विराट कोहली, अनुष्का शर्मा और उनकी बेटी की एक फोटो अभी कुछ दिनों पहले ही वायरल हुई थी और चर्चा का विषय थीं। विराट कोहली और उनका परिवार जिस जगह पहुंचा था वो कोई और नहीं बल्कि 20वीं सदी के महान संतों में से एक माने जाने वाले नीम करोली बाबा का आश्रम है। आखिर कौन हैं ये बाबा जिनसे प्रभावित होकर भारतीय स्टार क्रिकेटर विराट कोहली और उनकी पत्नी अनुष्का शर्मा इनके आश्रम जा पहुंची? कहां है इन बाबा का आश्रम? क्या विराट और अनुष्का से पहले भी बड़े और मशहूर लोग इन बाबा से प्रभावित होकर उनके आश्रम में जा चुके हैं? आपको आपके सभी प्रश्नों के उत्तर इस लेख में मिलेंगे।
सुंदर वादियों में बसा एक छोटा सा आश्रम
उत्तराखंड में हिमालय की सुंदर वादियों में बसा एक छोटा सा आश्रम है नीम करोली बाबा आश्रम जो उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल नैनीताल जिले में है। नैनीताल-अल्मोड़ा के रास्ते पर स्थित यह आश्रम भक्तों के बीच कैंची धाम के नाम से लोकप्रिय है। इस स्थान को कैची धाम इसीलिए कहा जाता है क्योंकि यहां दो कैची की तरह के तीव्र मोड़ हैं और यहीं बाबा नीम करोली का मंदिर है जिसके कारण इसे कैंची धाम या फिर कैंची मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह आश्रम नीम करोली महाराज बाबा के समर्पण में बनाया गया है।
नैनीताल, भुवाली से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कैंची धाम आश्रम की स्थापना बाबा ने 15 जून को साल 1964 में की थी। बाबा ने पहली बार अपने एक मित्र पूर्णानंद के साथ इस आश्रम को बनाने का विचार किया था। यहां पर हर साल 15 जून को लगभग एक लाख लोगों को भोजन करवाया जाता है। यहां पर इस दिन विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
नीम करोली बाबा या नीम करौरी या महाराजजी को बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में गिना जाता है। इनका जन्म 1900 ई के आसपास अकबरपुर जिला फिरोजाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था। बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। महाराजजी इस युग के भारतीय दिव्यपुरुषों में से एक माने जाते हैं। इनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा अकबरपुर में हुई थी। मात्र 11 वर्ष की छोटी सी उम्र में इनकी शादी हो गई थी। लेकिन शादी के बाद ही इन्होंने अपना घर छोड़ साधुओं की भांति विचरण करना शुरू कर दिया था। कुछ समय के लिए बाबा गुजरात के ववानिया तपस्या करने भी चलाए गए थे। पिता के वापस बुलाएं जाने के बाद वह अपने गृहस्थ जीवन में वापस आ गए थे। उनके दो बेटे और एक बेटी भी हुई थी।
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17 साल की आयु में ही ज्ञान प्राप्त हुआ
ऐसा माना जाता है कि बाबा को 17 साल की आयु में ही ज्ञान प्राप्त हो गया था। जिस कारण उनका चित्त गृहस्थी में नहीं लगा और वह घर गृहस्थी को त्यागकर बाबा बनकर विचरण करने लगे। बाबा को इस दौरान लोग लक्ष्मण दास, हाड़ी वाला बाबा, तिकोनिया वाला बाबा आदि भिन्न-भिन्न नामों से पहचानने लग गए थे।
हिंदू आध्यात्मिक गुरु के रूप में जाने वाले बाबा नीम करोली हनुमान जी के बहुत बड़े भक्त थे। उनको मानने वाले उन्हें हनुमान जी का ही अवतार मानते थे। कैंची धाम में हनुमान जी का मंदिर है और बाबा नीम करोली जी का आश्रम है। बाबा ने जीवित रहते हुए लगभग 108 हनुमान मंदिरों का निर्माण कराया था। ऐसी मान्यता है कि बाबा हनुमान जी के एक बड़े उपासक थे। उनकी उपासना से उनको अनेक चमत्कारिक सिद्धियों की भी प्राप्ति हुई थी। बाबा सभी आडंबरों से दूर रहते थे। इसी कारण वह अपने भक्तों को अपने छूने से माना करते है।
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नीम करोली बाबा के मंदिर
ताओस हनुमान मंदिर
नीम करोली बाबा के कई मंदिर हैं जिसमें से एक है ताओस हनुमान मंदिर। ये मंदिर यूएसए के मेक्सिको में है। यहां पर नीम करोली बाबा की एक अनोखी मूर्ति है। यह एक छोटा सा शहर है, यह शहर आध्यात्म के लिए बहुत प्रसिद्ध है। हर साल यहां दुनियाभर से हजारों हिंदू भक्त बाबा के दर्शन के लिए पहुंचते हैं
दिल्ली
दिल्ली में भी बाबा का एक आश्रम बना हुआ है। इस आश्रम में हर दिन बच्चों को खाना खिलाने का कार्य किया जाता है। इस आश्रम में बाबा से जुड़ी हुई कई किताबें हैं।
ऋषिकेश
ऋषिकेश में भी बाबा का एक आश्रम मौजूद हैं। पहाड़ी पर बने इस खूबसूरत मंदिर को खुद बाबा ने ही बनवाया था। इस मंदिर की बाहर की दीवारों पर अद्भुत नक्काशी की गयी है। उत्तर प्रदेश में भी आप बाबा के दर्शन के लिए जा सकते हैं। कानपुर के बाहरी क्षेत्र में नीम बाबा का मंदिर पनिकी हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
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बाबा के नामकरण के पीछे की रोचक घटना
क्या आपको पता है कि आखिर बाबा का नाम नीम करोली कैसे पड़ा? इसके पीछे भी एक रोचक घटना है, अंग्रेजों के समय की बात है जब एक बार बाबा ट्रेन के प्रथम श्रेणी में यात्रा कर रहे थे। टिकट निरीक्षक उनेक पास टिकट के विषय में पूछने आया लेकि बाबा के पास ट्रेन का टिकट नहीं था। टिकट निरीक्षक ने बाबा को थोड़ी देर बाद आने वाले एक छोटे से गांव नीम करोरी के पास ट्रेन से उतरने को कहा। बाबा का क्या था वह चुपचाप बस ट्रेन के कुछ दूरी पर चिमटा गाड़ के शांत होकर बैठ गए। बाबा के उतरने के बाद जब ट्रेन को दुबारा चलाने का प्रयास किया गया तो, ट्रेन अपने स्थान से एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी। ये देखकर ट्रेन के सभी कर्मचारी हैरान हो गए। उस ट्रेन के यात्रियों में से एक मजिस्ट्रेट था जो बाबा के विषय में जनता था, उसने ट्रेन के कर्मचारियों से बाबा से क्षमा मांगने और सम्मान पूर्वक ट्रेन में वापस बैठाने को कहा। टिकट निरीक्षक ने बाबा से क्षमा मांगी और उन्हें ट्रेन में आकर बैठने को कहा। बाबा बोले ठीक है मैं आ जाता हूं। बाबा के ट्रेन में बैठते ही ट्रेन तुरंत चल पड़ती है। इस घटना के होने के बाद से ही इस छोटे से गांव पर बाबा का नाम नीम करोली बाबा पड़ गया।
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बुलेटप्रूफ कम्बल की कहानी
उस दौरान बाबा के लाखों भक्त थे, उनमें से एक बुजुर्ग दंपत्ति भी उनके भक्त थे। ये फतेहगढ़ नामक स्थान पर रहते थे। एक दिन बाबा उनके घर आ पहुंचते है और रात वहीं रुकने को कहते हैं। बुजुर्ग दंपति ये सुनकर बहुत खुश हो जाते हैं और बाबा भोजन करके एक कंबल ओढ़कर चारपाई पर सो जाते हैं लेकिन सारी रात वह बुजुर्ग दंपति सो नहीं पता है क्योंकि बाबा रातभर कंबल के अन्दर कराहते रहते हैं।
चूंकि बाबा ने पूरा कंबल ओढ़ रखा था इसीलिए बुजुर्ग दंपति सब देख कर भी कुछ कर पाने में असमर्थ थे। उन्हें ये सब सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे कोई बाबा को जोरजोर से मार रहा है और वह दर्द से कराह रहे थे। पूरी रात निकल जाती है और जैसे ही सुबह होती है तो बाबा चारपाई से उठकर कंबल को लपेटकर बुजुर्ग दंपति को दे देते है और कहते है कि ”इस कंबल को गंगा में प्रवाहित कर दो लेकिन इसे खोलकर बिलकुल भी मत देखना।”
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कंबल में क्या था?
दंपति बाबा की आज्ञा का पालन करते हुए ऐसा ही करते है लेकिन जब दंपति कंबल को लेकर गंगा की ओर जा रहे होते हैं तो उनको कंबल में कुछ लोहे के सामान जैसा प्रतीत होता है जिससे उन्हें आश्चर्य होता है। लेकिन वह बाबा की आज्ञा का पालन करते हैं और चादर को पानी में प्रवाहित कर देते हैं।
इस घटना के लगभग एक महीने बाद उस दंपति का पुत्र बर्मा में छिड़ी लड़ाई से घर लौट आता है जो कि ब्रिटिश फौज में सैनिक था। घर आकर वह अपने माता-पिता को बताता है कि करीब एक महीने पहले वह दुश्मन फौजों के बीच फंस गया था। रातभर गोलीबारी होने के बाद उसके साथी मारे जाते हैं लेकिन वह अकेला ही बच गया था। आगे वह कहता है कि मुझे अभी भी ये समझ नहीं आया है कि उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली क्यों नहीं लगी। इस बात के बाद उस दंपति को उस दिन बाबा के कंबल वाले चमत्कार की बात समझ आ जाती है।
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प्रसिद्ध हस्तियां बाबा के भक्त हैं
भारत के इस आध्यात्मिक गुरु ने विराट, अनुष्का, स्टीव जॉब्स, जुकरबर्ग और कई अन्य लोगों को प्रेरित करने का कार्य किया है। बाबा और उनके अविश्वसनीय चमत्कारों से प्रभावित होकर आम आदमी से लेकर कई बड़े और जानेमाने लोग उनके आश्रम और उनकी समाधि के दर्शन करने गए है। अभी हाल ही में विराट कोहली और अनुष्का शर्मा अपनी बेटी वामिका के साथ उत्तराखंड के प्रसिद्ध नीम करोली बाबा के समाधि स्थल पर गए थे। पहले यहां उन्होंने ध्यान लगाया और फिर बाबा की समाधि के दर्शन करके आशीर्वाद लिए था। पिछले साल भी विराट-अनुष्का वृंदावन में स्थित नीम करोली बाबा के प्रसिद्ध आश्रम पहुंचे थे।
वहीं बाबा के अद्भुत चमत्कारों की चर्चा केवल उत्तराखंड तक ही सीमित नहीं है, उनके चमत्कारों की चर्चा विदेशों तक होती है। अमेरिका के बिजनेस टाइकून के रूप में जाने जाने वाले और एप्पल कंपनी के मालिक स्टीव जॉब्स को भी बाबा के प्रति काफी ज्यादा श्रद्धा है। वे भी वृंदावन में स्थित बाबा के कैंची धाम की यात्रा पर जा चुके हैं।
फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग भी नैनीताल में स्थित बाबा नीम करोली के मंदिर दर्शन करने जा चुके हैं। इतना ही नहीं जुकरबर्ग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बाबा के बारे में भी चर्चा की है।
हॉलीवुड की बड़ी अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स भी नैनीताल स्थित बाबा नीम करोली के धाम की यात्रा कर चुकी है। अमिरेकी लेखक और टेक्नोलॉजिस्ट लैरी ब्रिलिएंट ने भी उत्तराखंड में स्थित कैंची धाम में माथा टेका है। कहते हैं कि जुकरबर्ग फेसबुक बेचने को लेकर बहुत असमंजस में थे लेकिन स्टीव जॉब्स ने ही उन्हें नीम करोली बाबा के धाम जाने के बारे में सुझाया था। इतना ही नहीं स्टीव को अपनी कंपनी एप्पल के लिए लोगो का आइडिया भी नीम करोली बाबा के धाम से ही मिला था कहते हैं कि बाबा नीम करोली को सेव बहुत पसंद थे।
बाबा के भक्तों में एक आम आदमी से लेकर भारत के बड़े बड़े उद्योगपति टाटा बिड़ला, I phone के सीईओ स्टीव जॉब्स, जूलिया राबट्स आदि हैं।
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एक किताब से मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान
नीम करोरी की रोचक घटना के बाद बाबा बहुत अधित प्रसिद्ध हो गए थे और कैंची धाम आश्रम में जाकर रहने लगे थे। 1967 में उनसे प्रभावित होकर एक शिष्य रामदास मिले थे जो एक अमेरिकी निवासी थे और उनका मूल नाम भी रिचर्ड अल्पर्ट था। रिचर्ड अल्पर्ट बाबा के कार्यों से इतने अधिक प्रभावित हुए थे कि वे उनसे दीक्षा लेकर, उनके शिष्य बन गए और अपना नाम अल्पर्ट रामदास कर लिया। अल्पर्ट रामदास ने लगभग 15 पुस्तकें लिखी थीं जो की बाबा नीम करोरी पर आधारित थी। मिरिकल ऑफ लव उनकी बहुत प्रसिद्ध रही पुस्तक रही थी। इस प्रसिद्ध पुस्तक के बाद से ही बाबा को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। पुस्तक में कई प्रसिद्ध कहानियों की चर्चा की गयी है।
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सिद्ध आत्मा
नीम करोली बाबा एक सिद्ध आत्मा थे और कई प्रकार की सिद्धियों के स्वामी भी थे। बाबा अपने भक्तों की सभी समस्याओं का निदान कुछ ही मिनटों में कर देते थे। बाबा के पावन धाम को लेकर कई सारी चमत्कारिक बातें लोगों के बीच प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार जब भंडारे के दौरान घी की कमी हो गई थी, तब बाबा ने नीचे बह रही नदी से डिब्बे में जल भरकर लाने को कहा था जिसके बाद ये जल तेल में बदल गया था।
बाबा ने अपने जीवित रहते हुए बहुत लोगों का भला किया और समाधि लेने से पहले अपने भक्तों और शिष्यों को इसका संकेत भी दे दिया था। अपने समाधि स्थल का भी चुनाव उन्होंने स्वयं ही किया था। 09 सितंबर 1973 को वो आगरा शहर चले गए थे जहां से बाबा मथुरा की गाड़ी से गए थे। मथुरा स्टेशन पर आते ही बाबा की तबियत खराब हो गयी थी। बाबा को जल्द ही रामकृष्ण मिशन अस्पताल ले जाया गया था जहां बाबा ने 10 सिंतबर 1973 को अपना शरीर त्याग दिया था। बाबा की समाधि नैनीताल के पास पंतनगर में बनी हुई है।
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