यद्यपि ओटीटी प्लेटफार्मों ने कोविड की महामारी के समय हमें मनोरंजन के परिप्रेक्ष्य में काफी राहत पहुंचाने का प्रयास किया है, परंतु वे ऐसे सुविधाजनक डंपिंग ग्राउंड भी बन गए हैं उन फिल्मों हेतु, जो मनोरंजन तो छोड़िए, देखने योग्य भी नहीं है। अभी हम दृष्टि डालते हैं उन दस फिल्मों पे, जिन्हे OTT तो छोड़िए, किसी भी मंच पर स्थान नहीं मिलना चाहिए।
1) Mrs. Serial Killer [2020]:
दिलचस्प आधार वाली एक सस्पेंस थ्रिलर लेकिन ख़राब ढंग से निष्पादित। जैकलीन फर्नांडीज के अतिरंजित प्रदर्शन और पूर्वानुमानित कहानी ने इसे एक कठिन घड़ी बना दिया। और हम ये कैसे भूल सकते हैं कि इसके कर्ता धर्ता श्रीमान शिरीष कुन्दर थे, हाँ हाँ वही जोकर वाले!
2) Gulaabo Sitaabo [2020]:
आप एक उबाऊ व्यंग्य कैसे रच पाते हैं? इसका उत्तर शूजीत सरकार के पास है। किसने सोचा था कि “यहाँ”, “विक्की डोनर”, “पीकू” जैसी दिलचस्प फिल्मों के लिए जाने जाने वाले, अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना जैसे दिग्गजों के बावजूद “गुलाबो सीताबो” के साथ अपने दर्शकों को पकाने करने में कामयाब होंगे?
3) Sadak 2 [2020]:
यार, मैं कहाँ से शुरू करूँ? 1991 की फिल्म “सड़क” की अगली कड़ी के रूप में बनाई गई इस फिल्म ने कई मोर्चों पर निराश किया। अजीब कथानक, ख़राब चरित्र-चित्रण और कमज़ोर प्रदर्शन ने इसे IMDb पर सबसे कम रेटिंग वाली बॉलीवुड फिल्मों में से एक बना दिया। शायद इसी ने संभवतः YouTube को DISLIKE बटन को पूरी तरह से निष्क्रिय करने के लिए मजबूर किया।
4) Laxmii [2020]:
क्या आप अपनी फिल्म का इतना घटिया रीमेक बनाने की कल्पना कर सकते हैं कि उसकी एक झलक पे एलियन्स को भी दस्त होने लगें? शायद आप राघव लॉरेंस से नहीं मिले फिर। अक्षय कुमार अभिनीत इस फिल्म का उद्देश्य एक सामाजिक संदेश देना था, लेकिन यह रूढ़िवादिता और असंगत कहानी का केंद्र बनकर रह गई। इसके अतिरंजित प्रदर्शन और किन्नरों के प्रॉब्लमैटिक चित्रण की भी व्यापक रूप से आलोचना की गई। अगर शरद केलकर का छोटा लेकिन सम्मोहक प्रदर्शन नहीं होता, तो यह फिल्म ओटीटी मानकों के हिसाब से भी पूरी तरह बेकार हो जाती।
5) Coolie No. 1 [2020]:
यदि महेश भट्ट और राघव लॉरेंस अपनी ही रचनाओं को बर्बाद कर सकते हैं, तो डेविड धवन ने सोचा, “हम क्यों पीछे रहें?” 90 के दशक की हिट का यह रीमेक एक श्रद्धांजलि कम और कॉमेडी पर हमला अधिक था। फीका प्रदर्शन और बासी व्यंग्य के साथ, वरुण धवन और सारा अली खान अभिनीत यह फिल्म उस मनोरंजन पैकेज से बहुत दूर थी जिसका उसने वादा किया था।
6) Radhe [2021]:
क्या आप जानते हैं कि कोविड की दूसरी लहर से ज्यादा घातक क्या था? यह सलमान खान अभिनीत फिल्म “राधे” थी, जिसके कारण सलमान खान के करियर में ऐसी गिरावट आई, जिससे वह अभी तक उबर नहीं पाए हैं। यह फिल्म, जिसमें सलमान खान मुख्य भूमिका में थे, और “वांटेड” में उनके अपने चरित्र को ट्रिब्यूट थी, परंतु ये इतनी अझेल थी कि इसके बारे में जितनी निंदा की जाए, कम है।
7) Bhuj: The Pride of India [2021]:
किसने सोचा होगा कि वही व्यक्ति, जिसने “तानाजी: द अनसंग वॉरियर” के माध्यम से मराठों की वीरता को एक अद्भुत श्रद्धांजलि अर्पित की, वह ऐसी तबाही मचाएगा कि वह भी अपने व्यक्तिगत संग्रह में शामिल करने में संकोच करेगा? लेकिन अजय देवगन “भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया” के साथ यही हासिल करने में कामयाब रहे। 1971 के भारत पाक युद्ध पर आधारित और अभिषेक दुधैया द्वारा निर्देशित, फिल्म को “बॉर्डर” की विरासत का एक वैध उत्तराधिकारी माना जा रहा था। परंतु हुआ ठीक उल्टा। मजे की बात, इस फिल्म के संवाद और गीत मनोज मुंतशिर शुक्ला ने लिखे थे, बस बता रहे हैं?
8) Gehraiyaan [2022]:
प्रतिस्पर्धा तो लोग अच्छे उत्पादों एवं फिल्मों से करते हैं, परंतु शकुन बत्रा और धर्मा प्रोडक्शन्स अलग ही मिट्टी के बने हैं। सिद्धांत चतुवेर्दी, दीपिका पादुकोण, अनन्या पांडे और धैर्य करवा अभिनीत “गहराइयाँ” ऐसी ही एक फिल्म हैं। आधुनिक दौर में मानवीय रिश्तों पर आधारित यह फिल्म न तो विचारोत्तेजक थी और न ही दिलचस्प। इसने न केवल उन मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों का मज़ाक उड़ाया, जिन्हें उजागर करने का प्रयास किया गया, बल्कि इसके समाधान के रूप में व्यभिचार की भी वकालत की गई। बस यही देखना बाकी था!
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9) Gaslight [2023]:
“ज़रा हटके ज़रा बचके” की सफलता से पूर्व सारा अली खान का फिल्मी करियर काफी खस्ता रहा था, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण “गैसलाइट” में देखने को मिलता है। डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई इस फिल्म में एक लकवाग्रस्त लड़की का चित्रण किया गया है, जो अपने लापता पिता के जटिल मामले का पटाक्षेप चाहती है। एक आशाजनक थ्रिलर की क्षमता के बावजूद, अगर फिल्म आपको विक्रांत मैसी जैसे अभिनेताओं को भी अपना सिर खुजलाते हुए दिखाती है, तो आप अच्छी तरह से समझ सकते हैं कि “गैसलाइट” कैसी बनी होगी।
10) Tiku weds Sheru [2023]:
यदि “धाकड़” ने कंगना रनौत के प्रभावी करियर पर कालिख पोती, तो इनके प्रोडक्शन पहली फिल्म “टीकू वेड्स शेरू” केवल यह साबित करने के लिए आई कि वह एक अच्छी अभिनेत्री हो सकती हैं, लेकिन निश्चित रूप से सभी ट्रेडों में माहिर नहीं हैं। फिल्म शुरू से ही विवादास्पद थी, जिसमें नवाजुद्दीन सिद्दीकी और अवनीत कौर की गलत कास्टिंग को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। बाकी फ़िल्म के लिए, जितना कम कहा जाए, उतना ही अच्छा!
ओटीटी प्लेटफार्मों ने फिल्म देखने के अनुभव को लोकतांत्रिक बना दिया है, परंतु इनके आगमन को घटिया सामग्री के लिए खुले निमंत्रण का संकेत नहीं देना चाहिए। दर्शक के रूप में, हम ऐसी फिल्मों के हकदार हैं जो सोच-समझकर तैयार की गई हों, अच्छी तरह से निष्पादित हों और हमारे समय के लायक हों, भले ही उनका प्रीमियर किसी भी मंच पर हो। सीधे शब्दों में कहें तो, ओटीटी प्लेटफार्मों को अरुचिकर सिनेमा की बंजर भूमि में न बदलें।
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