“बीलिंची नागिन निघाली” सुना है? अगर हाँ, तो आपका बचपन बहुत ही जबरदस्त बीता है। परंतु आपको नहीं लगता कि वैसी धमाकेदार, लच्छेदार कॉमेडी आज के फिल्मों, विशेषकर बॉलीवुड से लगभग गायब है? आप अकेले नहीं है, स्वयं जॉनी लीवर भी ऐसा ही सोचते हैं।
इस लेख पढिये जॉनी लीवर की उन बातों, जो कहीं न कहीं कॉमेडी का विनाश करने पर तुले हैं। तो अविलंब आरंभ करते हैं।
“आजकल कॉमेडी नहीं, फास्ट फूड है”
जॉनी लीवर को भला कौन नहीं जानता? इनकी कॉमेडी के चर्चे आज भी होते हैं, चाहे वह बाज़ीगर हो, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी हो, फिर हेरा फेरी हो, या फिर खट्टा मीठा, इनकी कॉमिक टाइमिंग आज भी लोगों को दमदार लगती है। परंतु वे वर्तमान कॉमेडी फिल्मों से थोड़े रुष्ट हैं।
ऐसा क्यों? द इंडियन एक्सप्रेस में अपने कारण साझा करते हुए उन्होंने बताया, “पहले जो लेखन होता था, उसमें कथा सर्वोपरि होती थी। मैं उस समय को बहुत मिस करत हो। पहले स्थिति संबंधी कॉमेडी होती, जब लोग कॉमिक कैरेक्टर को देखते ही कहते थे, ‘देख अभी मज़ा आएगा’, और सच में कई अवसरों पे लोग लोटपोट हो जाते थे।
इन्होंने वर्तमान कॉमेडी फिल्मों पर कटाक्ष करते हुए कहा, “आज कि फिल्में फास्ट फूड समान हो चुकी हैं। पहले की फिल्में सम्पूर्ण थाली समान होती है, जिसमें सब कुछ होता था : ड्रामा, कॉमेडी, जैसे दाल, चावल, सब्जी इत्यादि। लोग उसे देखने के लिए लालायित रहते थे। आज तो स्थिति ये है कि आपको टेकआउट में जो पसंद आया, वही लेते हैं। मैं चिकन लूँगा, राइस लूँगा, हो गया”।
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एक कलाकार कहाँ तक संभाल लेगा?
शायद उनका संकेत “सर्कस” जैसी फिल्मों एवं अपने ही सीरीज़ “पॉप कौन” की ओर था, जो हाल ही में प्रदर्शित हुई। बातों ही बातों में उन्होंने कलाकारों की लिमिट बताते हुए कहा,
“सर्कस को ही देख लीजिए, हमने जो काम की, हमारे पार्ट की तारीफ हुई। कुल मिलाकर फिल्म में कुछ गलतियाँ अवश्य रही होंगी जिसके कारण जनता को हमारा काम पसंद नहीं आया और फिल्म नहीं चली। लेकिन अगर मूल आधार ही गलत हो, तो एक हास्य कलाकार भला कहाँ तक और कब तक संभालेगा? परंतु इतना अवश्य जानता हूँ कि जनता हमारी तरफ आशातीत नेत्रों से देखती हैं, और उन्हे लगता है कि हम हर बार ऐसी ही परफ़ॉर्मेंस दें”।
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जनता के धैर्य की परीक्षा नहीं ले….
अब जॉनी लीवर गलत भी नहीं कह रहे। एक तो OTT का प्रादुर्भाव, ऊपर से कोविड के कारण नाना प्रकार के कॉन्टेन्ट तक ऑनलाइन एक्सेस की सुविधा से भारतीय जनता का टेस्ट काफी बदल चुका है। उन्हे दमदार कॉन्टेन्ट चाहिए, कॉमेडी में भी, और कॉमेडी के नाम पर वे कुछ भी नहीं स्वीकार करेंगे।
परंतु कुछ फिल्मकार आज भी इस बात को समझने से मना कर रहे हैं। इनका बस चले तो अनंत काल तक फिल्में बनाते रहेंगे, चाहे जनता इनके कारण फिल्म उद्योग, विशेषकर बॉलीवुड से ही मुंह क्यों न मोड़ लें। विश्वास नहीं होता तो साजिद कहा और फरहाद सामजी को ही देख लीजिए। ऑनस्क्रीन हो या ऑफस्क्रीन, इन्होंने दोनों प्रकार से जनता का शोषण किया। परंतु बॉलीवुड ने जाने कौन से जन्म का कर्जा खाया है जो इतना वाहियात कॉन्टेन्ट होने के बाद भी इन दोनों पर बॉलीवुडिया निर्माताओं की कृपा दृष्टि बनी हुई है।
कहीं न कहीं जॉनी लीवर का निशाना फरहाद सामजी जैसे लोगों की ओर भी था। यूं ही नहीं सोशल मीडिया पर “#RemoveFarhadfromHeraPheri” ट्रेंड कर रहा था.
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जिस प्रकार से अभी “किसी का भाई किसी का जान” के क्लिप्स देखने को मिल रहे हैं, उससे स्पष्ट होता है कि फरहाद की अगली फिल्म भी जनता के लिए टॉर्चर से कम न होंगी। परंतु ये तो कुछ भी नहीं है। जो आदमी कॉमेडी का सी भी न जाने, उसे “हेरा फेरी” सीरीज़ को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी गई है। अगर स्थिति यही बनी रही, तो आज जो कॉमेडी “फास्ट फूड” बनी हुई है, कल स्थिति ऐसी होंगी कि कॉमेडी का नाम सुनते ही लोग बगलें झाँकने लगेंगे।
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