कुछ वर्षों पहले तक भारत के साथ रक्षा क्षेत्र में होने वाले समझौते से भारत को लाभ कम और दूसरे देशों को अधिक होता था, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। क्योंकि अब भारत हर सौदे में बराबर का हकदार बनने की दिशा में काम कर रहा है। अब अगर रक्षा क्षेत्र या अन्य किसी तकनीकी क्षेत्र में भारत के साथ कोई देश सौदा करने की पहल करता है तो भारत की कोशिश यही होती है कि वो उस डील (India-US deal) के तहत बनने वाले उपकरण की तकनीक को भी भारत में लाने का सौदा करें यानि उस देश से टेक्नोलॉजी भी लें, जिसे टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कहा जाता है।
भारत और अमेरिका में डील
अब ताजा घटनाक्रम ये है कि भारत और अमेरिका के बीच इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी डील (India-US deal) हुई। इसके लिए भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन के बीच भी मुलाकात हुई। भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस डील से साफ संकेत मिल रहे हैं कि अमेरिका, भारत के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करेगा। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने कहा है कि इस पहल से भारत के साथ अमेरिका की प्रौद्योगिकी, रणनीतिक तथा नीतिगत साझेदारी में तेजी आएगी। खबर है कि क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी के तहत अमेरिका, भारत को लड़ाकू विमानों के इंजन की अहम तकनीक देने की योजना बना रहा है।
भारत के साथ हुई इस डील (India-US deal) को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि इस डील के माध्यम से दोनों देश चीन के सेमीकंडक्टर्स, मिलिट्री इक्विपमेंट्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का मुकाबला कर सकेंगे। वहीं जेक सुलिवन के साथ हुई उनकी इस मुलाकात पर व्हाइट हाउस ने कहा- हम आपसी विश्वास और भरोसे पर आधारित एक ओपन, एक्सेसबल और सिक्योर टेक्नोलॉजी इकोसिस्टम को बढ़ावा देना चाहते हैं। ये हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूत करेगा।
इस डील (India-US deal) से ये साबित हो गया है कि भारत ने अपनी मजबूत विदेश नीति से अमेरिका जैसे को भी झुका दिया है। क्योंकि रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों के द्वारा भारत को खूब आंख दिखाई गई, लेकिन भारत अपने निर्णयों पर अडिग रहा और भारत ने वही किया जिसमें भारत का हित था। इसके बावजूद अमेरिका अब भारत के पास आकर रक्षा क्षेत्र में एक बड़ी डील कर रहा है, जो दोनों देशों के लिए बेहद अहम है।
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फ्रांस-इजरायल के साथ समझौता
हाल में खबर आई थी कि फ्रांस और भारत ने कलवरी-श्रेणी की पनडुब्बियों को अपग्रेड करने के लिए एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) तकनीक पर सहयोग करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके अनुसार इन पनडुब्बियों का निर्माण भी भारत में ही होगा यानी भारत को एक तरह फ्रांस से नई टेक्नोलॉजी मिल रही है और अमेरिका के साथ भारत की ये डील (India-US deal) होना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।
फ्रांस के अलावा अन्य देशों की बात करें तो इजरायल भी उस सूची में आता है, जो भारत के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर में दिलचस्पी दिखाता है। लद्दाख में तैनात स्पाइक मिसाइल के लिए भारत ने पिछले वर्ष इजरायल के साथ सौदा किया था। इनमें एक विकल्प अमेरिका में बनी FGM-148 जेवलिन मिसाइल खरीदने का भी था। परंतु भारत ने स्पाइक को इसलिए चुना गया क्योंकि इजरायल टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और मिसाइलों का घरेलू निर्माण करने के लिए तैयार था। इजरायली वित्त मंत्री मोशे यालून ने अपने भारत दौरे के दौरान कहा था कि इजराइल के सैन्य उद्योग के लिहाज से भारत महत्वपूर्ण है। उन्होंने भारत के साथ तकनीकी दक्षता और विशेषज्ञता को साझा करने की इच्छा भी जताई थी।
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“तकनीक की भूमिका अहम”
नवबंर 2022 में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ग्लोबल टेक्नोलॉजी सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत भविष्य में किस तरह से प्रगति करेगा यह बहुत हद तक भारतीय तकनीक से निर्धारित होगा। यही नहीं भारत की कूटनीति को तय करने में भी तकनीक की अहम भूमिका होगी। भारत उन्हीं देशों के साथ साझेदारी बढ़ाएगा जो भारत को तकनीक देंगे या भारत से तकनीक को साझा करेंगे और भारतीय तकनीक को बाजार उपलब्ध कराएंगे।
पहले होता ये था कि भारत दूसरे देशों से रक्षा यंत्र तो खरीद लेता था लेकिन उसे बनाने वाली तकनीक उसे नहीं मिल पाती थी यानि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं होती थी। जानकारों के अनुसार तकनीक ट्रांसफर के माध्यम से निर्माता कंपनी या देश खरीददार देश को मूल तकनीक मुहैया करवाता है, जिससे खरीददार देश अपने स्तर पर स्वयं इस तरह के यंत्र भविष्य में बना सकता है यानि आत्मनिर्भर बन सके। देखा जाये तो विभिन्न देशों के साथ टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत समझौते शांति से की लाई जा रही क्रांति की तरह है, जो भारत के भविष्य में काफी अहम साबित होगी।
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