किसी फिल्म का भाग्य तय करने में दो चीजें महत्त्वपूर्ण होती हैं। एक होता है फिल्म का कंटेन्ट और दूसरा होता है बॉक्स ऑफिस के फिगर्स। परंतु एक और वस्तु होती है, जिसे कोई माने न माने, पर किसी फिल्म की कुंडली रचने में इसका रोल भी अहम होता है: फिल्म रिव्यू। फिल्म चले न चले, पर रिव्यू भी अपना प्रभाव डालते हैं और “भोला” को यहाँ शायद निराशा हाथ लगे।
आपको यह सुनकर लग रहा होगा, क्या बेतुका तर्क है? कितनी अक्रमिक और अविचारित कथन हैं परंतु धार्य बनये रखिएगा क्योंकि यही सत्य है और इस सत्य के पीछे कई निमित्त हैं।
इस लेख हम आपको साझा कि आखिर किन कारणों से “भोला” के प्रदर्शन पर उसका स्वागत “नकारात्मक रिव्यूज” से किया जाएगा। तो अविलंब आरंभ करते हैं।
कुछ ही दिनों बाद 6 मार्च को “भोला” का आधिकारिक ट्रेलर आपके समक्ष प्रस्तुत होगा। और यदि इसके बारे में बुरा सुनने को मिले, तो चकित मत होइएगा क्योंकि इसका एकमात्र कारण अजय देवगन का कई लोगों की आँखों में शूल की भांति चुभते रहना है और अजय देवगन की असफलता में ही ऐसे आत्ममुग्ध लोगों की विजय है।
और पढ़ें: “दृश्यम में अजय देवगन महिला विरोधी हैं”, वामपंथियों की अपनी अलग ही ‘दृश्यम’ चल रही है
परंतु प्रश्न अभी भी व्याव्त हैं। ये कौन लोग हैं जो ये अजय देवगन की आने वाली बहुचर्चित फिल्म “भोला” को उलाहने देंगे, आइए इनकी सूची पर एक दृष्टि डालें
1) सनातन धर्म से घृणा करने वाले:
देखिए और कुछ हो न हो, परंतु “भोला” के विरुद्ध सबसे पहले मोर्चा खोलने में सनातन विरोधी तत्व ही समिलित होंगे। इसके दो कारण है: अजय देवगन का अनन्य शिव भक्त होना, एवं कई फिल्मों में उनका भोलेनाथ एवं सनातन धर्म के प्रति आसक्ति। बहुत ज़्यादा नहीं, “भोला” के इस संवाद “आज नहीं, आज मौत महाकाल को चढ़ाकर आया हूँ” से ये लोग कितना ईर्ष्या में धधक रहे होंगे ये पूछे हि मत।
परंतु आपको क्या लगता है, ये अभी का नया रचाया खेल है। जी नहीं महोदय, ये घृणा बहुत पुरानी हैं पर इनकी घृणा स्पष्ट तौर पर तब सामने आई, जब “शिवाय” सिनेमा घरो में आय था । इन लोगों कि ईर्षा तो तब् प्रकट हो सपाट रूप से प्रत्यक्ष हुइ जब इन्होने अजय देवगन की शिवाय की आलोचना इसलिये नहीं की क्योन्की उनकी फिल्म बुरी थी, या वे अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे पाये, अपितु इस बात पर कि उन्होंने भगवान शिव को इतना बढ़ा चढ़ाकर क्यों दिखाया? वह अलग बात है कि आज भी इस फिल्म का गीत “बोलो हर-हर हर” हर वर्ग में लोकप्रिय है और इस फिल्म के इफ़ेक्ट्स हेतु “शिवाय” को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
और पढ़ें: “हिंदुओं की बात जो करते हैं…” बागेश्वर धाम सरकार के पीछे वामपंथी गैंग हाथ धोकर पड़ा है
2) “पठान” प्रेमी क्रिटिक्स:
जब से “पठान” प्रदर्शित हुई है, तब से इन लोगों की मानसिकता जगज़ाहिर है। इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि बॉलीवुड ऐसी ही गुटबाज़ी के लिए कुख्यात है। परंतु इसी भांति क्रिटिक्स की भी एक लॉबी है, जो ये तय करती है कि कौन-सा स्टार प्रशंसा के योग्य है और कौन नहीं। समय-समय पर इनकी प्राथमिकता और पैमाने बदलते हैं, परंतु जो नहीं बदलता है, वह है कुछ अभिनेताओं के प्रति इनकी विशेष घृणा और अजय देवगन भी उन्ही में से एक है।
3) मोदी विरोधी लॉबी:
एक ये भी बिरादरी है, जो अजय देवगन के “भोला” के प्रदर्शित होने पर सबसे अधिक आग उगलेगी। ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि अजय देवगन पीएम मोदी के विरुद्ध विष नहीं उगलते, अपितु देश की अखंडता पर प्रश्न उठाने वालों को मुंहतोड़ जवाब देते हैं। चाहे पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम करने के स्थान पर राष्ट्रवाद को सर्वोपरि रखना हो, या फिर CAA का विरोध के नाम पर अराजकता फैलाने वालों का विरोध करना हो, याकि हिंदी भाषा की मर्यादा पे प्रश्न उठाने वाले को उत्तर देना हो अजय देवगन ने सदैव देश को जोड़ने वालों का समर्थन किया है, देश तोड़ने वालों का नहीं।
और पढ़ें: अजय देवगन से पहले इन दो अभिनेताओं को ऑफर की गई थी फिल्म दृश्यम, अच्छा किया ठुकरा दिया
4) ओरिजिनल इज OG का विलाप करने वाले:
अब कोई और इस विषय पर रोए न रोए, परंतु एक मंडली अवश्य रोना रोएगी, “ओरिजिनल वास बेटर” ! अगर मूल उत्पाद को बेहतर तरीके से हिन्दी सिनेमा में रूपांतरित किया जाए, तो क्या बुरा है? पर नहीं, ऐसे लोगों का एक ही “मूल मंत्र” है: कुछ भी करने का, ओरिजिनल का ईगो हर्ट नहीं करने का।
ऐसे लोग जानते हैं कि अन्य अभिनेताओं की भांति अजय देवगन न केवल मौलिक, अपितु रीमेक फिल्म बनाने में भी निपुण है। ये लोग अभी तक इस कुण्ठा से नहीं उबर पाए हैं कि कोई व्यक्ति “सिंघम” और “दृश्यम” का रीमके कर उसके मूल वर्जन को अपने अभिनय और प्रस्तुति के आन्धि से कन्हि दूर फ़ेक् देता है कि लोग मूल सिनेमा को मानो भूल जाते हैं । परंतु इनकी समझ्दरि कहानी को बेहतर प्रस्तॊति देने और सम्झने में नहि परन्तु अपने हि आलाप विलाप् का प्रदर्शन करने में होता है और हान इनके अध्याहार के क्या कहने . लोग सुन के आप ही दुविधा में पड़ जाये कि इन्पर हंसें या रोएँ:
पर घबराईये मै उनके तर्क आपको पहले ही सुनाते चलता हूं क्योंकि इनकी अकारण विलाप आपको भी कुंठित भावनाओं से ना कहीं भरदे। तो इनके कुछ बेतूके तर्कें की सूची
पर घबृये मत हं उनके तर्क आपको पःलेर हि सुनते चलते है क्योन्की इनक अकारन विलाप आपको भी कुन्थिक वभ्नो से न भर दे । विलाप के कथन हैं:-
“अरे, वह इसलिए हिट हुई क्योंकि ओरिजिनल का हिन्दी डब नहीं आया था”
“अरे, वह इसलिए हिट हुई क्योंकि ओरिजिनल को उतनी कवरेज नहीं मिली थी”
“अरे, फलाने सुपरस्टार को चुनौती देने का सामर्थ्य भी है उसमें?”
वाह बन्धु वाह! आपका तर्क सराखोन पर। पर हा इस उदास दुनिय में अपना हास्यपद तर्क देने क लिये बहुत-बहुत आभार ।
और पढ़ें: अजय देवगन की ‘रेनकोट’ भारत की सबसे अंडररेटेड फिल्मों में से एक क्यों है?
इन सब बातों के विवादों के बीच अब देखने की बात यह होंगी कि अगर “भोला” सफल हो जाती हैं, जिसके आसार भी प्रबल हैं, तो फिर इन लोगों के पास इस फिल्म को नीचा दिखाने के लिए कौन से नए पैंतरे उपलब्ध होंगे? परन्तु इतना तो निश्चयात्मक है कि इस फिल्म को नीचा दिखाने में ये लोग कोई प्रयास अधूरा नहीं च्होरेङ्गे लेकिन इसमे मजे कि बात ये है कि और बहुत कम हि बार ही ऐसा हुआ है कि ऐसे सुनियोजित षड्यन्त्र के समक्ष अजय देवगन की फिल्म असफल हुई हो। धैर्य से बातों को समझने के लिए आपका बहुत- बहुत धन्यावाद।
और पढ़ें: पिछले 5 वर्षों में 14 फिल्में और 10 हिट, बॉक्स ऑफिस पर ‘भौकाल’ मचा रहे हैं अजय देवगन
TFI का समर्थन करें:
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।