इस बार भारत ने तुर्की का टेंटुआ दबाने का दांव खेल दिया है

आर्मेनिया के साथ भारत जिन रक्षा संबंधी समझौतों पर आगे बढ़ रहा है, इसके बाद अब तुर्की को दिन में तारे दिखने स्वाभाविक है।

India is going after Turkey’s jugular

Source-TFI

आज के समय में भारत हर तरह से मजबूत बन रहा है, फिर चाहे बात अर्थव्यवस्था की हो या फिर विदेश नीति की। वर्तमान समय में विकास के क्रम में भारत ने जो स्थान प्राप्त किया है उससे वैश्विक स्तर पर देश की धाक बढ़ती जा रही है। बस यही देखकर समय-समय पर कुछ देशों को मिर्ची लगती हैं। इस बीच हाल ही में भारत ने एक ऐसा कदम उठाया है, जिससे भारत विरोधी देश बौरा सकते हैं। दरअसल, भारत तुर्की को अक्ल ठिकाने लगाने के लिए आर्मेनिया की सेना को ताकतवर बना रहा है। ऐसा कर भारत एक तीर से कई निशाने मारने की कोशिश कर रहा है। एक तो आर्मेनिया को तुर्की, पाकिस्तान और अजरबैजान की तिगड़ी से बचाने में सहायता करेगा और साथ ही तुर्की को सबक भी सीखा देगा। इस लेख में हम जानेंगे कि भारत ऐसा कौन सा कदम उठाने की तैयारी में हैं और इसके पीछे भारत की रणनीति क्या है?

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आर्मेनिया की सेना को ताकरवर बनाएगा भारत

दरअसल, चर्चाएं ऐसी चल रही है कि भारत आर्मेनिया के 30 सुखोई फाइटर जेट को अपग्रेड कर सकता है। साथ ही साथ उसके फ़ाइटर पायलटों को ट्रेनिंग भी दे सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आर्मेनिया भारत से हथियार खरीदना चाहता है और अपने सुखोई 30 विमानों को अपग्रेड कराना चाहता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आर्मेनिया अपने Su-30SM बेड़े की मारक क्षमता बढ़ाने के लिए ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों और एस्ट्रा बियॉन्ड-विजुअल-रेंज एयर-टू-एयर मिसाइलों (BRAAM) के एयर-लॉन्च संस्करण को खरीद सकता है।

वर्तमान समय में लगभग 12 देश सुखोई फाइटर जेट्स का संचालन करते हैं, लेकिन चौथी पीढ़ी के फाइटर जेट्स को संचालित करने में भारतीय वायुसेना के पास तकनीकी श्रेष्ठता मौजूद है। भारत के पास लगभग 272 Su-30MKI हैं, जिनमें से अधिकतर जेट भारत में ही निर्मित हुए हैं। भारत के पास सुखोई उड़ाने और बनाने दोनों का अच्छा खासा अनुभव है इसलिए आर्मेनिया ने भारत से अपने विमानों को अपग्रेड कराने में दिलचस्पी दिखाई है। इसके अलावा, आर्मेनिया ने रूसी निर्मित Su-30SM को खरीदा है। अब वो भारत की मदद से इसमें सुधार करना चाहता है, जो आर्मेनिया के लिए काफी आवश्यक भी हैं।

भारतीय लड़ाकू पायलट और घातक मिसाइलों के संभावित निर्यात की खबरों ने अजरबैजान और उसके सहयोगियों में बौखलाहट भर दी है। यही कारण है कि एक साक्षात्कार में अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने कहा कि भारत द्वारा अर्मेनिया को हथियारों की आपूर्ति ‘एक अमित्र कदम’ है। उन्होंने आगे दावा किया कि युद्ध के मामले में भारतीय हथियार आर्मेनिया को नहीं बचाएंगें।

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर आर्मेनिया की सहायता कर भारत तुर्की को कैसे सबक सिखाएगा? इसके पीछे भारत की रणनीति क्या है? तो आइए इस पर भी चर्चा करते हैं। दरअसल, इसके माध्यम से भारत ने रक्षा निर्यात के अलावा अजरबैजान, तुर्की और पाकिस्तान के इस्लामिक गठजोड़ को भी साफ संदेश दे सकता है। आर्मेनिया और अजरबैजान ये दो देश आजादी के बाद से ही एक दूसरे कट्टर दुश्मन हैं। आर्मीनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। तब ही सीमा विवाद के कारण दोनों देशों में दुश्मनी पैदा हो गई थी। इस विवाद में तुर्की, अजबैजान का साथ देता आया है।

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भारत विरोधी तुर्की को छोड़ा नहीं जाएगा

अब तुर्की की हरकतों के बारे में तो आप जानते ही होंगे कि कैसे वो भारत के मुद्दों में घुसते हुए कई मौकों पर पाकिस्तान का साथ देता आया है। ऐसे कई मौके आये हैं, जब तुर्की पाकिस्तान के समर्थन में रहते हुए कई बार भारत विरोधी बयान देता रहता है। कश्मीर के मुद्दे में तुर्की पाकिस्तान के साथ खड़ा नजर आता है। केवल इतना ही नहीं अनुच्छेद 370 निरस्त करने को लेकर रजब तैयब एर्दोआन ने पाकिस्तान में संसद को संबोधित करते हुए कहा था, “तुर्की की आजादी की लड़ाई के समय पाकिस्तान के लोगों ने अपनी हिस्से की रोटी भी हमें दे दी थी। पाकिस्तान की इस सहायता को हम नहीं भूल सकते। हमारे देश के लिए जैसे कनक्कल (तुर्की का सुमद्र तटीय भाग) महत्वपूर्ण था, वैसे ही आज कश्मीर हमारे लिए बहुत मायने रखता है। दोनों में कोई भी फर्क नहीं है।” इससे स्पष्ट हो जाता है कि तुर्की का रवैया कैसे भारत विरोधी रहा है।

देखा जाये तो भारत के आर्मेनिया के साथ अच्छे संबंध हैं। भारत ने मध्य एशियाई देश आर्मेनिया के साथ स्वदेश निर्मित पिनाका मिसाइल और अन्य रक्षा उपकरणों की आपूर्ति का भी सौदा किया था। इस सौदे के पीछे भारत के हथियार उद्योग को तो बढ़ावा मिला ही साथ ही भारत ने तुर्की को भी आड़े लिया था। भारत का आर्मेनिया के Su-30 को अपग्रेड और लड़ाकू पायलटों को प्रशिक्षित करने के पीछे सबसे बड़ा कारण तुर्की की सबक सिखाना है। भारत पहले भी पाकिस्तान और उसके सहयोगियों को सबक सिखा चुका है कि भारत के मुद्दों से जरा दूरी बनाये रखे लेकिन बार बार संदेश देने के बाद भी ये कश्मीर और अनुच्छेद-370 जैसे विभिन्न मुद्दों पर अपनी बयानबाजी से पीछे नहीं हटते है।

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साइप्रस के साथ भी किया था सौदा

भारत तुर्की को एक तरह से चक्रव्यूह में घेरने की कोशिश कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने आर्मेनिया के साथ ही ग्रीस, साइप्रस, मिस्र और सीरिया के साथ रणनीतिक और साथ ही रक्षा संबंधों को मजबूत बना रहा है। कुछ समय पूर्व ही भारत और साइप्रस ने ने रक्षा और सैन्य सहयोग सहित विभिन्‍न क्षेत्रों में कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए जोकि दोनों देशों के रिश्तों को और मजबूत करेगा। साइप्रेस वो देश है जिनका नाम लेते ही तुर्की को मिर्ची लगने लगती है। वैसे तो पाकिस्तान के करीबी तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन बार-बार संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मुद्दे को बिना वजह ही उठाते आए हैं, लेकिन जब भी बात साइप्रस मुद्दे की आती है तो वह चुप्पी साध लेते हैं। ऐसा इसलिए साइप्रस, तुर्की के कट्टर दुश्मनों में से एक है। साइप्रस के विदेश मंत्रालय के अनुसार तुर्की ने अंतरराष्ट्रीय कानून के नियमों का उल्लंघन करते हुए 1974 में साइप्रस पर आक्रमण किया था। दावा है कि आक्रमण के दौरान तुर्की ने फामागुस्ता शहर को अपने कब्जे में ले लिया था और तब से उसने साइप्रस के उत्तरी इलाकों में अवैध रूप से कब्जा कर रखा है। ऐसे में भारत उसी साइप्रस के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने में जुटा है, जिसका नाम लेते ही तुर्की घबरा जाता है। ऐसे में तुर्की की दुखती रग हाथ रखने जैसा हो गया है।

ऐसे में यह भारत तुर्की को किसी भी कीमत में छोड़ने वाला नहीं है। साइप्रस के साथ मिलकर तुर्की को घेरने की रणनीति पर काम करना तो केवल एक ट्रेलर था। अब भारत उससे एक कदम आगे का सोच रहा है। आर्मेनिया के साथ जिन रक्षा संबंधों समझौतों पर भारत आगे बढ़ रहा हैं, उससे तुर्की को तकलीफ अवश्य होगी।

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