“सबसे बड़ा गोदी मीडिया रवीश कुमार है”, दूरदर्शन के पत्रकार ने ‘पत्रकारिता’ पर प्रकाश डाला है

दूरदर्शन की ओर लौटने लगे हैं दर्शक!

अशोक श्रीवास्तव

Source: TFI MEDIA

अशोक श्रीवास्तव: एक समय था, जब लोग समाचारों के लिए उतनी ही उत्सुकता से प्रतीक्षा करते, जितना कि “रामायण” या “महाभारत” की। तब कोई अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं था, और लोग एकटक दूरदर्शन पर प्रसारित समाचार को बड़े चाव से सुनते। परंतु 1991 के उदारीकरण के बाद क्या देशी, क्या विदेशी, निजी न्यूज चैनलों की बाढ़ आ गई, जिसमें बीबीसी और एनडीटीवी ने सबसे अधिक धनोपार्जन किया।

ब्रेकिंग न्यूज़ की महामारी

कहा गया है अति सर्वत्र वर्जयेत अर्थात किसी भी वस्तु की अति हानिकारक होती है। ठीक इसी भांति टीआरपी की होड़ में न्यूज़ चैनलों के बीच ब्रेकिंग न्यूज़ की महामारी मच गई- ब्रेकिंग न्यूज़ के दबाव में बस ख़बर देना ही चैनलों की प्राथमिकता बन गई- ख़बर सही है या नहीं इससे न्यूज़ चैनलों का कोई वास्ता नहीं रहा।

इस लेख में आप पढ़ेंगे कि क्यों भारतीय दर्शक पुन: दूरदर्शन की ओर लौट रहे हैं?

एक न्यूज़ चैनल कैसा होना चाहिए? ज्यादा कुछ नहीं, बस समाचार दिखाए, स्पष्ट दिखाए, विचारों के लिए लोगों को आमंत्रित करे और बाकी जनता पर छोड़ दें कि इस समाचार को जनता किस दृष्टिकोण से देखें। लेकिन ऐसा नहीं होता, सीएनएन और बीबीसी जैसे शिशुओं से प्रेरित होकर कई न्यूज़ चैनल खबरों में इतना नमक मिर्च लगाते हैं कि कई बार समाचार ही अपाच्य बन जाता है।

अब प्रश्न यह है कि डीडी न्यूज़ इन चैनलों से अलग कैसे है? क्या ये परफेक्ट न्यूज चैनल है? नहीं, परंतु डीडी न्यूज़ कम अभी भी समाचार को समाचार की तरह प्रस्तुत करता है- उसमें एजेंडा या फिर सनसनी का नमक-मिर्च लगाकर उसे अपाच्य नहीं बनाता। वैसे भी किसी सज्जन पुरुष ने कहा था, “असत्य और छल के युग में सत्य बोलना ही सबसे क्रांतिकारी कार्य होता है!”

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परंतु दूरदर्शन का संचालन तो प्रसार भारती के हाथ में है न? बिल्कुल है, परंतु जो पत्रकार हैं, उनपे विचार थोपना उतना ही सरल है, जितना नंगे पाँव एवरेस्ट चढ़ना। कुछ स्वघोषित ‘समाज सुधारक’ इन्हे गोदी मीडिया कहने से भी नहीं चूकते, जिनके लिए डीडी न्यूज़ के पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने अपने विचार प्रकट किए हैं।

उन्होंने “गोदी मीडिया” एवं इस टर्म के जनक रवीश कुमार और NDTV पर कटाक्ष करते हुए कहा कि गोदी मीडिया तो वो हैं जो वर्षों तक सत्ता की गोद में पलते रहे। उनके अनुसार, “NDTV को ही देख लीजिए, उनका उद्घाटन तो प्रधानमंत्री कार्यालय में कराया गया। तो गोदी मीडिया कौन हुआ?

किस तरह से सरकार की ‘गोद में बैठकर’ ये लोग धाँधलेबाज़ी, घपलेबाज़ी करते रहे, क्या ये किसी से छुपा है? मैं ये अपने कार्यक्रम में कह चुका हूँ, दूरदर्शन पे कह चुका है, और मुझे ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि एनडीटीवी बना कैसे था? दूरदर्शन की टेप्स चुराई जाती थी इनके कर्मचारियों द्वारा!”

अशोक श्रीवास्तव गलत भी नहीं कह रहे, क्योंकि एनडीटीवी के संस्थापक प्रणय रॉय एक समय दूरदर्शन के लिए ही कार्यरत थे। कुछ माह पूर्व एक और वीडियो वायरल हुई थी, जिसमें अशोक श्रीवास्तव, तत्कालीन डीडी न्यूज के महानिदेशक भास्कर घोष और उनके घोटाले को उजागर कर रहे हैं जो उन्होंने दूरदर्शन के महानिदेशक रहते हुए किया था। बताते चलें कि भास्कर घोष की बेटी वही सागरिका घोष हैं जिनका नाम लिबरल और वामपंथी पत्रकारों में अव्वल नंबर पर आता है और उन्हीं राजदीप सरदेसाई के ससुर भी हैं जिन्हें आज तक कोई सीरियस नहीं लेता।

 

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NDTV ने चुराए दूरदर्शन के टेप

वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव ने कहा कि NDTV ने कांग्रेस सरकार के दौरान अपने फायदे के लिए सरकारी संपत्तियों का इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि NDTV ने लाभ कमाने, नाम बनाने, स्थायित्व जमाने और चैनल स्थापित करने के लिए दूरदर्शन के टेप और उपकरण चुराए जिसके बल पर बाद में NDTV ने कई लाभ हासिल किए।

इस पूरी हेर-फेर के दौरान भास्कर घोष ने सक्रिय रूप से NDTV को ऐसा करने में मदद की, इस तरह के आरोप हैं। अब चूंकि कांग्रेस का शासन था, स्वयं भास्कर घोष दूरदर्शन के महानिदेशक पद पर आसीन थे तो कौन ही सवाल खडे करता, कोई क्यों ही यह दुश्मनी मोल लेता और अपनी नौकरी को दांव पर लगाता।

इसके बाद भी दूरदर्शन ने हार नहीं मानी, और अनवरत पत्रकारिता के आदर्शों को अक्षुण्ण रखने के लिए काफी प्रयास किये। स्वयं अशोक श्रीवास्तव अपने ट्विटर चैनल एवं अपने कार्यक्रम “दो टूक” के माध्यम से उन लोगों को आड़े हाथ लेते हैं, जो पत्रकारिता के नाम पर भारत की अखंडता पर प्रश्नचिन्ह लगाने से पूर्व एक बार भी नहीं सोचते।

इसके अतिरिक्त अब केंद्र सरकार भी दूरदर्शन के गौरव को पुनः स्थापित करने हेतु युद्धस्तर पर कार्य कर रही है। उदाहरण के लिए वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों, रणनीतिक और सीमावर्ती क्षेत्रों में राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन की पहुंच को मजबूत बनाने के उद्देश्य से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ब्रॉडकास्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर एंड नेटवर्क डेवलपमेंट (BIND) योजना को मंजूरी दे दी है।

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आपको बता दें कि सरकार ने दूरस्थ, आदिवासी और सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को करीब आठ लाख फ्री डीडी सेट-टॉप बॉक्स देने की योजना बनाई है। इस योजना पर 2025-26 तक 2,539.61 करोड़ रुपये खर्च होंगे। योजना के तहत दूरदर्शन एवं आकाशवाणी पर प्रसारित करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले कंटेट तैयार किए जाएंगें।

योजना की आवश्यकता

इससे क्या होगा? वामपंथी और माओवाद से उत्पन्न उग्रवाद से निपटने के लिए सरकार अपने प्रसारण चैनलों के माध्यम से तथ्यात्मक जानकारी और जनकल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का लक्ष्य बना रही है। क्योंकि वामपंथी विचारधारा से ग्रसित लोग इन इलाकों तक सही सूचना न मिलने का लाभ उठाते हैं और गलत जानकारियां फैलाते हैं, जिसका समाज पर गलत प्रभाव पड़ता है।

ऑल इंडिया रेडियो और प्रसार भारती का उपयोग सरकार द्वारा सरकार की पहुंच को बढ़ाने और यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा रहा है कि जनता तक सटीक जानकारी पहुंच सके। क्योंकि भारत के वामपंथ प्रभावित क्षेत्रों की स्थिति कुछ ऐसी है कि वहां के लोगों तक सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं और घोषणाओं की तथ्यात्मक जानकारी उन तक नहीं पहुंच पाती है।

एक तरह से इनको हर चीज से काटकर रखा जाता हैं और देश-दुनिया में क्या चल रहा है उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं होती। सही जानकारी इन लोगों तक पहुंचे, जागरूकता बढ़े, इस दिशा में ही सरकार प्रयास कर रही

इसके अतिरिक्त दूरदर्शन ने कोरोना महामारी के समय विभिन्न माध्यमों से जनता को जागरूक करके इस महामारी से लड़ने में अपनी अलग भूमिका निभाई थी। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए केंद्र सरकार ने कुछ माह पूर्व अपना एजेंडा चलाने वाले टीवी चैनलों पर नकेल कसते हुए नई गाइडलाइंस भी जारी की थी, जिसके अनुसार चैनलों को राष्ट्रीय हित और सार्वजनिक हित से संबधित कार्यक्रमों का दिन में कम से कम 30 मिनट का प्रसारण करना अनिवार्य करने की बात कही गई थी।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि यदि एजेंडा मुक्त खबरें चाहिए, यदि आपको ऐसा ज्ञान चाहिए जिसमें किसी प्रकार की मिलावट न हो, तो दूरदर्शन आपकी सेवा में उपस्थित है।

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