लगता है विवादों से कांग्रेस नेता एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी का कुछ ज़्यादा ही लगाव है. लेकिन इस बार उनका झगड़ा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों या विरोधियों से नहीं है; यह हमारे राष्ट्र के हृदय-संविधान के साथ ही है! शांत हो जाइये,इनकी संविधान से समस्या दूसरी है!
हाल है में अधीर बाबू ने ये दावा किया कि संविधान के नई प्रति से ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ गायब है! उनका आरोप है कि यह चूक कोई दुर्घटना नहीं थी – यह जानबूझकर किया गया कार्य था।
कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने कहा, ”नए संविधान की जो प्रतियां हमें दी गईं, जिस संविधान की प्रतियां लेकर हम संसद में दाखिल हुए, उस संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द नहीं हैं।” उन्होंने आगे कहा, “हम जानते हैं कि ये दो शब्द 1976 में शामिल किए गए थे लेकिन अगर आज कोई हमें संविधान देता है और उसमें समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द नहीं हैं तो यह चिंता का विषय है। उन्होंने बहुत सावधानी से ऐसा किया है।”
#WATCH | Leader of Congress in Lok Sabha, Adhir Ranjan Chowdhury says, "The new copies of the Constitution that were given to us today (19th September), the one we held in our hands and entered (the new Parliament building), its Preamble doesn't have the words 'socialist… pic.twitter.com/NhvBLp7Ufi
— ANI (@ANI) September 20, 2023
चौधरी ने इस मुद्दे को संसद में उठाने की उत्सुकता व्यक्त की लेकिन दावा किया कि उन्हें ऐसा करने का मौका नहीं मिला। हालाँकि, इस कहानी में एक मोड़ है। विपक्ष के नेता (एलओपी) ने नई संसद में विशेष सत्र के दूसरे दिन संविधान की प्रति पढ़ते समय “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द पढ़े।
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अब ये दावे वैध हैं या नहीं, यह बिल्कुल अलग कहानी है। लेकिन यहां आपके लिए एक विचार है, प्रिय प्रधान मंत्री मोदी- अधीर रंजन की ‘इच्छा’ को एक बार के लिए क्यों पूरा नहीं किया जाए?
देखिए, हमारे पूर्वजों ने जिस संविधान की कल्पना की थी उसमें “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्द शामिल नहीं थे। ये शब्द जानबूझकर 1976 में डाले गए थे, और तब से किसी ने भी इन्हें हटाने की परवाह नहीं की है! 47 साल आरामदायक रहे हैं, और शायद अब थोड़ा बदलाव का समय आ गया है, क्या आपको नहीं लगता?
राजनीतिक जटिलताओं की दुनिया में, गायब शब्दों का यह विचित्र मामला हमारे देश की नींव के दिल में एक आकर्षक झलक पेश करता है। अधीर रंजन चौधरी को भले ही हंगामा मचाने के लिए जाना जाता है, लेकिन इस बार, वह एक ऐसा सवाल पेश कर रहे हैं जो आपको सोचने पर मजबूर कर देता है: क्या हमें 1976 की स्क्रिप्ट पर कायम रहना चाहिए, या क्या यह हमारे संविधान के सार पर पुनर्विचार करने का समय है?
बहस जारी है, और जैसा कि देश देख रहा है, यह हमारे नेताओं पर निर्भर है कि वे क्या इतिहास को संरक्षित करना चाहते हैं या भारत के लोकतंत्र की कहानी में एक नया अध्याय लिखना चाहते हैं। कभी-कभी, यह सबसे सरल शब्द होते हैं जो सबसे गहन बातचीत को जन्म देते हैं, और इस मामले में, “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” ने निश्चित रूप से केंद्र चरण ले लिया है।
इसलिए, चाहे आप टीम अधीर रंजन में हों या भाजपा नेताओं के साथ हों, एक बात स्पष्ट है: संविधान एक जीवित दस्तावेज है, जो संशोधन रहित तो कदापि नहीं हो सकता। जितनी जल्दी अधीर बाबू इस बात को समझे, उतना ही बढ़िया!
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