आज के परिवेश में परिवार के टूटने का विषय सामान्य हो गया है। हर कोई अपनी स्वार्थ में ढूबा, एक दूसरे को प्रताड़ित करने में लगे हैं और नैतिकता मानिए कहीं दूरा दूरांचल में खो गई है। इन सब घटनाओं में बुजुर्ग माता और पिता को भी इस दुष्चक्र का भुक्तभोगी होना पड़ रहा है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए कलकत्ता हाइकोर्ट एक बड़ा निर्णय लिया है।
आम तौर पर भारतीय कानूनों को “फेमिनिस्ट” समर्थक माना जाता है, और कई अवसरों पर पुरुष विरोधी भी। परंतु इस बार कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक अलग दांव खेला है।
एक डाइवोर्स संबंधी मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट की उक्त पीठ ने अपने निर्णय में ये भी कहा कि पुरुष को इस आधार पर डाइवोर्स लेने का अधिकार है, यदि कोई स्त्री उसे अपने परिवार से दूर करे।
जी हाँ, जिन “समाजसेवियों” को लगता है कि घर तोड़ने में ही प्रगति है, उन्हे कलकत्ता हाईकोर्ट के इस निर्णय ने दर्पण दिखाया है।
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