कोई भी व्यक्ति या संस्थान जब अपनी मूल विचारधारा से पीछे हटने लगता है तो उसकी आलोचना उसके ही समर्थक करने लगते हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की वर्तमान स्थिति कुछ ऐसी ही है। हिंदुत्व के मुद्दे पर मुखर वक्तव्य देने वाले एवं भारत के प्रत्येक नागरिक को हिंदू बताने वाले आरएसएस चीफ मोहन भागवत अब आए दिन अपने वक्तव्य से प्रचुर चर्चा में घिरे देखें जा रहे हैं। हिन्दुओं का अभिभाषण करने वाले मोहन भगवत वासर रूप से हिन्दुओं पर एक पार्श्व विवेचना करते दिख रहे हैं तो दूसरी पार्श्व अन्य धर्मों के हित की बात करते नहीं चूक रहे हैं। बोलते बोलते आरएसएस चीफ मोहन भागवत बोल आज कल कुछ ऐसा बोल जाते हैं कि उनके वक्तव्य के लिए बाद में संघ को प्रेस नोट तक जारी करना पड़ता है।
हाल ही एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें बताया गया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन संचार विंग विश्व संवाद केंद्र नोएडा में अनुसूचित जाति (SC) के लोगों पर चर्चा करने के लिए दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित करने जा रही है। इस सम्मेलन में इस बात पर चर्चा की जाएगी कि जिन समूहों ने इस्लाम और ईसाई धर्म अपना लिया है उन्हें आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए या नहीं। अब इस मुद्दे पर हमेशा ही RSS की नीति धर्मांतरण के ही विरुद्ध रही है परन्तु विडम्बना देखिये वही RSS धर्मांतरण पर चर्चा न कर धर्मांतरण कर चुके लोगों को आरक्षण मिलने के विषय पर चर्चा कर रहा है। और लोगों ने संघ के इस कदम को विवादित कहते हुए आरएसएस की आलोचना करने से भी नहीं रुक रहे । और यह स्वभावजन्य भी है क्योंकि जब हिंदुत्व का चोला ओढ़ आप लोगों के हिन्दुओं के मनोभाव विपरीत वक्तव्य देंगे तो जन आक्रोश का सामना तो अनिवार्य होगा.
वर्षों से इस मामले पर यह चर्चा होती रही है कि जो लोग मुस्लिम या इसाई धर्म अपना चुके हैं उन्हें आरक्षण का लाभ किसी भी कीमत पर नहीं मिलना चाहिए। वहीं एक वर्ग ऐसा है जो कि यह चाहता कि यह लाभ अनुसूचित जाति के लोगों के धर्मांतरण के बावजूद दिया जाना चाहिए। ऐसे में RSS का मानना है कि जो लोग अनुसूचित जाति के हैं, और धर्मांतरण कर मुस्लिम बन चुके हैं, उन्हें यह लाभ इसलिए मिलना चाहिए जिससे वे। घर वापसी कर सकें। परन्तु लोगों को इसमें तार्किकता नहीं दिख रही रही है।
और कोई काम नहीं है क्या?
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जो धर्मांतरण कर चुके लोग हैं उन्हें पहले यह सभी अधिकार मिल रहे थे। इसके बावजूद उन्होंने धर्मांतरण किया जिससे उनकी निष्ठा पर सवाल खड़े होते हैं। RSS इस मामले में कुतर्क कर रहा है क्योंकि धर्मांतरण कर ईसाई और मुस्लिम बने लोगों को आरक्षण देने के खिलाफ बहुसंख्यक वर्ग पूरी एकता से खड़ा है। इसके विपरीत विश्व हिंदू परिषद के विजय शंकर तिवारी ने कहा कि वीएचपी की पहले की स्थिति यह थी कि अनुसूचित जाति जो ईसाई और इस्लाम में परिवर्तित हो गए, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
बताते चलें की यह वही आरएसएस है जिसने जातीय मुद्दों को की ओर मुँह नहीं किया । RSS ने हमेशा ही आरक्षण का विरोध किया है। इसी के चलते वामपंथी दलों ने RSS के मोर्चा खोलते रहे थे। अब वही RSS यदि आरक्षण के लाभ मिलने को लेकर यदि कार्यक्रम करेगा तो संगठन की आलोचना निश्चित ही है।
अहम बात यह भी है कि मोहन भागवत पिछले दिनों जाति को लेकर भी विवादित वक्तव्य दे चुके हैं। उन्होंने हिंदू वर्ण व्यवस्था को लेकर अजीबोगरीब बयान दिया था जिसके बाद शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने भी उन्हें लताड़ लगाई थी। आए दिन नए नए विवाद खड़े करना और उसमें हिंदुओं के हितों की अवहेलना करने के चलते यह माना जा रहा है कि आरएसएस अपनी मूल विचारधारा से पीछे हट रहा है जो कि उसके लिए प्रभूत घातक हो सकता है।
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