जाने किस घड़ी में बराक ओबामा ने भारत पर उंगली उठाने का निर्णय लिया। भारत पर ओबामा की अनुचित टिप्पणियों पर भारत से तीखी प्रतिक्रिया आनी स्वाभाविक थी। परंतु जो किसी ने भी नहीं सोचा, स्वयं ओबामा ने भी नहीं, वह था अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के पूर्व अध्यक्ष द्वारा इनकी निंदा।
इस लेख में, आइए उस आलोचना पर प्रकाश डालें जो ओबामा को भारत के खिलाफ अपने तीखे रवैये के लिए झेलनी पड़ रही है, और मूर के परिप्रेक्ष्य और भारत की विविधता को एक ताकत के रूप में पहचानने के महत्व पर प्रकाश डालें।
किसी ने नहीं पूछा, खुद ही बाँचने लगे ज्ञान
ओबामा ने वही बोला, जो किसी ने उससे नहीं पूछा, पर जिसके लिए वामपंथी बहुत लालायित थे : भारत को धर्मनिरपेक्षता पर ज्ञान। बराक ओबामा को USCIRF के पूर्व कमिशनर जॉनी मूर की सलाह सीधी है – “अपने गिरेबान में भी झांक ले।” मूर का मानना है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति को भारत की आलोचना करने के बजाय देश की विविधता और ताकत को स्वीकार करना चाहिए और उसकी सराहना करनी चाहिए। वह इस बात पर जोर देते हैं कि भारत किसी भी राष्ट्र की तरह, परिपूर्ण नहीं है, परंतु इसकी विविधता इसे अलग करती है और इसका उत्सव मनाया जाना चाहिए।
मूर ने भारत की अद्वितीय विविधता पर प्रकाश डालते हुए इसे मानव इतिहास का सबसे विविधतापूर्ण देश बताया। अपने विशाल धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं के साथ, भारत विविधता के मिश्रण का प्रतिनिधित्व करता है। यह विविधता न केवल राष्ट्र के सांस्कृतिक ताने-बाने को समृद्ध करती है बल्कि इसके लचीलेपन और अनुकूलनशीलता में भी योगदान देती है।
#WATCH | Reacting to former US President Barack Obama's remarks about the rights of Indian Muslims, Johnnie Moore, former Commissioner of US Commission on International Religious Freedom, says, "I think the former president (Barack Obama) should spend his energy complimenting… pic.twitter.com/227e1p17Ll
— ANI (@ANI) June 26, 2023
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जिन्हे न ज्ञात हो, तो मूर का यह बयान सीएनएन के क्रिस्टियन अमनपौर के साथ एक साक्षात्कार के दौरान ओबामा की विवादास्पद टिप्पणियों के पश्चात प्रारंभ हुए। राष्ट्रों के बीच रचनात्मक जुड़ाव और सम्मानजनक बातचीत सुनिश्चित करने के लिए बयानों के समय और संदर्भ पर विचार करना आवश्यक है। मूर का दृष्टिकोण द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक जुड़ाव और सार्थक बातचीत को प्रोत्साहित करता है।
“सार्वजनिक खिंचाई में कोई भलाई नहीं!”
पूर्व आयुक्त का यह भी सुझाव है कि भारत जैसे दोस्तों के साथ, सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के बजाय निजी तौर पर चिंताओं को संबोधित करना अधिक विवेकपूर्ण है। मूर अच्छी भू-राजनीति के महत्व और वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ एकजुट मोर्चा पेश करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। संचार और निजी संवाद के खुले चैनलों को बढ़ावा देकर, राष्ट्र चुनौतियों और चिंताओं को दूर करने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं।
जॉनी मूर ओबामा की इस भावना से असहमत हैं कि भारत लोकतान्त्रिक संकट का सामना कर रहा है। उनका मानना है कि यह वास्तव में लोकतंत्र की नई सुबह है। भारत की मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाएं, जीवंत नागरिक समाज और सक्रिय नागरिक भागीदारी लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति देश की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। मूर की असहमति भारत की प्रगति और क्षमता को पहचानने की आवश्यकता को रेखांकित करती है, खासकर वैश्विक चुनौतियों के सामने।
आत्मवलोकन के लिए अवसर
हालांकि ये सोचना तनिक हास्यास्पद है, परंतु ओबामा की टिप्पणियों की आलोचना आत्मनिरीक्षण के अवसर के रूप में कार्य करती है। यदि अमेरिकी भी आपके विचारों से सहमत न हो, तो ऐसी आलोचना के आधार और इसके संभावित परिणामों का पुनर्मूल्यांकन करना आवश्यक हो जाता है। ओबामा को मूर की सलाह आपसी सम्मान और समझ के आधार पर मजबूत अंतरराष्ट्रीय साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए आत्म-चिंतन और आख्यानों के पुनर्मूल्यांकन को प्रोत्साहित करती है।
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जॉनी मूर की बराक ओबामा को भारत की आलोचना करने के बजाय उसकी सराहना करने पर ध्यान देने की सलाह भारतीय भू-राजनीति पर एक नया दृष्टिकोण पेश करती है। भारत की विविधता को एक ताकत के रूप में पहचानना और एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में इसका समर्थन करना मजबूत गठबंधनों को बढ़ावा दे सकता है और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा दे सकता है। चिंताओं को दूर करने के लिए रचनात्मक बातचीत में शामिल होते हुए राष्ट्रों की प्रगति और विविधता का जश्न मनाना आवश्यक है।
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