Seth Chhaju Ram: सेवा परमो धर्म: अर्थात सेवा से उच्चतम कोई कार्य नहीं है। किसी का धनवान होना अपराध नहीं, परंतु आपके कर्म आपको जॉर्ज सोरोस या भामाशाह की श्रेणी से जोड़ते हैं। एक ऐसे भी धनपति थे, जो अंग्रेज़ों के विश्वासपात्र अवश्य थे, परंतु उससे अधिक वे देश को स्वतंत्र कराने वालों के प्रिय थे। भामाशाह से ये कुछ अलग ही स्तर पर प्रेरित थे।
इस लेख में सेठ छज्जु राम जाट (Seth Chhaju Ram) के बारे में पढ़िए, जो अनोखे किस्म के परमार्थी थे और जिनके प्रशंसकों में गांधी से लेकर भगत सिंह तक सम्मिलित थे।
सेठ छज्जुराम का बचपन
Seth Chhaju Ram का जन्म 27 नवंबर 1865 को आधुनिक जिला भिवानी, तहसील बवानीखेड़ा के अलखपुरा गाँव में लाम्बा गोत्र के जाट कुल परिवार में चौधरी सालिगराम जी के यहां हुआ था। बहुत कम लोग जानते हैं कि मल्लिका शेरावत इन्ही की वंशज हैं, जिनका मूल नाम रीमा लांबा था।
छज्जुराम का बचपन अभावों, संघर्षों और विपत्तियों में व्यतीत हुआ, लेकिन अपनी लगन, परिश्रम और दृढ़ निश्चय से वो सफलता के शिखर तक पहुंचे। सेठ छज्जूराम के साथ बचपन में एक ऐसी घटना हुई, जिसका प्रभाव आयु पर्यंत उन पर रहा।
एक समय किसी विक्रेता से इन्होंने एक छाता उधार लिया था, जो उस समय 1 रुपये का मिलता था। परंतु जिस मार्ग से उन्हे अपने विद्यालय जाना था, उसी मार्ग में वह दुकान भी पड़ती थी और मारे लज्जा के उन्होंने उस मार्ग से ही जाना बंद कर दिया। वे तब तक उस मार्ग से नहीं निकले, जब तक उस छाते का मूल्य चुका नहीं दिया, और यहीं से छज्जूराम के मन में उद्यमिता उत्पन्न हुई।
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स्वावलंबन अब Seth Chhaju Ram के रग-रग में बस चुका था। गाँव से ग्यारह किलोमीटर दूर बवानीखेड़ा के प्राइमरी स्कूल में पैदल पढ़ने जाते थे। परन्तु जैसा कि होनहार बिरवान के होत चिकने पात, ऐसे ही उन्होंने इस चुनौती को न केवल पार किया, अपितु जब पांचवीं कक्षा का बोर्ड का परिणाम आया तो न केवल अपनी परीक्षा में प्रथम अपितु प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए। मिडल शिक्षा भिवानी से पास करने के बाद उन्होंने रेवाड़ी से मैट्रिक की परीक्षा पास की।
इन्होंने मैट्रिक संस्कृत, अंग्रेजी, महाजनी, हिंदी, उर्दू और गणित विषयों से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। इस दौरान अपनी पढाई और स्वंय का खर्च चलाने हेतु यह दूसरे बच्चों को ट्यूशन भी देते रहे। इसी सिलसिले में एक बंगाली इंजीनियर एस. एन. रॉय के बच्चों को एक रूपये प्रति माह के हिसाब से ट्यूशन पढ़ाने लग गए।
जब कलकत्ता पहुंचे सेठ छज्जुराम
जब रॉय साहब कलकत्ता चले गए तो छज्जूराम को भी उन्होंने कलकत्ता बुला लिया। पैसे के अभाव में वो कलकत्ता नहीं जा सकते थे, लेकिन फिर भी जैसे-तैसे करके उन्होंने किराये का जुगाड़ किया और कलकत्ता चले गए। Seth Chhaju Ram ने वहां भी उसी प्रकार बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। यहाँ पर उनको छ: रु. प्रति माह मिलते थे।
अब यहाँ भी छज्जूराम को कड़ा संघर्ष झेलना पड़ा, परंतु उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने भिवानी के एक सेठ रायबहादुर नरसिंह दास से मुलाकात की तथा घर जाने के लिए किराया उधार माँगा।
नरसिंह दास ने उन्हें हौंसला दिया और कलकत्ता में ही रहकर संघर्ष करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि कलकत्ता ऐसा शहर है, जहाँ न जाने कितने ही लोग खाली हाथ आये और अपनी मेहनत और संघर्ष की बदौलत बादशाह बन गए। अगर नरसिंह के इस विचार को न सुने होते, तो छज्जूराम करोड़ों भारतीयों की भांति एक गुमनाम जीवन जिए होते।
अब कलकत्ता में उन्होंने अपना भाग्य आजमाने का निर्णय लिया। उस समय कलकत्ता के मारवाड़ी सेठों के पास ऐसे लोगों की कमी थी, जो योग्य होने के साथ साथ ब्रिटिश प्रशासन से उन्ही की भाषा में बात कर सकें। परंतु Seth Chhaju Ram शिक्षित भी थे और बहुभाषीय भी, और यही कला उनके बहुत काम आई।
कुछ समय में इन्होंने बारदाना (पुरानी बोरियों) का व्यापार शुरू कर दिया, और यही व्यापार उनके लिए वरदान साबित हुआ और उनको “जूट-किंग” बना दिया। धीरे-धीरे कलकत्ता में उन्होंने शेयर भी खरीदने शुरू कर दिए।
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एक समय आया जब वो कलकत्ता की 24 बड़ी विदेशी कम्पनियो के शेयरहोल्डर थे और कुछ समय बाद 12 कम्पनियो के निदेशक भी बन गए, उस समय इन कम्पनियो से 16 लाख रूपये प्रति माह लाभांश प्राप्त हो रहा था और सेठ जी उस जमाने के कलकत्ता के सबसे बड़े शेयरहोल्डर्स में से एक थे।
उच्चकोटि के देशभक्त थे सेठ छज्जुराम
सेठ छज्जुराम (Seth Chhaju Ram) की दान देने की क्षमता का कोई मुकाबला नहीं था। दानवीर होने के साथ-साथ वो देशप्रेमी और भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए भी थे। कलकत्ता में रविंद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन से लेकर लाहौर के डी. ए. वी. कॉलेज तक कोई ऐसी संस्था नहीं थी, जहाँ पर उन्होंने दान न दिया हो।
परंतु क्या आपको पता है कि जितना ही सेठ छज्जूराम दान-दाता थे, उतने ही उच्चकोटि के देशभक्त भी थे। उनकी आँखों में भी भारत की स्वतंत्रता का सपना था। वो भी भारत को स्वतंत्र देखना चाहते थे। दिसंबर 1928 में लाला लाजपत राय की हत्या में सम्मिलित ब्रिटिश अफसरों में से एक एएसपी जॉन सैंडर्स को भगत सिंह और उनके साथियों ने मार गिराया तो ब्रिटिश प्रशासन में हड़कंप मच गया।
अब पुलिस ने हर तरफ से घेराबंदी कर दी, परंतु उनकी आँखों में धूल झोंकते हुए भगत सिंह, राजगुरु और चंद्रशेखर आज़ाद 19 दिसंबर की सुबह लाहौर से सफलतापूर्वक निकल लिए, जिसमें भगवती चरण वोहरा की पत्नी दुर्गावती वोहरा भी शामिल थी। इन सभी को सेठ छज्जूराम ने शरण दी, और कलकत्ता में सेठ छज्जूराम एवं उनकी धर्मपत्नी वीरांगना लक्ष्मी देवी जी ने उनका स्वागत किया।
यहाँ भगत सिंह लगभग ढाई महीने तक रहे, जिसकी कि उस समय कल्पना करना भी संभव नहीं था, लेकिन सेठ जी के देशप्रेम के कारण यह सम्भव हो पाया। उन्होंने देश की स्वतंत्रता में सबसे भारी आर्थिक सहयोग दिया। वे कहा करते थे कि देश को आज़ाद करवाने में चाहे उनकी पूरी सम्पति लग जाए, लेकिन देश आज़ाद होना चाहिए।
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परंतु भगत सिंह अकेले नहीं थे, पंडित मोतीलाल नेहरू, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, समेत न जाने कितने ही नेताओं और क्रांतिकारियों को देश की आज़ादी के लिए भारी चंदा दिया। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जब जर्मनी जा रहे थे तो उन्होंने भी चौधरी छज्जूराम जी से आर्थिक सहायता ली थी।
सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी चौधरी छाजूराम जी (Seth Chhaju Ram) ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी। बाल-विवाह व् अशिक्षा के वो घोर विरोधी थे। परंतु अल्पायु में उनके पुत्र सज्जन कुमार की मृत्यु ने सेठजी को हिलाकर रख दिया था।
वे इस दुख से कभी उबर नहीं पाए, और स्वतंत्र भारत का अनुभव किये बिना 7 अप्रैल 1943 को वे इस संसार से विदा हो गए। जितना बलिदान हमारे क्रांतिकारियों एवं अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने दिया, उतना ही सेठ छज्जूराम जैसे “आधुनिक भामाशाह” ने भी दिया। परंतु कुछ वामपंथियों की कुंठा में इन दानवीरों को इतिहास के एक कोने तक ही समेट कर रख दिया गया।
Source:
Revolutionaries : The Other Story of how India won its Freedom by Sanjeev Sanyal
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