्लेख नहीं हुआ है कि रावण ने लक्ष्मण को मृत्यु से पूर्व दीक्षा दी थी या कोई अन्य पाठ पढ़ाया? यहां तक कि कहीं यह भी नहीं बताया गया है कि रावण ज्ञानी था। ये सब कपोल कल्पना है, जिसका कोई साक्ष्य नहीं है। विश्वास नहीं होता तो आप रामचरितमानस में इसका प्रमाण निकाल के दिखा दीजिए। जी हां, आप विश्वास नहीं मानेंगे परंतु स्वयं तुलसीदास जैसे रचयिता ने भी अपने रामायण में ऐसा कुछ नहीं लिखा है। रामचरितमानस में भी कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं है कि रावण ने कभी मृत्यु से पूर्व लक्ष्मण को जीवन से जुड़े कोई महत्वपूर्ण उपदेश दिए।

तो सवाल यह है कि आखिर ये बकवास उत्पन्न कहां से हुई? कोई कहता है कि ये वामपंथियों की उपज है, कोई कहता है कि ये तमिल साहित्यकारों द्वारा रचित रामायण की उपज है। अब इस बात में कितनी सच्चाई है, ये तो ईश्वर ही जाने। आशा करते है यह लेख आपको पसंद आया होगा अब हम आपसे सच्ची रामायण के भाग 7 में (Sachchi Ramayana part 7) में मिलेंगे।

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