Gupta Samrajya: भारतीय इतिहास रोचक कथाओं, महान कलाओं और कई शक्तिशाली साम्राज्यों के द्वारा किए गए विकास कार्यों और उनके शौर्य गाथाओं से भरा हुआ है। परन्तु ऐतिहासिक जटिलताओं और लोगों की रुचि कम होने के कारण अधिकतर लोगों को इतिहास के नाम पर मध्यकालीन भारत में हुए कार्यों के बारे में ही पता है। ऐसे में आज हम भारत के एक ऐसे साम्राज्य के बारे में बात करने जा रहे हैं जो न केवल भारत के विकास की दृष्टि से स्वर्णिम था बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी बहुत हद तक समृद्ध था। भारतीय इतिहास में इस साम्राज्य (Gupta Samrajya) को “स्वर्ण युग” कहा जाता है।
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गुप्त साम्राज्य (Gupta Samrajya) का प्रारंभ
दरअसल हम बात कर रहे हैं “गुप्त काल” की। भारतीय इतिहास में गुप्त काल (Gupta Samrajya) को स्वर्ण युग माना जाता है। इसे भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार, धार्मिक सहिष्णुता, आर्थिक समृद्धि तथा शासन व्यवस्था की स्थापना काल के रूप में जाना जाता है। कला से लेकर संस्कृति तक और कृषि से लेकर अर्थशास्त्र तक सभी उपलब्ध तथ्यों के आधार पर इतिहासकारों का कहना है कि प्राचीन भारत में यह एक ऐसा साम्राज्य था जिसमें प्रत्येक क्षेत्र में व्यवस्थित रूप से विकास किया गया।
गुप्त राजवंश या गुप्त साम्राज्य (Gupta Samrajya) प्रचीन भारत का एक ऐसा हिंदू साम्राज्य था जिसने लगभग संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया और शासनकाल के दौरान किए गए विकास कार्यों के कारण इसे भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा गया। दरअसल, मौर्य उत्तर काल के उपरान्त भारत में तीसरी शताब्दी ईस्वी में प्रमुख रूप से तीन वंश उभरकर सामने आए जिसमें मध्य भारत में नाग शक्ति, दक्षिण में वाकाटक और पूर्व यानी मगध में गुप्त वंश थे और इन तीनों वशों में सबसे शक्तिशाली रहा गुप्त वंश। मौर्य वंश के बाद भारत में छिन्न-भिन्न हुई राजनीतिक सत्ता को एक करने का काम गुप्त वंश ने ही किया। इसने पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक सभी स्थानों पर अपनी सीमाओं का विस्तार किया और 240 ई. से 550ई. तक राज किया।
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गुप्त वंश के संस्थापक और विस्तारकर्ता
गुप्त वंश की स्थापना 240ईस्वी में संस्थापक श्रीगुप्त द्वारा की गई और इन्होंने 40 वर्षों तक शासन कर अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। इनके बाद इनके पुत्र घटोत्कच ने 250ई. से 320 ई. तक गद्दी संभाली। परन्तु अभी तक गुप्त वंश उत्तर प्रदेश और बिहार से बाहर न निकलकर वहीं पर राज्य कर रहा था। लेकिन घटोत्कच के बाद गुप्तवंश में एक ऐसे शासक का उदय हुआ जिसे गुप्त वंश का पहला महान शासक और विस्तारकर्ता कहा जाता है। इसका नाम था चन्द्रगुप्त प्रथम इसने 319ईस्वी से 334 ईस्वी तक शासन किया।
बताया जाता है कि चन्द्रगुप्त प्रथम को महाराजाधिराज की उपाधि दी गई थी। चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने शासनकाल के दौरान आधुनिक बिहार और उत्तर प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। शासन के अन्तिम चरण में उसने संन्यास ले लिया और अपने बेटे समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत कर दिया। समुद्रगुप्त ने 335–380 ई तक शासन किया और इन्होंने अपने शासनकाल में चार चरणों में राज्य का विस्तार किया, जिसमें पहले चरण में आर्यावर्त या उत्तरी भारत के गणपति नाग (मथुरा का शासक), अच्युतदेव (अहिच्छत्र का शासक), नागदत्त (विदिशा का शासक) जैसे अन्य 9 राजाओं को परास्त कर इन राज्यों को अपने राज्य का अंग बना लिया। इसी प्रकार अन्य तीन चरणों में समुद्रगुप्त ने अपनी सीमाओं का विस्तार दक्षिण के राज्यों तक कर दिया।
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गुप्त वंश का समाप्त होना
समुद्रगुप्त के बाद चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शासन की बगडोर को 380-415 ई. तक संभाला इन्हें हम विक्रमादित्य के नाम से भी जानते हैं। चीनी यात्री फायान जब भारत आया था तो उसने इनके साम्राज्य (Gupta Samrajya) की भव्यता को देखते हुए इनके शासनकाल को स्वर्णयुग कहा था। इन्होंने न केवल अपनी राज्य की सीमाओं का विस्तार किया बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी विकास किया।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के बाद कुमारगुप्त प्रथम ने 415-454 ई. तक शासन किया। पुष्यमित्र सुंग के साथ इसका एक चर्चित युद्ध भी हुआ था जिसके बाद दक्षिण में इस साम्राज्य ने अपने पैर जमा लिए थे। साथ ही कुमारगुप्त प्रथम ने नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण भी करवाया था। कुमारगुप्त प्रथम के बाद गुप्त वंश में स्कन्दगुप्त ही एक शक्तिशाली शासक थे और जितने भी शासक हुए वो एक प्रकार से कमजोर शासक थे जिस कारण धीरे-धीरे माधवगुप्त के शासनकाल तक आकर 550 ईस्वी तक गुप्त वंश समाप्त हो गया।
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गुप्त काल को स्वर्ण युग कहा जाता था
गुप्त वंश जिस स्थान पर फला-फूला वह एक ऐसा स्थान था जहां कृषि करने के लिए उपजाऊ भूमि बहुत अधिक मात्रा में थी और उस समय राज्य की अर्थव्यवस्थाएं कृषि आधारित हुआ करती थीं इसलिए जितनी उपजाऊ भूमि उतना अच्छा विकास। एक तो यह कारण था दूसरा इस काल में शासन व्यवस्था को एक व्यवस्थित रूप दिया गया और शिक्षा को बढ़ावा देने लिए नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों का निर्माण भी किया गया।
मंदिरों की वास्तुकला की ओर ध्यान दिया जाए तो वर्तमान समय में इसके कई उदाहरण हैं। गुप्तकालीन मंदिरों को ऊंचे चबूतरों पर बनाया जाता था जिनमें ईंट तथा पत्थर जैसी स्थायी सामग्रियों का प्रयोग किया जाता था। ईंट एवं पत्थर जैसी स्थायी सामग्रियों पर मंदिरों का निर्माण इसी काल की घटना है। वर्तमान समय में इस काल के प्रमुख मंदिर हैं- तिगवा का विष्णु मंदिर (जबलपुर, मध्य प्रदेश), भूमरा का शिव मंदिर (नागोद, मध्य प्रदेश), नचना कुठार का पार्वती मंदिर (मध्य प्रदेश), देवगढ़ का दशवतार मंदिर (झाँसी, उत्तर प्रदेश) तथा ईंटों से निर्मित भीतरगाँव का लक्ष्मण मंदिर (कानपुर, उत्तर प्रदेश) आदि।
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यदि गुप्त काल के बारे में संक्षेप में कहा जाए तो यह एक ऐसा काल था जिसके अंतर्गत मानव की मूलभूत आवश्यकताओं से लेकर राज्य की विस्तारवादी नीतियों तक सभी में विकास किया गया था।
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