भू-राजनीति किसी भी देश की घरेलू राजनीति जितनी ही जटिल होती है। फ्रांस और अमेरिका की दोस्ती एक समय बेहद घनिष्ट हुआ करती थी। लेकिन अमेरिका की गलत नीतियों ने इस दोस्ती में दरार ला दी है। ऐसे में चीन इन दरारों की बीच अवसर तलाश रहा है, जोकि भारत के लिए एक बड़ा खतरा है।
इस लेख में पढ़िए कैसे अमेरिका की नीतियां चीन को फ्रांस की ओर ले जा रही हैं, और क्यों यह भारत के लिए चिंता का विषय है।
इस बात में कोई भी संशय नहीं है कि भारत ने अपनी मजबूत विदेश नीति के बूते अमेरिका जैसे देश को भी भारत के आगे झुकने को विवश कर दिया है। आज अमेरिका भारत के करीब आने के किसी भी मौके से नही चूक रहा है। दूसरी तरफ भारत की बढ़ती वैश्विक शक्ति से चीन में खलबली मची है।
बेल्ट एंड रोड फोरम में फ्रांस
ऐसे में चीन सीमा पर अपनी कुटिल चालें चलता रहता है। लेकिन अब जो ख़बरें निकलकर सामने आ रही हैं, वो चिंता का विषय है। दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फ्रांस चीन के अगले बेल्ट एंड रोड फोरम में भाग ले सकता है।
चीनी केंद्रीय विदेशी मामलात कमेटी के निदेशक वांग यी ने 16 फरवरी को पेरिस में फ्रांस के राष्ट्रपति के विदेश मामलों के सलाहकार इमैनुअल बोन के साथ 23वीं चीन-फ्रांस रणनीतिक वार्ता की सह-अध्यक्षता की है। खबर है कि दोनों देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि चीन और फ्रांस के लिए रणनीतिक साझेदारी विशेष महत्व रखती है।
उन्होंने रणनीतिक संचार को मजबूत करने, आपसी विश्वास को मजबूत करने, व्यावहारिक सहयोग को गहरा करने और संयुक्त रूप से वैश्विक चुनौतियों का मुकाबला करने पर सहमति जताई है।
साथ ही वांग यी ने कहा है कि चीन-फ्रांस रणनीतिक सहयोग अन्य देशों से आगे होना चाहिए। खबरों के अनुसार, फ्रांस चीन के अगले बेल्ट एंड रोड फोरम में भाग लेगा। ये बात राष्ट्रपति मैक्रॉन के राजनयिक सलाहकार ने शीर्ष चीनी राजनयिक वांग यी को बताई है।
France will participate in China’s next Belt and Road forum, President Macron’s diplomatic advisor told visiting top Chinese diplomat Wang Yi, according to the Chinese Foreign Ministry. pic.twitter.com/gY95KkxvqX
— Stuart Lau (@StuartKLau) February 16, 2023
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इससे पहले 2022 में फ्रांस 1.7 बिलियन डॉलर की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण में चीन के साथ शामिल हुआ था। अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया में किए जाने वाले किसी भी प्रोजेक्ट में चीन के साथ शामिल होने वाला फ्रांस पहला देश बन गया था।
ऐसे में यदि फ्रांस की नजदीकियां चीन के साथ बढ़ती हैं तो यह भारत के लिए अच्छी ख़बर नहीं होगी और इसका जिम्मेदार अमेरिका होगा। दरअसल, 90 बिलियन आस्ट्रेलियाई डॉलर की सबमरीन डील रद्द होने के बाद फ्रांस की सियासत में खलबली मची हुई है।
अमेरिका-फ्रांस में दरार
इस रक्षा डील के रद्द होने के बाद फ्रांस ने अमेरिका के प्रति सख्त रुख अपनाया और अमेरिका-फ्रांस की गाढ़ी दोस्ती में दरार दिखने लगी। बात इतनी बढ़ गई थी कि फ्रांस ने अमेरिका से अपने राजदूत को भी वापस बुला लिया था।
फ्रांस के विदेश मंत्रालय के मुताबिक, यह पहला मौका था जब फ्रांस ने अमेरिका से अपने राजदूत को बुलाया था। इतना ही नहीं फ्रांस ने ऑस्ट्रेलिया से भी अपने राजदूत को वापस बुला लिया था। जिसके बाद विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन ने एक लिखित बयान में कहा था कि फ्रांस का निर्णय ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका द्वारा की गई घोषणाओं की असाधारण गंभीरता को देखते हुए उचित है।
विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिकी टेक्नोलॉजी वाली परमाणु पनडुब्बी के लिए फ्रांसीसी पारंपरिक पनडुब्बी की खरीद को रद्द कर दिया। ऑस्ट्रेलिया द्वारा ऐसा करना अपने सहयोगियों और भागीदारों के साथ किया गया अस्वीकार्य व्यवहार है।
फ्रांस के राजदूत फिलिप एटियेन ने ट्वीट कर कहा था कि अमेरिका द्वारा की गई घोषणाएं हमारे गठबंधनों, हमारी साझेदारी और यूरोप के लिए इंडो-पैसिफिक के महत्व के हमारे दृष्टिकोण को सीधे प्रभावित कर रही हैं।
2019 में, द इकोनॉमिस्ट के साथ एक साक्षात्कार में, मैक्रॉन ने कहा था कि अमेरिका यूरोप से मुंह मोड़ रहा है और यह जागने का समय है। उन्होंने यह भी कहा कि “यूरोप एक चट्टान के किनारे पर खड़ा है और उसे रणनीतिक रूप से एक भू-राजनीतिक शक्ति के रूप में सोचना शुरू करने की आवश्यकता है।”
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अमेरिका का व्यवहार देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका मानता है कि यूरोप और फ्रांस दोनों में ही चीन का सामना करने की क्षमता नही है। इससे पहले मैक्रों कह भी चुके हैं कि वो यूरोपीय संघ को अमेरिका का साथ देकर चीन के विरुद्ध कोई मोर्चा नहीं खोलना चाहिए।
भारत के लिए चिंता का विषय
वैश्विक नजरिए से भारत का दर्जा तेजी से बढ़ रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। प्रत्येक देश भारत से अपनी साझेदारी को और मजबूत करना चाह रहा है। इसमें फ्रांस भी शामिल हैं।
आपको बता दे कि हाल ही में भारत, फ्रांस और यूएई के बीच गठजोड़ हुआ है। जिसे त्रिपक्षीय सहयोग पहल (Trilateral Cooperation Initiative) नाम दिया गया है। तीनों देशों ने रक्षा, परमाणु ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सहयोग को लेकर महत्वाकांक्षी रोडमैप पेश किया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर, फ्रांस के विदेश मंत्री कैथरीन कोलोना और यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान के बीच 4 फरवरी को फोन पर बातचीत हुई थी।
फ्रांस भारत के सबसे करीबी रणनीतिक साझेदारों में से एक है। अतीत में जिस तरह से रूस भारत के साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़ा रहता था, हाल के वर्षों में फ्रांस ने भारत के साथ वैसा ही रुख दिखाया है। दोनों देश समुद्री शक्तियां हैं।
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दोनों ही देशों का हिंद-प्रशांत जल में विशाल आर्थिक क्षेत्र है। दोनों की समुद्री अर्थव्यवस्था, समुद्री प्रौद्योगिकी, मत्स्य पालन, बंदरगाह और शिपिंग में भी रुचि बढ़ रही है। इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक स्वतंत्र और सुरक्षित समुद्री व्यवस्था सुनिश्चित होना दोनों देशों के हित में है। रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा समेत कई क्षेत्र हैं, जिसमें फ्रांस-भारत संबंधों का विस्तार हो रहा है।
लेकिन दूसरी ओर चीन है जिसके साथ भारत के संबंध बिल्कुल भी ठीक नही है। सीमा पर चीन आए दिन कोई ना कोई बखेड़ा खड़ा करता आ रहा है। ऐसे में भारत के करीबी मित्र फ्रांस का चीन की ओर बढ़ना भारत के लिए चिंता का विषय है।
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