अब पहले की भाँति बिजली कटौती नहीं होगी। अब ऊर्जा हस्तांतरण में बाहरी हस्तक्षेप, जैसे हैकिंग इत्यादि बीते ज़माने की बात हो जायेगी। विश्वास नहीं हो रहा है न, परंतु केंद्र सरकार जल्द ही इस संमति को यथार्थ में परिवर्तित करने वाली है। इस लेख मे पढिये कैसे भारत के पावर ट्रांसमिशन में डिजिटल क्रांति आने वाली है।
टास्क फोर्स का गठन क्यों
लगभग 2 वर्ष पावर ग्रिड के सीएमडी की अध्यक्षता में सितंबर, 2021 में बिजली मंत्रालय द्वारा गठित टास्क फोर्स का गठन हुआ। टास्क फोर्स के अन्य सदस्यों में स्टेट ट्रांसमिशन यूटिलिटीज, सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी, सेंट्रल ट्रांसमिशन यूटिलिटीज, MeiTY, IIT कानपुर, NSGPMU और EPTA के प्रतिनिधि शामिल थे।
उक्त टास्क फोर्स का मूल उद्देश्य था स्मार्ट पावर ट्रांसमिशन सिस्टम और अन्य सिफारिशें ट्रांसमिशन क्षेत्र के आधुनिकीकरण, स्मार्ट और भविष्य के लिए तैयार करने के तरीके सुझाना इत्यादि।
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अब 2 वर्ष बाद इस टास्क फोर्स की रिपोर्ट स्वीकारते हुए केंद्र सरकार के ऊर्जा मंत्री आर.के. सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि लोगों को 24×7 विश्वसनीय और सस्ती बिजली प्रदान करने और स्थिरता लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सरकार के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए एक आधुनिक ट्रांसमिशन ग्रिड महत्वपूर्ण है।
आरके सिंह के अनुसार, “एक पूरी तरह से स्वचालित, डिजिटल रूप से नियंत्रित, तेजी से प्रतिक्रिया देने वाला ग्रिड जो साइबर हमलों और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति लचीला हो, समय की मांग है”। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रणाली को किसी भी आकस्मिकता के मामले में विशिष्ट क्षेत्रों को अलग-थलग करना सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि ग्रिड की रक्षा की जा सके और बड़े आउटेज को रोका जा सके।
भारत पावर ट्रांसमिशन का डिजिटलीकरण
इससे क्या सुनिश्चित होगा? भारत के पावर ट्रांसमिशन में “डिजिटल क्रांति” आने वाली है। वो कैसे?
टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट में कई तकनीकी और डिजिटल समाधानों की सिफारिश की है, जिन्हें राज्य ट्रांसमिशन ग्रिड को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए अपनाया जा सकता है। इन सिफारिशों को मौजूदा पारेषण प्रणाली के आधुनिकीकरण, निर्माण और पर्यवेक्षण, संचालन और प्रबंधन, स्मार्ट और भविष्य के लिए तैयार पारेषण प्रणाली और कार्यबल के कौशल विकास में उन्नत प्रौद्योगिकी के उपयोग की श्रेणियों के तहत जोड़ा गया है।
समिति की रिपोर्ट के अनुसार रोबोट के उपयोग से न केवल मानवीय हस्तक्षेप को कम करने और जीवन के जोखिम/खतरों को कम करने की उम्मीद है बल्कि निर्माण और रखरखाव के दौरान सटीकता सुनिश्चित करने के साथ-साथ समय की बचत भी होती है।
टास्क फोर्स ने वैश्विक ट्रांसमिशन यूटिलिटीज के प्रदर्शन के आधार पर ट्रांसमिशन नेटवर्क की उपलब्धता और वोल्टेज नियंत्रण के लिए बेंचमार्क की भी सिफारिश की है। अल्पकालिक से मध्यम अवधि की सिफारिशों को 1-3 वर्षों में लागू किया जाएगा, दीर्घकालिक हस्तक्षेपों को 3-5 वर्षों की अवधि में लागू करने का प्रस्ताव है।
यही नहीं, यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का उपयोग करके पूर्वानुमानित रखरखाव तकनीक का उपयोग करने की प्रणाली को समायोजित तरीकों से आगे बढ़ाएगा। ट्रांसमिशन संपत्तियों के निर्माण और निरीक्षण में रोबोट और ड्रोन का इस्तेमाल किया जाएगा।
इससे भारत के ऊर्जा क्षेत्र को क्या लाभ मिलेगा?
देखिये, भारत के लिए पहला शत्रु तो हमारा पडोसी ही है, फिर चाहे वो पाकिस्तान हो या चीन हो। इन शत्रु पड़ोसी देशों के कारण भारत को सीमा पार कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है लेकिन अब खतरे का चेहरा बदल गया है।
आज के सैनिक शस्त्रागार से लड़ने वाले नहीं हैं बल्कि वे हैं जो कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठकर दुश्मन की संस्थाओं, पावर ग्रिड आदि पर अतिक्रमण कर सकते हैं।
युद्ध अब एक राष्ट्र की उपग्रह सेवाओं को उड़ाने और अर्थव्यवस्था के मुक्त पतन की शुरुआत करने में स्थानांतरित हो गया है और भारत ऐसे हमलों का शिकार है यह कोई छिपाने वाली बात नहीं है।
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ऐसे में हमें हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
कुछ माह पूर्व 2022 में अहमदाबाद पुलिस ने एक अहम खुलासे में बताया मलेशियाई और इंडोनेशियाई हैक्टिविस्ट भारत को निशाना बना रहे हैं।
अहमदाबाद साइबर क्राइम सेल ने दावा किया है कि विभिन्न देशों के हैकर्स समूहों ने पैगंबर मोहम्मद पर नूपुर शर्मा की विवादास्पद टिप्पणी के बाद सरकारी एवं निजी वेबसाइटों और डेटाबेस पर हमला करके भारत के खिलाफ “साइबर युद्ध” शुरू किया है।
हैक की गई वेबसाइट्स में सरकारी, एजुकेशनल और बिजनेस से लेकर हर तरह की वेबसाइट शामिल है। साइबर सेल ने यहां तक दावा किया कि वेबसाइट्स से गोपनीय डेटा लीक किया गया है जिसमें सरकारी फाइलें, आधार कार्ड विवरण, पैन कार्ड और कुछ नागरिकों के पासपोर्ट विवरण आदि शामिल हैं।
अब कल्पना कीजिये कि ऐसे हैकर हमारे पावर ग्रिड को निशाना बनाये, तो? पिछले वर्ष ऐसा प्रयास हो चुका था, और ऐसे में भारत पुनः अपने ऊर्जा सेक्टर को दांव पर लगाने का खतरा नही मोल लेना चाहती।
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