ग़दर २ से ये व्यवसायिक सीख नहीं ली तो फिर क्या सीखा?

इस गाइड की सर्वाधिक आवश्यकता है बॉलीवुड को!

ग़दर २: ४५० करोड़ से अधिक का ग्रॉस डोमेस्टिक कलेक्शन!

५०० करोड़ से अधिक का ग्रॉस वर्ल्डवाइड कलेक्शन!

भई ग़दर २ ने तो सच में गदर मचा रखी है! ऐसी तबाही विगत कुछ वर्षों में बॉक्स ऑफिस पर, विशेषकर बॉलीवुड उद्योग में विरले ही देखने को मिली थी. पर जब तारा पाजी और हैंडपम्प हो साथ, तो फिर चिंता की क्या बात?

ग़दर २ ने न केवल ग़दर की यादें ताज़ा की, अपितु वह वस्तु भी प्रदान की, जिसके लिए दर्शक और डिस्ट्रीब्यूटर कई वर्षों से तरस रहे थे: विशुद्ध मनोरंजन! परन्तु कथा तो यहाँ से प्रारम्भ होती है, क्योंकि बात केवल बॉक्स ऑफिस आंकड़ों तक सीमित नहीं है!

सभी को हमारा नमस्कार, और आज हम जानेंगे कुछ ऐसे अनोखे कॉर्पोरेट सीख, जो ग़दर २ ने दी है, और जिन्हे भारतीय फ़िल्मकारों, विशेषकर बॉलीवुड वालों को अविलम्ब आत्मसात करना चाहिए:

1)     एज इज जस्ट अ नंबर!

“अरे क्या प्राप्त कर लेंगे सनी देओल?”

“अब तो इन्हे रिटायर हो जाना चाहिए!”

ऐसे न जाने कितने संवाद ग़दर २ के रिलीज़ से पूर्व सन्नी पाजी को सुनने पड़े होंगे. स्वाभाविक भी है, जिसे एक सिम्पल हिट मिले १२ वर्ष हो गए हों, उसकी वापसी पर सब आशातीत नेत्रों से कतई न देखने वाले!

परन्तु पहले “चुप” में अपने परफॉर्मेंस से, और फिर “ग़दर २” के माध्यम से सन्नी देओल ने सिद्ध कर दिया कि उन्हें न आयु बाँध सकती है, न कोई गुटबाज़ी! जब “जेलर” से रजनीकांत वापसी कर सकते हैं, जब “विक्रम” में कमल हासन अपना सामर्थ्य दिखा सकते हैं, तो फिर अपने तारा सिंह को कौन रोक सकता है?

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2)     रिस्पेक्ट योर प्रोडक्ट!

एक और चीज़, जो ग़दर २ से सीखने योग्य है, वह है अपने उत्पाद के प्रति सम्मान! अब सीक्वेल से बॉलीवुड अनभिज्ञ नहीं. उलटे सीक्वेल का इतना दुरूपयोग किया गया, जितना तो हॉलीवुड “फ़ास्ट एन्ड फ्यूरियस” के साथ नहीं की होगी!

परन्तु ग़दर २ के रचयिताओं ने ऐसी कोई हड़बड़ी नहीं दिखाई! सनी देओल स्वयं सशंकित थे, और स्वयं अनिल शर्मा की माने तो अनेक स्क्रिप्ट रिजेक्ट किये गए थे. परन्तु २२ साल ग़दर का जो सीक्वेल आया, तो उसने सिद्ध किया कि अगर आपके प्रोडक्ट में दम है, तो अंत में केवल उसका परिणाम मायने रखता है. समय, निवेश जैसी बातें फिर निरर्थक होती है!

3)     फर्जी का खर्चा नहीं:

फिल्म उद्योग को कॉर्पोरेट दिग्गजों को अगर ग़दर २ से कुछ सीखना ही है, तो वह ये कि मनोरंजक उत्पाद के लिए आपको आवश्यक नहीं कि पानी की तरह पैसा बहाना पड़े! कुछ करण  जौहर जैसे लोग हैं, जो जब तक फिल्म पे मिनिमम १५० करोड़ न फूँक दे, उन्हें अपनी फिल्म फिल्म ही नहीं लगती! इस मामले में “ब्रह्मास्त्र” से बढ़िया कोई उदहारण क्या हो सकता है?

“रॉकी और रानी की प्रेम कहानी”, “किसी का भाई किसी की जान!”, क्योंकि इनपे जितना धन फूँका गया, उसके आधे का भी मनोरंजन नहीं मिला. अभी तो हमने “आदिपुरुष” एवं “पठान” जैसे अल्ट्रा लीजेंड्स पर चर्चा भी प्रारम्भ नहीं की है!

इनकी तुलना में ग़दर २ का बजट ८० करोड़ है, जो “सत्यप्रेम की कथा” से कुछ १०-२० करोड़ अधिक, “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी” एवं “किसी का भाई, किसी की जान के आधे से भी कम में बनी थी! ये अजय देवगन की “भोला” से भी २० करोड़ रुपये सस्ती है!

4)     अपने ग्राहक को पहचानो!:

ये बात मार्केटिंग के सबसे मूलभूत सिद्धांतों में गिनी जाती है, कि ग्राहक आपके लिए देवता समान है! इसी बात को अगर १० प्रतिशत भी हमारे भारतीय फिल्मकार, विशेषकर बॉलीवुड वाले आत्मसात कर लें, तो पूरे भारतीय फिल्म उद्योग का उद्धार हो जायेगा!  अगर जनता ट्रकों में, SUV में, यहाँ तक कि बुलडोज़रों में भर भरके सिनेमाघर आ रही है, तो समझ जाइये कि आपके फिल्म में कुछ तो बात है!

यही बात शायद अनिल शर्मा और Zee Studios ने बहुत पूर्व समझ ली थी! वे जानते थे कि उनका लक्ष्य केवल ५ से ६ शहरों में अपना प्रभाव बढ़ाना नहीं है, अपितु अपने उत्पाद को देश के कोने कोने तक पहुंचाना है. वैसे ग़दर २ को दक्षिण भारत में अधिक शो नहीं मिले, परन्तु जितने भी मिले, उनमें भी इस फिल्म ने अपना सिक्का जमाया! गदर २ का एवरेज टिकट प्राइस २५० रुपये से भी कम था, परन्तु जो फुटफॉल्स वह जेनरेट कर रहा है, उसमें वह “दंगल” और “पठान” के रचनाकारों के रातों की नींदें भी उड़ा रहा है!

5)     USP को बचाकर रखिये!

हर उत्पाद का एक USP होता है, जिससे उसका फ़ाइनल इम्पैक्ट दमदार सिद्ध होता है, और जिसकी कोई नकल नहीं कर सकता! जिसने भी ग़दर २ में हैण्डपम्प वाले दृश्य को यथावत रखने का निर्णय लिया, उसे हमारा साष्टांग प्रणाम! अब या तो ट्रेलर के प्रति रचनाकारों की सोच ही अनोखी थी, या फिर उसे ढंग से सम्पादित नहीं किया गया. परन्तु जो भी बात हो, उसके कारण जिन्हे गदर २ से अधिक आशाएं नहीं थी, वे भी मूल फिल्म देखकर आश्चर्यचकित हुए होंगे!

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6)     कॉर्पोरेट बुकिंग से बड़ा मज़ाक कुछ नहीं!:

जब मोदी सरकार को तनिक समय मिले, तो उन्हें एक स्पेशल टीम की नियुक्ति अवश्य करनी चाहिए. इसलिए कि जो फिल्म घरेलू स्तर पर बजट नहीं निकल पाती, वो ओवरसीज़ के कलेक्शन के नाम पर कैसे अपने आप को सफल घोषित कर देती है! विश्वास नहीं होता तो “रॉकी और रानी के प्रेम कहानी” को ही देख लीजिये. बजट १७८ करोड़ का, घरेलू कलेक्शन १५० करोड़ से भी कम, और एटीट्यूड तो करण जौहर का ऐसा, मानो “दंगल” का वैश्विक कलेक्शन पछाड़ दिया हो!

इसके पीछे का प्रमुख कारण है कॉर्पोरेट बुकिंग, यानी जब जनता देखने को इच्छुक न हो, तो खुद ही बल्क में सीटें बुक कराके बजट निकाल लो! आपको क्या लगता है, “पठान” के यूँ ही १००० करोड़ से अधिक का वैश्विक कलेक्शन हो गया? अब इनके ऑडियंस की तुलना आप “ग़दर २” से करिये! एक के दर्शक तो हफ्ते भर के बाद माइक्रोस्कोप से भी ढूंढने पर नहीं मिल रहे थे, तो दूसरी ओर क्या SUV, क्या बस, ट्रैक्टर और बुलडोज़र तक कम पड़ गए “गदर २” के दर्शकों के लिए!

7)     कोई Genre आउटडेटेड नहीं!:

अगली बार कोई बोले कि ऐसी फिल्में नहीं चलती, ऐसी फिल्में आउटडेटेड हैं, तो ऐसे महानुभावों को ग़दर २ अवश्य दिखाएं! एक समय बॉलीवुड की जो सबसे बड़ी शक्ति थी, उसी जनसंवाद  से विमुख हो वे मल्टीप्लेक्स आधारित ऑडियंस की जी हुज़ूरी पर ध्यान केंद्रित करने लगे. परन्तु ग़दर २ ने पुनः सिद्ध किया कि विशुद्ध मसाला फिल्मों की कोई एक्सपायरी डेट नहीं. इसमें एक्शन है, प्रेम है, इमोशन है, देशभक्ति भी है, और तारा पाजी का प्रभुत्व तो है ही बंधु! ऐसी फिल्में जनता से अधिक कनेक्ट करती है, अन्यथा भव्यता तो करण जौहर की फिल्मों में भी होती है!

ग़दर २ के दमदार प्रदर्शन ने एक बात तो सिद्ध कर दी है: इट इज नॉट ओवर अनटिल इट इज ओवर! इससे जो भी लेसन मिले हैं, उन्हें अनदेखा करने की भूल न करें, क्योंकि इसी में बॉलीवुड का उद्धार छुपा है!

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