6 दिसम्बर 1992, एक ऐसा दिन जिसने भारतीय राजनीति को पूरी तरह से बदलकर रख दिया। असल में इस दिन एक ऐसी घटना हुई जिसे बाबरी विध्वंस के नाम से जाना जाता है और जिसके बाद न केवल उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया बल्कि पूरे देश की राजनीतिक हवा ही बदल गई।
इस लेख में जानेंगे कि बाबरी विध्वंस की घटना से भारतीय राजनीति में किस प्रकार का परविर्तन हुआ।
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मध्ययुगीन भारतीय इतिहास
दरअसल, बाबरी मस्जिद की घटना को समझने के लिए मध्ययुगीन भारतीय इतिहास में जाने की आवश्यकता है। जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि मध्यकालीन भारत में मुस्लिम शासकों ने इस्लाम का विस्तार करने के लिए हिंदू पूजा स्थलों पर कई आक्रमण किए थे। उसी प्रकार बाबरी मस्जिद के बारे में भी हिंदू पक्ष के लोग दावा करते हैं कि अयोध्या में जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद बनाई गई वो भगवान राम की जन्मभूमि है और यहां पर भगवान राम का मंदिर था जिसे तोड़कर 1528 में मुगल शासक बाबर के शासन काल में मंदिर के ऊपर मस्जिद बना दी गई।
जबकि मुस्लिम पक्ष के लोग दावा करते हैं किसी भी मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई थी। परन्तु साल 1885 में इस मामले को पहली बार कोर्ट में ले जाया गया जिसके बाद यह कहानी इतनी लंबी होती चली गई कि इस मामले पर जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2019 में अंतिम फैसला सुनाया गया जो कि लगभग 900 पेज से अधिक का था और जिस पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है।
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फिर से तूल पकड़ने लगा था मामला
इसीलिए हम आपको लेकर चलते हैं 1990 के दशक के भारत में जहां राम जन्मभूमि का मामला एक बार फिर से तूल पकड़ने लगता है और यह सिर्फ अदालत तक ही सीमित न होकर आम लोगों की भावनाओं का मुद्दा बन जाता है। दरअसल, 1990 के दशक में विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और दूसरे हिंदू संगठनों ने राम जन्मभूमि के आंदोलन को गति देना चालू कर दिया और इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ता बने लालकृष्ण आडवाणी। असल में इन्होंने सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक एक रथ यात्रा निकाली थी। जिसका उद्देश्य अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनवाना था और यह रथ यात्रा जब अयोध्या पहुंची तो धीरे-धीरे लालकृष्ण आडवाणी के समर्थन में लोग एकत्रित होने लगे। उस समय उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री हुआ करते थे।
अयोध्या के सांप्रदायिक माहौल को देखते हुए सरकार द्वारा बाबरी मस्जिद के चारों ओर कार सेवकों की भीड़ को देखते हुए पुलिस का घेरा लगा दिया गया। बताया जाता है कि उस समय वहां पर लगभग 1 लाख लोग एकत्रित हुए थे जिसे देखते हुए पुलिस की तादात काफी कम थी। 6 दिसम्बर 1992 को धीरे-धीरे भीड़ बेकाबू होती चली गई और अंत में कुछ लोगों ने ढांचे के ऊपर चढ़कर उसे गिरा दिया।
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राजनीति पर प्रभाव
6 दिसम्बर 1992 को ढांचे के गिरने के बाद भारतीय राजनीति में बहुत बड़े बदलाव हुए जैसे उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह का इस्तीफा ले लिया गया और एक साल तक वहां राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। जब 1997 में चुनाव हुए तो मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री चुन लिए गए। परन्तु यहां पर एक बात गौर करने करने वाली है कि उसके कुछ समय बाद मंडल कमीशन यानी ओबीसी आरक्षण की राजनीति करने वाली पार्टियां धीरे-धीरे कमजोर होती चली गईं और भाजपा एक नये दल के रूप में उभरकर सामने आने लगी। जिसका उदाहरण आज हमें भारतीय राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से देखने के लिए मिलता है।
हालांकि इस मुद्दे पर 9 नवबंर 2019 को फैसला सुनाकर दोनों पक्षों को अपने-अपने धार्मिक स्थल बनाने के लिए जमीन दे गई है और राम जन्मभूमि का निर्माण कार्य भी चालू हो गया जोकि उत्तरप्रदेश सरकार के अनुसार तेज गति से चल रहा है और आने वाले समय में जल्द ही पूरा हो जाएगा।
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