वर्षों से दक्षिण चीन सागर एक चिंता का विषय बना हुआ है। जिस कारण यह समुद्र विभिन्न राष्ट्रों के बीच संघर्ष का केंद्र बन चुका है। चीन की तरफ से यहां की भूमि को अपनाने का प्रयास और अन्य देशों के विरोध का परिणामस्वरूप, इस क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है।
दक्षिण चीन सागर का रणनीतिक महत्व इसकी रणनीतिक और अर्थशास्त्रिक महत्वपूर्णता से प्रमाणित होता है। इस सागर के माध्यम से व्यापार, वाणिज्यिक गतिविधियां और सामरिक उपस्थिति का प्रबल प्रभाव होता है। यहां उपस्थित राष्ट्र अपनी सामरिक शक्ति को प्रदर्शित करते हैं और राजनीतिक अभिनय करते हैं।
विवाद के मद्देनजर इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती भागीदारी भी महत्वपूर्ण है। भारत दक्षिण चीन सागर के क्षेत्र में अपनी रक्षा और राजनीतिक हितों की रक्षा करने के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत है।
इस प्रकार, दक्षिण चीन सागर न केवल एशियाई क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे संतुलित और संयुक्त प्रयास के माध्यम से प्रबंधित करना आवश्यक है ताकि इस क्षेत्र में स्थिरता और शांति का संरक्षण संभव हो सके।
दक्षिण चीन सागर में ब्रुनेई एकमात्र ऐसा देश है जो किसी भी विवादित द्वीप पर दावा नहीं करता है, लेकिन यह स्पष्ट करता है कि समुद्र का कुछ हिस्सा उसके आर्थिक क्षेत्र में आता है। इस विषय पर चीन का दावा है कि यह समुद्र का पूरा हिस्सा उसके नियंत्रण में है। चीन “नाइन-डैश लाइन” के साथ दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से को अपने संप्रभु क्षेत्र के रूप में चिह्नित करता रहा है।
हालांकि, दूसरे देशों ने चीन के इन दावों का खंडन किया है। फिलीपींस 2013 में चीन के खिलाफ इस मामले को हेग स्थित एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में ले गया था, जहां चीन ने सुनवाई में भाग लेने से इनकार कर दिया और फैसले को खारिज कर दिया था।
विभिन्न स्रोतों के अनुसार, चीन ने अपने दावों को समर्थन देने के लिए द्वीपों का आकार बढ़ाकर या नए द्वीप बनाकर उसे पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया है। इसके अतिरिक्त, चीन ने बंदरगाहों, सैन्य प्रतिष्ठानों और हवाई पट्टियों का भी निर्माण किया है, विशेष रूप से पारासेल और स्प्रैटली द्वीप समूह में।
इन सब के बीच, चीन ने अन्य देशों को उसकी सहमति के बिना कोई भी सैन्य या आर्थिक अभियान चलाने से रोकने की भी कोशिश की है, यह कहते हुए कि यह समुद्र उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के अंतर्गत आता है।
चीन के समुद्री दावों के पीछे का कारण क्या है? इस प्रश्न का उत्तर आपको चीन के भू-संपदा और राष्ट्रीय हितों में खोजने की जरूरत है। वाणिज्यिक और राजनीतिक दृष्टि से देखें तो, दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में भूमि के अंदर भारी मात्रा में प्राकृतिक धन है, जैसे कि तेल और गैस।
इसके साथ ही, यहां की समृद्ध मछली पकड़ने की संभावना है। दुनिया की आधे से अधिक मछली पकड़ने वाली नौकाएं इन जलक्षेत्रों में संचालित होती हैं। इसका अर्थ यह है कि यह क्षेत्र आर्थिक और रसायनीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
वहीं, व्यापार की दृष्टि से भी दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक मार्ग है। यहां से विश्व भर में व्यापार होता है और व्यापार में चीन की महत्वपूर्ण भूमिका है। व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अनुसार, 2016 में वैश्विक व्यापार का 21 प्रतिशत से अधिक, यानी 3.37 ट्रिलियन डॉलर की राशि इस जलक्षेत्र के माध्यम से पारगमन हुई। इसलिए चीन के लिए इस क्षेत्र का महत्व उसके आर्थिक विकास और अभियानों में बढ़ावा देने में है।
चीन का दक्षिण चीन सागर में अपने दावों को “घरेलू मुद्दे” के रूप में लेने के पीछे का कारण क्या है? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए आपको चीन के राजनीतिक और राष्ट्रीय हितों को समझने की आवश्यकता है। यह चीन की राष्ट्रीय दृष्टि का परिणाम है जिसमें यह देश अपने विकास और सुरक्षा के मामलों में आत्मविश्वासी है।
चीन की यह नीति उसके अंतर्राष्ट्रीय स्थान को मजबूत करने का एक हिस्सा है, जिसमें यह देश दक्षिण चीन सागर के मामलों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे चीन की विश्वासनीयता और शक्ति का प्रदर्शन होता है, जो इसे विश्व में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाता है।
इस संदर्भ में, चीन अपनी राष्ट्रीय और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए दक्षिण चीन सागर को एक महत्वपूर्ण क्षेत्र मानता है। इसके साथ ही, यह एक राष्ट्रीय और राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है जिसमें चीन अपने स्थायी रूप से जल क्षेत्र में विस्तार करने का प्रयास कर रहा है।
दक्षिण चीन सागर में भारत का बढ़ता प्रभाव
इस उद्देश्य के लिए, चीन ने अपने सैन्य और नौसैनिक गतिविधियों को इस क्षेत्र में बढ़ा दिया है, जो कि अन्य राष्ट्रों को चेतावनी देता है। विशेष रूप से भारत ने चीन की इस गतिविधि को खतरे के रूप में देखा है, और इसको लेकर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
भारत सरकार के दक्षिण चीन सागर में रुख यह साबित करता है कि भारत अपनी संभावित रक्षा और बढ़ते राजनीतिक प्रभाव को ध्यान में रख रहा है। यह अपने विभिन्न पड़ोसी देशों के साथ समर्थन और संयुक्तता का अभ्यास करके अपने इस क्षेत्रीय स्थान को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है।
भारत की दक्षिण चीन सागर में सक्रियता बढ़ने के पीछे कई कारण हैं।
- रक्षा और सुरक्षा की चिंता: भारत ने अपने राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से दक्षिण चीन सागर में अपनी सक्रियता को बढ़ाया है। इस क्षेत्र में व्यापक रक्षा संरचना और नौसेना की उपस्थिति के माध्यम से, भारत अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा में और नजर रख रहा है।
- राजनीतिक संबंधों का विस्तार: भारत अपने पड़ोसी देशों जैसे वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, और मलेशिया के साथ राजनीतिक और रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रयासरत है। इससे भारत अपने द्वारा प्रेरित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अभियानों में अधिक सक्रिय हो रहा है।
- भूमि संदर्भों की महत्वपूर्णता: दक्षिण चीन सागर का भूमि संदर्भ और राजनीतिक नाकारात्मकता काफी अधिक हो रही है। भारत इस क्षेत्र में अपने गहन राजनीतिक और रक्षा हितों की रक्षा के लिए सक्रिय हो रहा है।
- भारतीय प्रधानमंत्री की “एक्ट ईस्ट” पॉलिसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “एक्ट ईस्ट” पॉलिसी के अंतर्गत, भारत अपने पूर्वोत्तर क्षेत्र के साथ संबंधों को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है, जिसमें दक्षिण चीन सागर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- संयुक्त सैन्य और रक्षा अभियानों में सहयोग: भारत ने अमेरिका, फिलीपींस, वियतनाम, और अन्य देशों के साथ संयुक्त नौसेना और रक्षा अभियानों में भाग लिया है, जिससे दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत किया जा रहा है।
2019 में, भारतीय नौसेना ने पहली बार दक्षिण चीन सागर में अमेरिका, जापानी और फिलीपीन नौसेनाओं के साथ संयुक्त अभ्यास किया। फिर 2020 और 2021 में भारत ने वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के साथ नौसैनिक अभ्यास किया। मई 2023 में, भारत ने पहली बार दक्षिण चीन सागर में सात आसियान देशों की नौसेनाओं के साथ दो दिवसीय संयुक्त अभ्यास में भाग लेने के लिए युद्धपोत भेजे।
भारत ने फिलीपींस और वियतनाम को अपनी सैन्य बिक्री भी बढ़ा दी है। उदाहरण के लिए, 2022 में, भारत ने 100 ब्रह्मोस सुपरसोनिक एंटी-शिप मिसाइलों के लिए फिलीपींस के साथ एक समझौता किया।
एक साल बाद, जुलाई 2023 में, भारत ने घोषणा की कि वह वियतनामी नौसेना को भारतीय मिसाइल कार्वेट आईएनएस किरपान सौंपेगी। उसी वर्ष, भारत ने फिलीपींस को कम से कम सात हेलीकॉप्टरों की भी पेशकश की, जिनका उपयोग देश में आपदाओं के दौरान फिलीपीन तट रक्षक (पीसीजी) के बचाव और मानवीय प्रयासों के लिए किया जाएगा।
यह सब भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को मजबूत करने का एक प्रमुख उदाहरण है, जो इसे विश्व में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाता है। भारत का यह उत्तरदायी रवैया उसके संबंधों को स्थायी और सुरक्षित बनाने में मदद करेगा, जिससे विश्व सुरक्षा और स्थिरता में सहायक होगा।
भारत की यह पहल दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए उसकी दृष्टि को और भी मजबूत करती है। भारत ने उत्तरपूर्व और दक्षिणपूर्व एशिया के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए यह स्वीकार किया है कि उसका समर्थन केवल राजनीतिक और रक्षा मामलों पर ही सीमित नहीं है।
भारत की इस सख्त उपस्थिति के पीछे कई कारण हैं, जिसमें राष्ट्रीय हित, व्यापारिक महत्व, और रक्षा के प्रश्न शामिल हैं। इसके अलावा, भारत चाहता है कि इस क्षेत्र में अपने पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र के रूप में प्रकट हो।
भारत चाहता है कि इस एक्शन से वह अपने बड़े भौगोलिक दबदबे को अधिक सुदृढ़ बनाए रखे। इसके साथ ही, यह भारत की “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” के भाग के रूप में भी देखा जा सकता है, जिससे कि भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ और अधिक सख्त संबंध बना सके।
इस तरह के कदमों के द्वारा, भारत अपने प्रभाव को बढ़ाने में सक्षम हो रहा है, और इसका परिणाम हो सकता है कि चीन को धीरे-धीरे इस क्षेत्र से हटना पड़े। इससे सुरक्षा और स्थिरता के क्षेत्र में एक सामंजस्यपूर्ण संबंध बन सकता है, जो कि इस क्षेत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।