कुछ लोगों की प्रवृत्ति कूप मंडूक जैसी होती है। बाहरी दुनिया से उन्हे कोई वास्ता नहीं, उन्हे प्रतीत होता है, जो है, इसी कुएं में है, और वे इस जगत के “अघोषित सम्राट” हैं परंतु कभी कभी इनका भ्रम भी बहुत बुरी तरह टूटता है, जैसे ममता बनर्जी का टूटा है। इस लेख में पढिये कि कैसे ममता बनर्जी का अपने आप को सर्वशक्तिशाली समझना उन्ही पर भारी पड़ गया।
समस्या क्या है?
हाल ही में ममता बनर्जी को ज़ोरदार झटका लगा, जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए ममता बनर्जी के विरुद्ध कार्रवाई को स्वीकृति दी। न्यायमूर्ति अमित बोरकर की पीठ ने जनवरी 2023 के सत्र अदालत (Session court) के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।
सत्र अदालत राष्ट्रगान का अपमान करने के मामले में कार्रवाई करने की माँग वाली अर्जी को पुनर्विचार के लिए मजिस्ट्रेट अदालत में भेज दिया था। जबकि बनर्जी चाहती थीं कि इस अर्जी को रद्द कर देना चाहिए। परंतु इस परिप्रेक्ष्य में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता को बॉम्बे हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली है।
परंतु मामला था क्या, और किस कारण से ममता बनर्जी चाहती थी कि उनपर कोई कार्रवाई न हो?
असल में दिसंबर 2021 में ममता बनर्जी कार्यक्रम के सिलसिले में मुंबई के यशवंतराव चव्हाण ऑडिटॉरियम पहुँची थीं। कार्यक्रम में राष्ट्रगान बजने के बाद तक वे बैठी रहीं। इसके बाद अचानक से उठीं। राष्ट्रगान की 2 पक्तियाँ गाने के बाद राष्ट्रगान के बीच हीं वे कार्यक्रम स्थल से चली गईं।
बीजेपी नेता विवेकानंद गुप्ता ने मार्च 2022 में इसकी शिकायत की थी। जिसके बाद बंगाल की सीएम को समन जारी किया गया।
इसी मामले में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में सीएम ममता पर भाजपा नेता विवेकानंद गुप्ता ने राष्ट्रगान का अपमान करने के आरोप में शिकायत दर्ज कराई थी।
मामला दिसंबर 2021 का था। इस शिकायत पर हाईकोर्ट ने मार्च 2022 में ममता बनर्जी को समन जारी किया था। ममता बनर्जी ने इस समन को सेशन कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने मामले को मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया था और शिकायत पर नए सिरे से विचार करने को कहा था।
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ये बंगाल नहीं है….
इसीलिए ममता बनर्जी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस अर्जी में ममता बनर्जी ने कहा कि सत्र अदालत को समन हमेशा के लिए रद्द कर देना चाहिए था न कि मामले को दोबारा विचार करने के लिए मजिस्ट्रेट के पास भेजना चाहिए था। परंतु वे शायद भूल गई कि बंगाल प्रशासन और न्यायपालिका में आकाश पाताल का अंतर है।
मामले की सुनवाई होने के बाद जस्टिस बोरकर ने कहा कि हाईकोर्ट को इस मामले में दखल देने की जरूरत नहीं है।
बंगाल में ममता बनर्जी का कैसा वर्चस्व है, ये किसी से छुपा नहीं है। ज्यादा समय की बात नहीं है, डियरनेस अलाउअन्स [DA] यानि महंगाई भत्ता को लेकर बंगाल में अजब विवाद छिड़ था।
बंगाल के सरकारी कर्मचारियों के अनुसार ममता प्रशासन जो महंगाई भत्ता प्रदान करती है, वह केंद्र सरकार द्वारा आवंटित महंगाई भत्ता के अनुरूप प्रभूत कम है, और इसीलिए उसमें बढ़ोत्तरी की जोरों से शुरू हो गई है और जब मांगें अनसुनी की गई, तो बंगाल के सरकारी कर्मचारी महंगाई भत्ता को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
परंतु ममता बनर्जी तो ममता बनर्जी ठहरीं जिनका जनता के सवालों से मतलब नहीं, बस हंगामा करना या हंगामा करवाना जीवन का उद्देश्य है। बनर्जी के अनुसार, “वे हमेशा और अधिक की माँग करते रहते हैं। मुझे कितना अधिक देना होगा? हमारी सरकार के लिए अब और अधिक महँगाई भत्ता (डीए) देना संभव नहीं है। हमारे पास पैसा नहीं है। हमने 3 प्रतिशत अतिरिक्त DA दिया है। अब यदि आप इससे भी खुश नहीं हैं तो मेरा सिर काट लीजिए। आपको और कितना अधिक DA चाहिए?”
अभी तो हमने इनके द्वारा केंद्र सरकार को निरंतर चुनौती देने की खुजली पर प्रकाश नहीं डाला है, अन्यथा आपको ज्ञात होगा कि बंगाल में कैसे ममता बनर्जी तानाशाही स्थापित करने को उद्यत है।
राहुल गांधी के बाद इनका नंबर?
तो प्रश्न ये उठता है : क्या राहुल गांधी के बाद अब ममता बनर्जी पर भी कार्रवाई होंगी? यह कहना जल्दबाज़ी होगा, क्योंकि अभी बॉम्बे हाईकोर्ट ने केवल मुकदमे को स्वीकृति दी है। परंतु जैसा ममता का ट्रैक रिकॉर्ड है, वह चाहे बेल पे जेल से निकलें, परंतु उनका निर्दोष सिद्ध होना लगभग असंभव है।
इसके साथ ही बॉम्बे हाईकोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया कि व्यक्ति चाहे जितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, वह कदापि कानून से ऊपर नहीं हो सकता। अब देखना ये होगा कि क्या ममता बनर्जी इस झटके से उबर पायेंगी, या प राहुल गांधी वाली राह अपनाकर अपने विनाश का मार्ग प्रशस्त करेंगी।
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