किसी ने सही ही कहा है कि जहां “योग्यता” का सम्मान न हो, वहां योग्य व्यक्ति का कोई स्थान नहीं है”। ये बात अजित कुमार से बेहतर कोई नहीं जानता था, और उन्होंने पुनः उस उद्योग के साथ काम करने का खतरा मोल नहीं लिया जो आज के समय में उपहास का पात्र बना हुआ है और जिसके कारण उन्हें स्वयं भी उपहास का पात्र बनना पड़ा था। अगर आप सोच रहे हैं कि- कौन अजित कुमार, तो जाकर तमिल फिल्म उद्योग में किसी से भी “थाला अजित” के बारे में पूछ लीजिए, उत्तर स्वयं ही मिल जाएगा।
कैसे बॉलीवुड ने अजित कुमार की योग्यता को कहीं का नहीं छोड़ा, जिसके कारण इन्होंने पुनः इस उद्योग की ओर मुड़कर भी नहीं देखा।
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बहुभाषीय सिनेमा के सुपरस्टार
बॉलीवुड और बहुभाषीय सिनेमा के सुपरस्टारों में एक अद्भुत नाता रहा है। चाहे रजनीकान्त हों, कमल हासन हों, दुलकर सलमान हों, डी वेंकटेश हों, आर माधवन हों, सबने बॉलीवुड में अपने लिए यश और कीर्ति खूब कमाई है और अभी तो हमने श्रीदेवी की चर्चा भी नहीं की है। अब ऐसे में अजित महोदय ने सोचा, क्यों न बहती गंगा में हम भी हाथ धो लें?
बंधुवर उस समय तमिल सिनेमा के सबसे प्रसिद्ध स्टार्स में से एक थे, जो तेलुगु सिनेमा में भी सफल प्रयोग करने में सक्षम थे। बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि श्रीदेवी और ऋतिक रोशन की भांति अजित कुमार ने बालपन में ही फिल्म इंडस्ट्री से नाता जोड़ लिया था। ऐसे में बॉलीवुड में इनका कदम रखना स्वाभाविक था, और इन्होंने चुना भी सीधा ‘अशोका– द ग्रेट’ को।
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प्रतिभावान अजित कुमार
2000 के प्रारंभ में बन रहे इस ऐतिहासिक फिल्म का निर्देशन कर रहे थे संतोष सिवन, जिसमें प्रमुख भूमिका में थे कोई और नहीं अपने शाहरुख खान, जो उस समय अपने करियर के शिखर पर थे, और अपनी रोमांटिक छवि से बाहर निकलना चाहते थे। ऐसे में उन्हें मिला यह प्रोजेक्ट जहां उनके समक्ष थे अजित कुमार, जो सम्राट अशोक के विद्रोही भ्राता सुषेम की भूमिका निभा रहे थे। भले ही ये भूमिका नकारात्मक थी परंतु उस भूमिका में भी अजित ने अपनी ओर से दर्शकों को प्रभावित करने का भरपूर प्रयास किया, और स्वयं शाहरुख भी उनके प्रोफेशनल एटीट्यूड की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके।
शाहरुख के अनुसार, “मुझे कोई आइडिया नहीं था कि मेरे स्टार साउथ में इतने बड़े हैं, और न ही सेट पर उन्होंने कभी भी इसे जताने का प्रयास किया। मजे की बात यह है कि अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘डॉन’ पर हम दोनों के अलग-अलग विचार थे”। ये विचार बाद में जाकर दो अलग-अलग रीमेक में भी परिवर्तित हुए।
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कथनी और करनी में अंतर
परंतु कथनी और करनी में अंतर होता है। शाहरुख के ये बोल साक्षात्कार में भले दिखाई दिए हो, परंतु भावना में नहीं, और फिल्म में अजित कुमार का कद उनके किरदार से कहीं कम किया गया, मानो वे फिल्म में थे ही नहीं।
इसके अतिरिक्त यह फिल्म उसी दिन प्रदर्शित हुई, जिस दिन बहुचर्चित सनी देओल की ‘इंडियन’ हुई, जो अभी-अभी ‘गदर’ जैसे सुपर ब्लॉकबस्टर की सफलता से ओतप्रोत होकर आए थे। परिणाम यह रहा कि ‘अशोका’ बुरी तरह फ्लॉप रही, और अपने अपमान से आहत अजित कुमार ने पुनः बॉलीवुड के साथ कार्य नहीं करने का निर्णय लिया। आज उनके फिल्मों के डब संस्करणों से ही हिंदीभाषी दर्शकों को संतोष करना पड़ता है, क्योंकि एक घमंडी निर्देशक और एक दंभी अभिनेता की छीछालेदर ने हमें एक और योग्य अभिनेता से परिचित कराने से वंचित कर दिया।
https://www.youtube.com/watch?v=nmZcNdkne3s
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