कथा “वाघ बकरी” ब्रांड की उत्पत्ति एवं इसकी अद्वितीय विरासत की

चाय से कहीं बढ़कर है ये!

कभी सोचा है कि एक बाघ और बकरी एक ही प्याले से चाय पिएंगे? जितना ये सोचकर ही आपको हंसी आ रही होगी, उतने में एक गुजराती व्यवसायी ने एक ऐसा ब्रांड बनाया, जो न केवल लोकप्रिय है, अपितु ब्रुक बॉन्ड और टाटा टी जैसे दिग्गजों को टक्कर भी देता है.

जुड़िये हमारे साथ वाघबकरी की अद्वितीय विरासत के पीछे की अनोखी अंतर्कथा जानने के लिए, क्योंकि वाघबकरी सिर्फ एक चाय ब्रांड से कहीं बढ़कर है!

दक्षिण अफ्रीका के “चाय बागानों” से लेकर “वाघ बकरी” तक

“वाघ बकरी चाय – हमेशा रिश्ते बनाये” केवल एक टैगलाइन नहीं, ये इस कम्पनी द्वारा एक प्याली चाय से जुड़ी भावनाओं को उनका सम्मान देने का अपना अनोखा प्रयास भी है. इसकी उत्पत्ति दक्षिण अफ्रीका के चाय बागानों से प्रारम्भ होती है, जहाँ नारायण दास देसाई ने चाय उद्योग की बारीकियां समझी, और फलस्वरूप उन्होंने इस अनुभव को भारत में लागू करने का निर्णय लिया, जिसके लिए वह १८९२ में भारत लौटे. देसाई के विजन का परिणाम था गुजरात टी डिपो कम्पनी, जिसने आगे चलकर “वाघबकरी” जैसे लोकप्रिय ब्रांड को जन्म दिया.

१९३४ में जाकर कम्पनी ने अपनी चाय को “वाघ बकरी” नामक ब्रांड दिया! इससे पूर्व सभी उत्पाद गुजरात टी डिपो कम्पनी के नाम से जाते थे. परन्तु १९३४ में कम्पनी के नाम में परिवर्तन हुआ, और ये Gujarat Tea Processors and Packers Limited के नाम से प्रसिद्द हुआ, जिसकी विशेषज्ञता थी टी प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग.

प्रारम्भ में इस ब्रांड की उपस्थिति गुजरात, और कुछ हद तक महाराष्ट्र में थी. परन्तु १९९० के दशक तक आते आते, इस कम्पनी ने अपनी उपस्थिति देश के अन्य कोनों, जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश इत्यादि में भी बधाई. इस रणनीतिक विस्तार ने न केवल उक्त ब्रांड को निखरने का एक अवसर दिया, अपितु एक क्षेत्रीय दिग्गज से राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय चाय ब्रांड के रूप में इसे विकसित  भी  किया.

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कैसे मिला वाघबकरी को उसका नाम और कैसे पड़ी इसके अद्वितीय विरासत की नींव!

वाघबकरी” नाम ही क्यों पड़ा, इसकी भी बड़ी रोचक कथा है. कल्पना कीजिये कि एक बाघ और एक बकरी एक ही प्याली से चाय पी रहे हों. इसका तात्पर्य सरल, परन्तु स्पष्ट है: चाय अमीरी और गरीबी नहीं देखती. हर पीढ़ी, हर वर्ग के लोग चाय की एक प्याली पर अपने जीवन के सुख दुःख साझा करते हैं. चाय सबको साथ लाने का काम करती है, और शायद इसीलिए वाघबकरी ब्रांड का यह भी मानना है, “रिश्तों में गर्माहट लाये, हमेशा रिश्ते बनाये!”

१९९० में जो विस्तार वाघबकरी ने प्रारम्भ किया था, वह शनै शनै भारत के कई अन्य राज्यों में भी पहुँचने लगा. वाघबकरी चाय धीरे धीरे महाराष्ट्र, दिल्ली एनसीआर, उत्तर प्रदेश इत्यादि  में भी अपनी जड़ें जमाने लगा था.

जिस उद्योग में डंकन जैसे ब्रांड न टिक पाए हों, वहां वाघबकरी ने अपनी लोकप्रियता कैसे बनाई रखी? इसका उत्तर कम्पनी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पराग देसाई ने एक साक्षात्कार में दिया था. “हम राज्य को देश के रूप में मानकर चलते हैं. हमने १० वर्ष तक राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में अपनी जड़ें जमाई, तब जाकर महाराष्ट्र में अपना व्यापार बढाने का सोचा. इसी भांति दिल्ली आने से पूर्व  हमने महाराष्ट्र में भी ५ वर्ष बिठाये!”

इस रणनीति के पीछे का प्रमुख कारण है एक सशक्त डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क का विकास. पराग आगे बताते हैं, “हर वर्ष अपनी बोर्ड मीटिंग में हम इस बात पे ध्यान देते हैं कि आगे कितने रिटेल आउटलेट और डिस्ट्रीब्यूटर हम एड करने जा रहे हैं. इससे विक्रेताओं में वृद्धि होगी, जिससे हमारी सेल्स में भी वृद्धि होगी”. एक अन्य कर्मचारी रसेश  ने इसे प्रमाणित करते हुए गुजरात का उदाहरण दिया, जहाँ कम्पनी का मार्केट शेयर ६० प्रतिशत से भी अधिक है.

अब आप भली भांति समझ सकते हैं कि क्यों वाघ बकरी सिर्फ चाय का एक ब्रांड नहीं, ये कथा है कि कैसे एक नेक विचार और सरल नाम से आप अपनी पहचान से देश भर में अपनी ब्रैंड वैल्यू बढ़ा सकते हैं!

क्यों है वाघबकरी चाय उद्योग में असरदार और दमदार

वाघबकरी केवल चाय उत्पादन तक सीमित नहीं है. ये मार्केटिंग में भी अपनी अनोखी पहचान बनाने को उद्यत है. वे चाहते हैं कि आपका चाय पीना केवल आम दिनचर्या में सम्मिलित न हो, अपितु एक अनोखा अनुभव हो. अन्य टी ब्रांड्स की तुलना में इन्होने मुंबई  और दिल्ली में विशेष आउटलेट खोले हैं, जहाँ आप चाय के विभिन्न फ्लेवर्स के साथ कुछ चुनिंदा स्नैक्स का भी आनंद उठा सकते हैं!

इसीलिए चाय उद्योग के विशाल परिदृश्य में वाघबकरी ने अपनी विशिष्ट पहचान बनाके रखी है. पैकेज्ड चाय का  भारत में १०००० करोड़ रुपये से अधिक का मार्केट है! इसमें भी आधे से अधिक मार्केट पर टाटा ग्लोबल बेवरेज एवं हिंदुस्तान यूनिलीवर का कब्ज़ा है, जिनके पास २०१२ से २०१६ तक लगभग ५६ प्रतिशत का मार्केट शेयर था!

अब इस परिस्थिति में जहाँ अन्य ब्रांड या तो यथावत रहे, या फिर लगभग अदृश्य रहे, तो वहीँ “वाघबकरी” ने कई लोगों को अपनी वृद्धि से चौंकाया. २०१२ से २०१६ तक इसने अपने मार्केट शेयर को ८ प्रतिशत तक बढ़ाया.

वाघबकरी के अनोखे दृष्टिकोण के कारण ही ये लोकप्रियता के नित नए आयाम छू रहा है. २०१६ से २०१७ तक इसने ११०० करोड़ का असरदार टर्नओवर प्राप्त किया. इनका CAGR यानी compound annual growth rate (CAGR) ही पिछले एक दशक में १० से १२ प्रतिशत तक का रहा है, और ये ब्रुक बांड के ताज महल एवं रेड लेबल को भी कड़ी टक्कर देता आया है!

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वाघबकरी की कथा केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है. ये छोटी सी शुरुआत से बड़ी सफलता तक की एक अनोखी कथा है, जिसने चाय उद्योग के साथ उपभोक्ताओं को भी आश्चर्यचकित किया है. आज से १५ से २० वर्ष पूर्व किसी ने नहीं सोचा था कि एक गुजराती ब्रांड इतना लोकप्रिय बनेगा. परन्तु वाघबकरी के रचयिताओं के विचार अलग थे: ये समस्त प्रॉफिट अपने पास न रखकर इसका लाभ अपने उपभोक्ताओं यानी कंज़्यूमर्स को भी देना चाहते थे!

तो बंधु, “वाघबकरी” कोई ऐसी वैसी चाय कम्पनी नहीं! इनके वृद्धि की कथा उद्यमिता, परिपक्व ब्रांडिंग के निर्णय एवं क्वालिटी के प्रति अद्वितीय समर्थन का परिचायक है!

दक्षिण अफ्रीका में नारायणदास देसाई के अनुभवों से लेकर भारत भर में इसकी लोकप्रियता तक, “वाघबकरी” ने अपनी अद्वितीय पहचान बनाई है. इन्होने परंपरा और इनोवेशन का ऐसा मिश्रण जनता को परोसा है, जिसके कारण भारतीय चाय उद्योग में इनकी उपस्थिति अलग और अनोखी लगती है. शायद इसीलिए इनका टैगलाइन वाघबकरी चाय – हमेशा रिश्ते बनाये” इनपर उपर्युक्त भी बैठता है!

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