भारत के एक दांव से सब दंग!
अब भारत को चाहिए पूरा सम्मान!
कैसे वेनेज़ुएला के साथ एक डील ने बढ़ाया भारत का कूटनीतिक कद!
क्यों अब किसी महाशक्ति के भय से अपना हित नहीं त्यागेगा भारत!
कैसे तेल के क्षेत्र में भारत बन सकता है आत्मनिर्भर?
वेनेज़ुएला के साथ एक डील से कैसे साधेगा भारत अनेक निशाने, आइये जानते हैं इस वीडियो में!
वेनेज़ुएला के साथ एक क्रांतिकारी डील
एक महत्वपूर्ण निर्णय में , भारत वेनेजुएला से कच्चे तेल का आयात करने के लिए तैयार है। परन्तु बात इतने तक सीमित नहीं है, इस डील में काफी भारी छूट भी सम्मिलित हैं, जो वैश्विक कूटनीति में कई लोगों को इस मुद्दे पर चर्चा करने पर विवश कर रहा है।
परन्तु इस ऑयल डील में ऐसा भी क्या विशेष है?
इस अपरंपरागत बदलाव के पीछे का प्रमुख कारण तेल उद्योग के हालिया परिदृश्य में लगाया जा सकता है। कोकर कॉम्प्लेक्स, तेल रिफाइनरियों के महत्वपूर्ण घटक, हाल के दिनों में पूरी क्षमता से और कभी-कभी क्षमता से परे भी काम कर रहे हैं।
इस घटना के पीछे काफी हद तक सस्ते, उच्च-सल्फर वाले रूसी कच्चे तेल की प्रोसेसिंग अथवा प्रसंस्करण की महत्वपूर्ण भूमिका है। परिणामस्वरूप, वेनेजुएला के कच्चे ग्रेड तेल के लिए सीमित जगह उपलब्ध है, जैसा कि एसएंडपी ग्लोबल के रिफाइनरी अर्थशास्त्र विश्लेषक सुमित रिटोलिया ने बताया है।
रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि अगले छह माह में वेनेजुएला की तेल उत्पादन क्षमता में कोई महत्वपूर्ण बदलाव होने की संभावना नहीं है। राज्य द्वारा संचालित तेल कंपनी, पीडीवीएसए, आर्थिक संकट का सामना कर रही है, जिसके निपटान में बहुत कम या कोई निवेश पूंजी नहीं है, मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए कई प्रतिबंधों के कारण।
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इसके अलावा, देश के तेल से संबंधित बुनियादी ढांचे का एक बड़ा हिस्सा जर्जर स्थिति में है। परिणामस्वरूप, वेनेज़ुएला की वर्तमान तेल उत्पादन क्षमता लगभग 750,000 बैरल प्रति दिन है, जबकि प्रति दिन 800,000 और 850,000 बैरल के बीच उत्पादन करने की इनकी क्षमता है।
भारत और इसकी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए इस निर्णय का क्या अर्थ है?
स्पष्ट शब्दों में कहें तो, यह महत्वपूर्ण लागत बचत का परिचायक है। सामान्य परिस्थितियों में, भारत आपूर्ति के स्रोत के आधार पर मानक बाजार दरों पर या कभी-कभी प्रीमियम कीमतों पर भी तेल खरीदता था। मान लीजिये कि वैश्विक क्रूड ऑयल के कीमत 100 से 110 डॉलर प्रति बैरल थी, तो भारत को अधिकतम इसी रेट पर तेल खरीदने को बाध्य होना पड़ता था, और रूस को छोड़कर किसी भी देश से कोई विशेष आर्थिक बेनिफिट नहीं मिलते थे!
परन्तु अब वेनेजुएला के आगमन से, भारत के पास न केवल एक अतिरिक्त स्रोत उपलब्ध है, बल्कि ये अत्यधिक कॉस्ट इफेक्टिव भी है। रियायती दरों पर वेनेजुएला कच्चे तेल की उपलब्धता भारतीय रिफाइनरों को एक आकर्षक विकल्प प्रदान करती है, खासकर जब रूसी कच्चे तेल की आमद के कारण सामान्य चैनल अधिकतम या अत्यधिक क्षमता पर काम कर रहे हों, जैसा कि रिटोलिया ने दोहराया है।
भारतीय रिफाइनर्स के इस कदम से उनके मौजूदा कच्चे तेल स्रोतों में फेरबदल की सम्भावना है। संभावित समायोजन में मिडिल ईस्ट जैसे क्षेत्रों से आयात के मिश्रण पर पुनःविचार की भी सम्भावना है, जैसा कि एसएंडपी ग्लोबल के आर्थिक विश्लेषण से संकेत मिलता है।
यह ध्यान देने योग्य है कि भारत को 2022 में वित्तीय बोझ का सामना करना पड़ा, जिसमें कतर से 15 बिलियन डॉलर मूल्य का पर्याप्त तेल और गैस आयात करना भी सम्मिलित है।
भारत के लिए असीमित लाभ
रियायती दरों पर वेनेजुएला के कच्चे तेल को आयात करने का भारत का निर्णय इनकी आर्थिक रूप से परिपक्व रणनीति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। तेल आपूर्ति के वर्तमान परिदृश्य और बढ़ती ऊर्जा मांगों के साथ, यह रणनीतिक बदलाव भारतीय रिफाइनरों के लिए पर्याप्त लागत बचत और बढ़ी हुई अनुकूलनशीलता का वचन देता है,
यह एक ऐसा कदम जो निकट भविष्य में देश के तेल आयात के परिदृश्य को पुनः परिभाषित कर सकता है।
परन्तु, एक प्रश्न तो अब भी व्याप्त है: इस निर्णय से भारत को कितना लाभ होगा? सच कहें तो भारत के लिए इसके लाभ एकतरफा कतई न होंगे।
एसएंडपी ग्लोबल के रिफाइनरी अर्थशास्त्र विश्लेषक सुमित रिटोलिया के शब्दों में, “यदि रिफाइनिंग अर्थशास्त्र भविष्य में वेनेजुएला के कच्चे तेल का पक्ष लेगा, तो भारतीय रिफाइनरों को अपने मौजूदा स्रोतों से कच्चे तेल को विस्थापित करने की आवश्यकता हो सकती है, जिसमें मध्य पूर्वी, लैटिन अमेरिकी और अमेरिकी क्रूड शामिल हो सकते हैं।”
वित्त वर्ष 2022 में भारत के कुल तेल आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी केवल 2% थी। हालाँकि, वित्तीय वर्ष 2023 तक तेजी से आगे बढ़ते हुए, यह भारत द्वारा आयातित 235.52 मिलियन टन कच्चे तेल का लगभग एक-चौथाई था। भारत के अन्य प्रमुख आपूर्तिकर्ता अभी के लिए इराक, सऊदी अरब, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात ही हैं।
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भारत की बढ़ती तेल मांग के संदर्भ में यह विविधीकरण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। जनवरी से सितंबर तक, भारत की तेल मांग साल-दर-साल 5.6% बढ़कर 171.34 मिलियन टन या 4.9 मिलियन बैरल प्रति दिन तक पहुंच गई। इसी अवधि में, डीजल और गैसोलीन की मांग में साल-दर-साल क्रमशः 6.5% और 7.4% की वृद्धि हुई। इसके अलावा, जेट ईंधन की मांग में साल-दर-साल 20.5% की पर्याप्त वृद्धि देखी गई, जबकि इसी अवधि में नेफ्था में साल-दर-साल 3.7% की वृद्धि देखी गई।
वेनेजुएला के कच्चे तेल का कॉस्ट इफेक्टिव विकल्प अब भारत के पास उपलब्ध है, और रूसी सौदों से प्राप्त लाभों के अलावा, भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका या मिडिल ईस्ट से तेल आपूर्ति पर अधिक निर्भर होना नहीं पड़ेगा।
वेनेजुएला के तेल को संसाधित करने की क्षमता भारतीय रिफाइनरों की पहुंच के भीतर है, और देश इस अवसर का लाभ उठाने के लिए तैयार है, बशर्ते यह उचित मूल्य पर उपलब्ध रहे।
इसी परिप्रेक्ष्य में पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी के शब्दों में, “जब बाजार में अधिक आपूर्ति आती है तो यह हमेशा अच्छा होता है।” उन्होंने कहा, ‘हमें जहां भी सस्ता तेल मिलेगा हम वहां से खरीदेंगे।’ यही मूल लक्ष्य है – भारत की बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए तेल का एक विश्वसनीय और कॉस्ट इफेक्टिव स्त्रोत प्राप्त करना और साथ ही देश के कच्चे तेल के आयात बिल को कम करना।
एक तीर, अनेक निशाने!
वेनेजुएला से रियायती दर पर कच्चे तेल का आयात करने का भारत का रणनीतिक निर्णय निरंतर विकसित हो रहे वैश्विक तेल परिदृश्य के लिए परिपक्व अनुकूलन का प्रतिनिधित्व करता है। यह एक ही तीर से कई लक्ष्यों पर निशाना साधने समान है।
सर्वप्रथम, जैसा कि हरदीप सिंह पुरी ने बताया, यह कदम भारत को सस्ते और संभावित रूप से अधिक विश्वसनीय विकल्पों तक पहुंचने की अनुमति देता है। ये लाभ तात्कालिक वित्तीय लाभ से कहीं अधिक है।
दूसरे, यह मिडिल ईस्ट और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे पारंपरिक तेल स्रोतों पर भारत की अत्यधिक निर्भरता को कम करता है। तेल के अपने स्रोतों में विविधता लाना ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में एक विवेकपूर्ण कदम है।
तीसरा, यह भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत को रेखांकित करता है। बाहरी दबावों और संभावित खतरों के बावजूद, भारत वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रहा है।
अब प्रश्न उठता है कि भारत इतना साहसिक कदम कैसे उठा पा रहा है? कई लोगों के लिए, इसका उत्तर इस तथ्य में निहित है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने वेनेजुएला के तेल से जुड़े सौदों पर कुछ प्रतिबंधों में ढील दी है।
एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी प्रतिबंध लगने से पहले भारत वेनेजुएला के कच्चे तेल ग्रेड का नियमित खरीदार हुआ करता था। 2017 से 2019 तक पूर्व-प्रतिबंध अवधि के दौरान, भारत ने वेनेज़ुएला के क्रूड ऑयल के लगभग 300,000 बैरल प्रति दिन (बीपीडी) का आयात किया, जिसमें निजी रिफाइनर प्रमुख खरीदार थे। एसएंडपी ग्लोबल डेटा के मुताबिक, ये आयात उस समय भारत के कुल कच्चे तेल आयात का लगभग 5-7% था।
जैसा कि एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स में ग्लोबल क्रूड ऑयल मार्केट्स के कार्यकारी निदेशक हा गुयेन बताते हैं, “18 अक्टूबर को, अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने वेनेजुएला पर तेल, व्यापार और वित्तीय प्रतिबंधों में ढील दी। ट्रेजरी द्वारा जारी ‘सामान्य लाइसेंस’ पहले से प्रतिबंधित गतिविधियों को छह महीने की अवधि के लिए अनुमति दी गई है, जिसे नवीनीकृत किया जा सकता है यदि मादुरो सरकार अपनी राजनीतिक और चुनावी प्रतिबद्धताओं का पालन करे। अमेरिकी तेल कंपनियों को अब वेनेजुएला में निवेश शुरू करने और आगे बढ़ाने की अनुमति है।”
परन्तु बहुत से लोग शायद पूरी तरह से समझ नहीं पाते हैं, और कुछ तो आसानी से स्वीकार भी नहीं करेंगे कि भारत किस तरह कुशलतापूर्वक अपने उपलब्ध संसाधनों और राजनयिक प्रभाव का लाभ उठा रहा है।
ज़्यादा समय की बात नहीं है, रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच रूस के साथ पेट्रोलियम डील करने के लिए भारत को घोर आलोचना का सामना करना पड़ा था। भारत को पाश्चात्य जगत, विशेषकर अमेरिका का पक्ष लेने को विवश करने हेतु अनेक प्रयास किये गए । परन्तु भारत ने स्पष्ट कहा, “राष्ट्रीय हितों से इतर कुछ भी नहीं!”। यहां तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका की परोक्ष धमकियों का असर भी नगण्य रहा, क्योंकि शनै शनै उन्हें समझ में आ गया कि उन्होंने किस देश से पन्गा मोल लेने का दुस्साहस किया है।
वैश्विक राजनीति और अर्थशास्त्र के परिप्रेक्ष्य में, तेल बाजार में भारत के वर्तमान दांव एक राष्ट्र को अपना रास्ता तय करने और अपने हितों की रक्षा करने के मुखर और निर्भीक होने को रेखांकित करती है। यह जुझारूपन और स्वतंत्रता इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जहाँ भारत को लाभ मिलेगा, वहीँ वो निवेश करेगा, किसी के दबाव में या अपने हितों को ताक पर रखकर नहीं।
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